हम चर्चा कर रहे हैं एक ऐसे देश की जहां पर हर 10 में से एक आदमी, आदमी कहिए या 10 में से एक वर्कर, रोबोट है। और इस रोबोट की ही कहानी को आज के सेशन में हम समझा रहे हैं। साथियों, दुनिया में विकसित राष्ट्रों का एक समूह है जिसे ओईसीडी कहते हैं – ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट। ओईसीडी का मुख्यालय पेरिस में है। यह वही ओईसीडी है जिसके द्वारा एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स बनाई जाती है जिसके द्वारा ग्रे लिस्ट, ब्लैक लिस्ट किया जाता है कंट्रीज को। 38 कंट्रीज के मेंबर नेशंस के समूह में विकसित राष्ट्र शामिल होते हैं।
उनमें से एक विकसित राष्ट्र साउथ कोरिया है। आज उसकी खबर है क्योंकि वहां के एक मशीन रोबोट ने थक कर जान दे दी है। कहते हैं कि मशीनें कभी थकती नहीं। कुछ लोग जब थकते नहीं हैं तो उन्हें मशीन की उपमा दी जाती है। अबे मशीन हो क्या यार, थकते ही नहीं हो। लेकिन हाल ही में कुछ ऐसा ही हुआ है साउथ कोरिया में जहां पर रोबोट के द्वारा सर्जरी से लेकर प्लांटेशन तक, मशीनरी कामों से सारे काम कराए जा रहे थे। आज सुर्खी कुछ इस तरह से बनती है कि साउथ कोरिया सीज इट्स फर्स्ट रोबोट सुसाइड। हेर इज वट कॉज्ड इट। साउथ कोरिया के अंदर रोबोट सुसाइड कर लेता है। यह खबर बेहद जानने योग्य तब हो जाती है जब एक और हम चर्चा कर रहे हैं मशीन की आत्महत्या की।
जो भी हो, मशीन खराबी है या कुछ और है, लेकिन इसके साथ-साथ एक बहुत बड़ा पॉइंट यहां पर रेज होता है कि वर्क प्रेशर कितना उचित है और कितना वर्क प्रेशर विकसित राष्ट्रों में दिया जा रहा है। साउथ कोरिया के क्या हालात हैं और उस हालात को देखकर हम अपने आप को कहां पाते हैं। खबर बिल्कुल इसी प्रकार से है कि फर्स्ट टाइम इन रिकॉर्डेड हिस्ट्री, रोबोट कमिट्स सुसाइड इन साउथ कोरिया एज इट वाज मेड टू डू अ लॉट ऑफ वर्क।
असल में साथियों, कहानी निकल कर आती है कि दक्षिण कोरिया के अंदर एक रोबोट, जो कि एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर के काम पर काम कर रहा था, उसने अपने आप को 65 फुट ऊंची सीढ़ियों से नीचे गिरा दिया। 65 फुट ऊंची सीढ़ियों से नीचे गिराकर कुछ इस तरह से धड़ाम हुआ पाया। कहा गया कि यह जो रोबोट है, गिरने से पहले बहुत तेजी से अपनी जगह पर गोल-गोल घूमने लगा और फ्रस्ट्रेट होकर के जाकर सीढ़ियों से नीचे कूद पड़ा। हो सकता है शॉर्ट सर्किट हो गया हो, हो सकता है कुछ और हो गया हो, लेकिन कंपनी वालों ने फुटेज खाने के लिए इसको सुसाइड नाम दे दिया।
क्योंकि हर आदमी इसकी चर्चा तो करेगा। कम से कम यह तो समझेगा कि हां, देखो साउथ कोरिया में इतने रोबोट चलते हैं। कौन सी कंपनी है, क्या कुछ है, सब बातें लोग चर्चा में लेकर आएंगे। बिल्कुल कुछ ऐसा ही यहां पर हुआ है। साथियों, हुआ क्या है तो मैं आपको यहां पर पड़ा हुआ रोबोट दिखा रहा हूं। लेकिन उससे पहले मैं आपको लिफ्ट के बगल में खड़ा हुआ रोबोट दिखा रहा हूं।
