अगर आप और हम इस देश में सुख शांति से रह रहे हैं, तो निश्चित ही बॉर्डर पर खड़े हुए हमारे उन वीर जवानों का अतुलनीय योगदान मायने रखता है। साथ ही, देश के अंदर आंतरिक सुरक्षा के लिए उपलब्ध पुलिस फोर्सेस का भी योगदान महत्वपूर्ण है। लेकिन कभी-कभी हमारी सुरक्षा में तैनात ये सभी जवान दुश्मन के साथ जंग करते हुए या फिर किसी विकट परिस्थिति में अपने जान गवां देते हैं, वीर गति को प्राप्त होते हैं। तो फिर उनके बाद उनके परिजनों पर, उनके निकट संबंधियों पर, उनके आश्रितों पर क्या बीतता है, उसकी कहानी आज का यह सेशन है। और किस तरह से एक सैनिक को अपने पीछे छूटे हुए आश्रितों के लिए जीते जी भी विचार करना होता है, संभवतः आज इस स्टोरी में ये चर्चा भी शामिल हो जाएगी।
तो चलिए शुरू करते हैं। चर्चा है कैप्टन शहीद अंशुमन सिंह की और उनके पीछे छूटे उनके परिवार में पिता, माता, और उनकी धर्मपत्नी। आज की इस पूरी घटना में इन तीनों के बारे में ही विषय वस्तु वार चर्चा होगी। आप वर्तमान में स्वर्ग सिधार गए हैं। इनके पीछे छूट गई हैं इनकी धर्मपत्नी और इनके माता-पिता। हाल ही में कैप्टन अंशुमन सिंह के मुआवजे को लेकर एक बयान वायरल है। उस बयान में उनका आरोप है कि जो मुआवजा मिला, वह उनकी पत्नी लेकर चली गई। शहीद की आश्रित विधवा अपने साथ उस पैसे को लेकर चली गई। और इसी के साथ में चर्चा शुरू हुई कि क्या है नेक्स्ट ऑफ किन पॉलिसी। जिसे लेकर शहीद के मां-बाप ने लीडर ऑफ अपोजिशन राहुल गांधी जी से मुलाकात पर कहा कि आप इस विषय को संसद में उठाइए। जो सक्षम लोग हैं, चाहे रक्षा मंत्री हैं, उनसे आप इस विषय पर चर्चा कीजिए कि जो हमारे साथ घटित हुआ, वह किसी और के साथ घटित ना हो। इसी वजह से आज के सेशन में हम यह सारी कहानी समझने वाले हैं।
नेक्स्ट ऑफ किन पॉलिसी क्या है? क्या हुआ इस पर्टिकुलर मामले में? किस तरह से लगातार सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है कैप्टन अंशुमन सिंह के पीछे छूट गए परिवार का विवाद? इसीलिए विस्तार से इस पूरी कहानी को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।

नेक्स्ट ऑफ किन रूल भी इसी के अंदर शामिल हो जाएगा। तो चलिए शुरू करते हैं। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हमारे देश के जो ब्रेव हार्ट्स हैं, जीते जी और मरणो प्रांत उनके सम्मान के लिए वॉर टाइम और पीस टाइम अवार्ड्स रखे जाते हैं। और इन अवार्ड्स को भारत सरकार के द्वारा दो बार, एक बार गणतंत्र दिवस पर और एक बार स्वतंत्रता दिवस पर दिया जाता है।
इनमें से एक वॉर टाइम अवार्ड है और दूसरा पीस टाइम अवार्ड है, जो कि सैनिकों के द्वारा या फिर वीर गति को प्राप्त हो चुके जो सैनिक हैं, उनके द्वारा अपने अदम्य साहस और समर्पण की याद दिलाने के लिए दिया जाता है। पहली श्रेणी में जो पुरस्कार हैं, उसके अंदर परमवीर, महावीर और वीर चक्र को रखा जाता है, जो कि वॉर टाइम अवार्ड्स हैं। और दूसरे वाले जो अवार्ड्स हैं, वो पीस टाइम अवार्ड्स हैं, यानी कि जब युद्ध नहीं चल रहा था, अप्रत्यक्ष रूप से सेना और सेना के सहयोगी जो गठबंधन है, उनके द्वारा किया गया कोई कार्य याद करते हुए अशोक चक्र, कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र ये डिसेंडिंग ऑर्डर में दिए जाते हैं। यानी कि बहुत बड़ी वीरता है तो अशोक चक्र, उससे कम कीर्ति चक्र, उससे कम शौर्य चक्र। क्राइटेरिया रखा हुआ है कि कितने अदम्य साहस का आपने परिचय दिया।
