जियो ने मोनोपोलिस्टिक अप्रोच अपनाकर पहले ग्राहकों की आवश्यकता बनाई और फिर प्रतिस्पर्धा को खत्म किया। उदाहरण के तौर पर, बीएसएनएल और अन्य टेलीकॉम कंपनियों को नुकसान पहुंचाया और अब खुद की कीमतें बढ़ाकर ग्राहकों को मजबूर कर दिया। जियो ने सस्ते और मुफ्त इंटरनेट की आदत डालकर अपने ग्राहकों को फंसा लिया और अब वे अपनी मनमानी कीमतें वसूल रहे हैं।
जियो की इस रणनीति को समझने के लिए हमें पीछे जाकर देखना होगा कि कैसे यह सब शुरू हुआ था। धीरूभाई अंबानी ने 2002 में टेलीकॉम सेक्टर में कदम रखा था और उनके बेटे मुकेश अंबानी ने 2010 में 4G नेटवर्क स्पेक्ट्रम खरीदकर इस दिशा में आगे बढ़ाया। 2016 में, जियो ने फ्री इंटरनेट और कॉलिंग सेवाएं प्रदान कर ग्राहकों की बड़ी संख्या में फ्री कनेक्शन दिए। इससे इंटरनेट क्रांति की शुरुआत हुई और लोग सस्ते इंटरनेट के आदी हो गए।
धीरे-धीरे जियो ने अपनी प्राइसिंग बढ़ाई और अन्य कंपनियों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया। उदाहरण के लिए, टाटा डोकोमो और एयरसेल जैसी कंपनियां बर्बाद हो गईं। अब जियो ग्राहकों को सस्ते फोन भी मुहैया करवा रहा है ताकि वे अपने इंटरनेट प्लान्स का अधिकतम उपयोग कर सकें।
जियो की इस रणनीति को अर्थशास्त्र में प्रेडेटरी प्राइसिंग कहा जाता है, जहां एक कंपनी इतनी सस्ती कीमतें रखती है कि अन्य कंपनियां प्रतिस्पर्धा नहीं कर पातीं और बाजार से बाहर हो जाती हैं। इसके बाद, वह कंपनी अपने हिसाब से कीमतें बढ़ाकर मुनाफा कमाती है।
अब जियो 5G के साथ भी इसी तरह की रणनीति अपना रहा है और लोगों को अपने नेटवर्क से बांधे रख रहा है। सरकार और उपभोक्ताओं को इस मोनोपोलिस्टिक अप्रोच के खिलाफ सतर्क रहना चाहिए और ऐसी कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
इस पूरी चर्चा का मकसद है कि लोगों को यह समझ में आए कि किस प्रकार से जियो और मुकेश अंबानी ने इंटरनेट क्रांति का लाभ उठाकर अपने फायदे के लिए मार्केट को नियंत्रित किया है। जनता को जागरूक होकर इस प्रकार की कंपनियों के खिलाफ अपनी आवाज उठानी चाहिए ताकि बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रहे और उपभोक्ताओं का हित सुरक्षित रहे।