आप लोगों ने कभी सरकारी कार्यालयों में या प्राइवेट कार्यलयों में लोगों को काम करते देखा हो तो आप अक्सर देखेंगे कि एक बाबू की टेबल पर कोई सामान रखा है। वह बाबू एक स्टाफ को बोलकर कहता है कि भैया जाकर उस टेबल पर यह फाइल पकड़ा के चले आइए। एक भैया होते हैं जो इधर से उधर टेबल पर घूम रहे होते हैं। ऑफिस स्टाफ होता है, वह सपोर्टिव स्टाफ होता है, मदद के लिए स्टाफ को रखा जाता है। भारत में अक्सर आपने इस तरह की व्यवस्थाएं देखी होंगी।
लेकिन जिस देश में पॉपुलेशन बड़ी कम हो, पैसा बहुत अधिक हो, तो वहां पर इसी काम को करने के लिए एक रोबोट को कार्य दिया हुआ था। बाकायदा यह रोबोट अपने पास प्रॉपर आईडी कार्ड पहनता था। आप जिस जगह फाइल भिजवाना चाहें, इस रोबोट पर फाइल रखें, उसका नंबर डाल दें, वहां पर ले जाकर यह फाइल पहुंचा देगा। यानी कि इस रोबोट का काम बहुत ही स्पेसिफिक था, फाइलों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का।
और अपने काम को यह बखूबी निभा रहा था। और तो और, लिफ्ट को खोलना, बंद करना, लिफ्ट से आना जाना, यह सब काम बहुत अच्छे से कर लिया करता था। लेकिन बिचारे से इतना काम करवाया कि शॉर्ट सर्किट मार गया। और मार करके सीढ़ी के पास पहुंचा, गोल-गोल घूमा और धाम से जाके नीचे गिर गया। लोग कह रहे हैं देखिए सुसाइड कर लिया है। हां, हो सकता है कि वैज्ञानिक इस बात को सुसाइड नाम दे रहे हों। मुझे तो यह कोई टेक्निकल फेलियर लगता है। लेकिन फिर भी, अगर ऐसी चर्चा भी है तो लोगों ने इस बहाने अपनी तरफ ध्यान आकर्षित कर लिया है कि काम बहुत करवाया जा रहा है साउथ कोरिया में।
इसीलिए आप जहां-तहां खबर देख रहे हैं कि यह जाकर टूट पड़ा, गिर पड़ा, मर पड़ा। बेयर रोबोटिक्स नाम का कोई अमेरिकी कंपनी है, उसका बनाया हुआ यह रोबोट था, जो कि साउथ कोरिया के अंदर काम कर रहा था। और इसका काम जो था, वह सूचनाओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना था। ऐसी चीजें कहा जा रहा है कि यह अपने आप को रोबोट को बोझ तले ना देख कर के ऐसा कर पाया। ठीक है, दक्षिण कोरिया में सात गुना ज्यादा रोबोट वर्कर्स हैं बाकी दुनिया से।
यानी 10 में से अगर एक वर्कर यहां पर रोबोट है, तो अपने आप में ये बड़ा सवाल है कि दुनिया में कितने रोबोट हैं। तो दुनिया के औसत से सात गुना ज्यादा रोबोट दक्षिण कोरिया में यूज किए जाते हैं। दक्षिण कोरिया कहां है? मैप पर अगर आप देखें तो चाइना के उत्तर में, येलो सी को पार करके, जापान के पश्चिम में, सॉरी चाइना के पूर्व में और जापान के पश्चिम में स्थित देश साउथ कोरिया है। यहां की जो पॉपुलेशन के आंकड़े हैं, वो लगभग 5 करोड़ के आसपास है। लेकिन यहां की पॉपुलेशन लगातार गिर रही है।