ये दो प्रकार के अवार्ड्स भारत सरकार के द्वारा गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के दिन दिए जाते हैं। अनाउंसमेंट किया जाता है। अगर हम इसके इतिहास की बात करें तो 26 जनवरी 1950 को जब देश का संविधान लागू हुआ, तो इसी तारीख को भारत सरकार द्वारा प्रथम तीन वीरता पुरस्कार परमवीर, महावीर और कीर्ति चक्र की घोषणा की गई थी, लेकिन प्रभावी 1947 से ही माना गया। यानी कि 1947 में ही जो वीरगति को प्राप्त हुए हैं, तब से लेकर अब तक जो लोग हैं, उन्हें भी यह अवार्ड्स दिए जाएंगे।
इसके बाद सरकार ने 4 जनवरी 1952 को अन्य तीन वीर पुरस्कारों की घोषणा की, जिनमें कि शूर वीरों को पीस टाइम के अंदर सम्मानित किया जा सके। अब सवाल है कि इसके लिए चयन कैसे होता है? तो इसके लिए वीरता पुरस्कारों के लिए पहले आवेदन मांगे जाते हैं। अधिकारी के नामों का प्रॉपर तरीके से चयन किया जाता है। रक्षा मंत्रालय के पास में जो नाम सुरक्षा विभाग के द्वारा रक्षा मंत्रालय के द्वारा भेजे जाते हैं, उनमें से चयन किया जाता है एक विशेषज्ञ समिति के द्वारा, जिसका नाम केंद्रीय सम्मान और पुरस्कार समिति होता है। यह समिति मंत्रालय के पास सभी नामों पर विचार करती है, फिर अपने मानकों के आधार पर पूरी प्रक्रिया को तय करती है। फिर वीरता पुरस्कारों के नाम तय किए जाते हैं। यह तय किए हुए नाम राष्ट्रपति के पास भेजे जाते हैं और राष्ट्रपति की अनुमति के बाद ही इन अवार्ड्स की घोषणा की जाती है।
गैलेरी अवार्ड जो मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस की वेबसाइट है, वहां जाकर अगर आप देखेंगे, तो अब तक जो-जो देश के अंदर अवार्ड रहे हैं, परमवीर पुरस्कार प्राप्तकर्ता, वीर, महावीर, शौर्य, कीर्ति, इन सबके नाम आपको वहां पर प्राप्त हो जाएंगे। क्योंकि साल में दो बार घोषणा होती है।
अब आपके दिमाग में सवाल आएगा कि सर, ना तो अभी गणतंत्र दिवस निकला, ना स्वतंत्रता दिवस निकला, तो फिर कहां से ये चर्चा में आ गए? तो हुआ ये कि वर्ष 2023 में शहीद हुए थे कैप्टन अंशुमन सिंह, तो उनके नाम पर मोहर लगकर इस बार जो गणतंत्र दिवस गया, 26 जनवरी गई, उस दिन राष्ट्रपति के द्वारा अनाउंसमेंट किया गया। तो आप 26 जनवरी 2024 की खबर देख रहे हैं, जहां पर छह कीर्ति चक्र और 16 शौर्य चक्र का अनाउंसमेंट हुआ था। कुल मिलाकर 80 गैलेंट अवार्ड्स अनाउंस किए गए थे आर्म्ड फोर्सेस के लिए इस 26 जनवरी 2024 को। यानी गत वर्ष की वीरता के आधार पर 26 जनवरी 2024 को अवार्ड्स की घोषणा की गई थी।
अवार्ड्स की घोषणा होना और घोषित अवार्ड्स को राष्ट्रपति द्वारा हैंड ओवर करना ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं। तो घोषणा जनवरी 26 को हो चुकी है, उसके बाद इसकी सेरेमनी आयोजित की जाती है। जो आश्रित हैं या परिवार के पीछे जो छूट गए हैं, उनको सम्मानित करने के लिए या सैनिक घायल हैं या फिर आज भी हैं, और उनको इस तरह का सम्मान उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रपति द्वारा एक सेरेमनी आयोजित की जाती है। दैट इज डिफेंस इन्वेस्ट टूर सेरेमनी। जिसका आयोजन प्रथम फेज का आयोजन हाल ही में किया गया। इस दौरान 36 गैलेंट अवार्ड्स, जिनमें से 10 कीर्ति चक्र, जिनमें से सात मरणो प्रांत थे, और 26 सौर्य चक्र, जिनमें से सात मरणो प्रांत थे, वह राष्ट्रपति द्वारा दिए गए। तो आप यह खबर देख रहे हैं, जुलाई 6 की है, जहां राष्ट्रपति द्रौपदी मर्मू जी के द्वारा कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र देने की खबर आती है।
