सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एससी और एसटी आरक्षण में सब-क्लासिफिकेशन को अनुमति देने वाला महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस फैसले के मुताबिक, राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों और जनजातियों के भीतर विभिन्न समूहों के लिए अलग-अलग आरक्षण निर्धारित कर सकती हैं। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में एक फैसला सुनाया था जिसमें सब-क्लासिफिकेशन की अनुमति नहीं दी गई थी। अब, सुप्रीम कोर्ट ने इस पुराने फैसले को पलटते हुए नई व्यवस्था को मंजूरी दी है।
सब-क्लासिफिकेशन का मतलब
सब-क्लासिफिकेशन का मतलब यह हुआ कि अनुसूचित जातियों (एससी) और जनजातियों (एसटी) के भीतर विभिन्न समूहों को आरक्षण के तहत अलग-अलग प्रतिशत दिए जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी राज्य में अनुसूचित जातियों के लिए 15 प्रतिशत आरक्षण है, तो राज्य सरकार यह तय कर सकती है कि इनमें से कौन सी जाति को कितना प्रतिशत आरक्षण मिलेगा।
फैसले का प्रभाव
इस फैसले से राज्यों की राजनीति में बड़ा बदलाव आ सकता है। जातिगत राजनीति में अब और विभाजन हो सकता है क्योंकि राज्य सरकारें अब अपने स्तर पर विभिन्न जातियों को अलग-अलग आरक्षण देने की प्रक्रिया को लागू कर सकती हैं। यह राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकता है, खासकर चुनावों के समय।

2004 का फैसला और 2024 का बदलाव
2004 में, सुप्रीम कोर्ट ने ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश मामले में फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के भीतर सब-क्लासिफिकेशन नहीं किया जा सकता। लेकिन अब, सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में सात जजों की बेंच द्वारा इस फैसले को पलटते हुए सब-क्लासिफिकेशन को अनुमति दी है।
पंजाब का मामला और न्यायिक सक्रियता
1975 में, पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों के भीतर सब-क्लासिफिकेशन शुरू किया था। यह व्यवस्था 30 साल तक चली लेकिन 2004 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसे रद्द कर दिया गया। पंजाब सरकार ने 2006 में एक नया कानून लाया लेकिन यह भी रद्द कर दिया गया। अंततः 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर विचार करने के लिए सात जजों की बेंच गठित की और 2024 में अपना फैसला सुनाया।
फैसले की शर्तें और भविष्य की चुनौतियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी एक जाति को 100% आरक्षण नहीं दिया जा सकता और राज्य सरकारों को आरक्षण निर्धारित करने से पहले पुख्ता डाटा एकत्रित करना होगा। यह निर्णय न्यायिक समीक्षा के दायरे में रहेगा, जिससे भविष्य में कई नए मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच सकते हैं।
निष्कर्ष
यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों को अधिक प्रतिनिधित्व और अवसर मिल सकते हैं। हालांकि, यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इस नई व्यवस्था का दुरुपयोग न हो और सही तरीके से लागू किया जाए।