विकसित राष्ट्र होने के नाम पर टोटल फर्टिलिटी रेट कम होते-होते यहां की पॉपुलेशन में लगातार गिरावट देखी जा रही है। क्योंकि यहां पर वर्किंग क्लास लगातार बढ़ रहा है, वर्क प्रेशर बढ़ रहा है, और ऐसी स्थिति में जनसंख्या वृद्धि रुकी हुई है। ऐसी स्थिति में साउथ कोरिया के अंदर लोगों को अगर मान लीजिए बच्चा पैदा करना है तो उन्हें $75000 तक का इंसेंटिव दिया जाता है कि आप काम छोड़िए और जाकर के अपना बेबी प्लान कीजिए। लेकिन फिर भी लोग वर्कफोर्स में इतने बिजी हैं कि वह अपने आप को समय ना देते हुए काम के लिए चले जा रहे हैं।
इसी के चलते यहां पर वर्कर्स में रोबोट की फौज को भर्ती किया गया। क्योंकि इंसान तो अब बचेगा नहीं। ऐसी स्थिति में यहां पर काम का प्रेशर इतना बढ़ता है कि 69 पर वीक के से यहां पर लोग पर हफ्ते काम कर रहे हैं। हालांकि वर्तमान में 52 घंटे ही यहां पर अधिकृत टाइम है लोगों के काम करने का, लेकिन कहा गया है कि कुछ कंपनियों ने हाल ही में अपने यहां पर वर्किंग आवर्स 69 पहुंचा दिए हैं। इसके चलते यहां पर बहुत सारे लोग स्ट्राइक पर चले गए।
दुनिया के जो विकसित राष्ट्र हैं, उनमें साउथ कोरिया उन देशों में शुमार है जो कि वर्क के वर्क करने पर पैसा बहुत बढ़िया देता है। लेकिन उसके बावजूद भी यहां पर प्रोडक्टिविटी अच्छी नहीं आ रही है। उसके पीछे एक्सेस वर्क प्रेशर को बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि यहां पर वर्क कल्चर में काम का बढ़ जाना और स्ट्रेस की वजह से लोगों का बर्न आउट हो जाना, काम में ध्यान ना दे पाना।
इसकी वजह से साउथ कोरिया वर्तमान में प्रोडक्टिविटी में बड़ी गिरावट देख रहा है। इसी वजह से यहां पर कंपनी जो हैं वो रोबोट को काम करने के लिए ले रही हैं। लेकिन अब बड़ा सवाल यह निकल कर आता है कि साउथ कोरिया जैसा देश जो कि विकसित राष्ट्र है, हर तरह की चीजों को जानता है, समझता है, परखता है। ऐसी स्थिति में मशीने तक अगर काम के चलते सुसाइड कर रही हैं तो यह होने के लिए चाहे एक फ्रेजल वर्ब की तरह से यूज किया गया वाक्य हो कि देखो कितना काम है कि मशीन तक गिर जा रही है।
लेकिन यह मेरी नजर में अगर देखा जाए तो ये उन वर्कर्स के द्वारा फैलाया गया एक मैसेज भी हो सकता है। भाई मशीन गिरी सो गिरी, लेकिन लोगों के बीच में एक चर्चा इस बात की छेड़ने का तरीका भी हो सकता है कि देखो साउथ कोरिया में लोगों से कितना काम कराया जा रहा है। जब लोग इस तरह से काम करके थक चुके हैं, मशीनों का क्या हाल होगा।
इस तरह से इसको एजरेट करने के लिए लिया जा रहा है। लेकिन कुल मिलाकर बात इतनी है कि अल्टीमेटली दुनिया में एक जो नई बहस छिड़ी हुई है कि एक हफ्ते में 70 घंटे काम करना चाहिए, उस बहस को इस तरह की घटनाएं काफी ज्यादा चुनौती देती हैं। क्योंकि विकसित राष्ट्र के लोग नहीं चाहते कि लोग इतने घंटे काम करें क्योंकि उनकी प्रोडक्टिविटी में गिरावट आती है।