इसी न्यूज़ में अगर आप नीचे चलकर पढ़ेंगे, तो आप पाएंगे कि यहां पर कैप्टन अंशुमन सिंह को भी अवार्ड दिया गया है। यानी कि यह उस दिन की सुर्खी है, जिस दिन यह अवार्ड दिए गए। उस दिन के अखबारों में कुछ इस तरह की तस्वीरें छपी थीं, जिसमें प्रेसिडेंट मुरमू के द्वारा गैलेंट अवार्ड्स जब दिए गए थे, तो उनकी तस्वीरें सामने थीं। इन्हीं में से एक तस्वीर यह जो आपको दिख रही है, ये सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा वायरल हुई। इतनी वायरल हुई कि राष्ट्रपति जी के नाम से जो अवार्ड दिए गए, जिनमें से कीर्ति चक्र दिया गया अंशुमन सिंह को, उनके लिए सारी जानकारी, मतलब इतने सारे जो अवार्ड्स हैं, लेकिन उसमें जो मेन चेहरा बनकर आई तस्वीर वह यह तस्वीर थी। इस तस्वीर में जिनका जिक्र था, वह था कैप्टन अंशुमन सिंह का, जो कि जुलाई 2023 में शहीद हुए थे।
आपकी पोस्टिंग सियाचीन ग्लेशियर में थी। आप 26 पंजाब बटालियन के 403 फील्ड में अस्पताल में तैनात थे। लेकिन जब आप 27 साल के थे, तो एक बहुत बड़ी घटना में घायल हुए, और देश की रक्षा करते हुए आपने अपना जीवन गवां दिया। आपका पार्थिव शरीर चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर लाया गया था, फिर वहां से आप प्राइवेट एयरलाइंस के माध्यम से उत्तर प्रदेश के फतेहगढ़ में जहां कि आपके पिता जॉब करते थे, वहां पर लाया गया था।
अब यहां पर एक सवाल उठता है कि जब शहीद हो गए, तो पीछे कौन-कौन छूट गया? तो परिवार के सदस्य जो कि पीछे छूट गए थे, उनके अंदर आपकी वाइफ, जिनका नाम पारुल है, वह पीछे छूट गईं। इसके अलावा आपके माता-पिता जो कि विधवा मां और वृद्ध पिता हैं, वह पीछे छूट गए।
अब विवाद क्या हुआ? विवाद यह हुआ कि शहीद अंशुमन सिंह की जो वाइफ हैं, उन्होंने अपनी सास-ससुर से नाता तोड़कर दूसरी शादी कर ली। और यह शादी तब की जब उनको शहीद पति का मुआवजा मिल चुका था। अब सवाल यह उठता है कि मुआवजा कितना होता है? तो दोस्तों, मुआवजे के अंदर सरकार शहीद सैनिक के परिवार को 25 से 30 लाख रुपए तक का मुआवजा देती है। इसके अलावा सरकार उसके जो निकट संबंधी हैं, उन परिवारों को पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी का लाभ भी देती है। इसको नेक्स्ट ऑफ किन पॉलिसी के तहत जो कि सैनिक को नियुक्ति के समय ही भरवाया जाता है। नेक्स्ट ऑफ किन पॉलिसी के तहत इस तरह के लाभ की घोषणा की जाती है। इसी पॉलिसी का गलत फायदा उठाने की कोशिश के लिए हाल ही में कैप्टन अंशुमन सिंह के पिता जी ने जो कि बुजुर्ग हैं, अपनी व्यथा नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जी के सामने बताई और कहा कि मुआवजे की सारी रकम पारुल लेकर दूसरी शादी कर चुकी हैं। और सास-ससुर को बेसहारा छोड़ दिया। इनका कहना है कि यह केवल पैसों के लिए था और उसकी नीयत यही थी।
यह विवाद बना हुआ है। पिता का कहना है कि उनके बेटे ने शहादत दी थी। हम अपने बुढ़ापे में किसी के सहारे नहीं रहना चाहते थे। हमारी गुज़ारिश है कि जो भी नेक्स्ट ऑफ किन पॉलिसी है, उसमें बदलाव किया जाए। जो भी यह सर्कल है, उसमें बदलाव कर उसकी जगह नजदीकी रिश्तेदार को प्रावधान के तहत जोड़ा जाए। इस विवाद को लेकर राहुल गांधी जी ने यह वादा किया कि इस विषय को लेकर निश्चित ही संसद के पटल पर आवाज़ उठाई जाएगी और आपकी व्यथा जो है, उसको प्रमुखता से सुना जाएगा। इस तरह से यह पूरा विवाद बना हुआ है।
इससे क्या-क्या सीखने को मिलता है? सबसे पहले, नेक्स्ट ऑफ किन पॉलिसी क्या है? आपको समझ में आ गया होगा। नेक्स्ट ऑफ किन पॉलिसी के अंतर्गत एक फॉर्म भरवाया जाता है, जिसमें शहीद जवान अपने निकटतम संबंधियों का नाम लिखता है, जिन्हें मुआवजा दिया जाना है। इसके अलावा मुआवजे के और क्या लाभ होते हैं? वह भी हमने आपको बताया।
इस केस में यह भी देखने को मिला कि जवानों के आश्रितों को कुछ सुधार की जरूरत है। उनके लिए भी कुछ प्रावधान हों कि अगर वह खुद सक्षम नहीं हैं, तो उनके लिए क्या किया जा सकता है। अगर इस तरह की घटनाएं भविष्य में न हो, इसके लिए कुछ नीति बनाई जा सकती है।