आज हम बात करेंगे भारत के पड़ोसी देश नेपाल की। नेपाल, जो कि भारत और चीन के बीच में एक बफर स्टेट की तरह बिहेव करता है, का चीन के प्रति झुकाव भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय रहा है। नेपाल, जो पहले से राजशाही का राज देखता आया है, जब से वहां राजशाही गई है, लोकतंत्र भी पूरी तरह से फल-फूल नहीं पाया है।
लोकतंत्र की तलाश में नेपाल की जनता अब अपने आप को हुक्मरानों के बीच में झूलता हुआ पाती है। नेपाल, जो कि हिमालयन देश है, माउंट एवरेस्ट जैसी ऊँची चोटी अपने साथ रखता है, वहां पर सत्ता परिवर्तन हुआ है। केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। यह तीसरी बार है जब ओली प्रधानमंत्री बने हैं, और इनके झुकाव का कारण चीन के साथ रहा है।
नेपाल में सत्ता परिवर्तन की कहानी बड़ी दिलचस्प है। यहां का डेमोक्रेटिक सिस्टम समझने के लिए यह जानना होगा कि नेपाल में चुनाव कैसे होते हैं और राजनीतिक पार्टियाँ कैसे सरकार बनाती हैं। नेपाल में सामान्यतः तीन प्रकार की सरकारें होती हैं – लोकतंत्र, राजशाही और तानाशाही। नेपाल, लंबे समय तक राजशाही रहा है, लेकिन 2008 के बाद से नेपाल ने गणतंत्र को अपनाया है।
नेपाल में द्विसदनात्मक व्यवस्था है, जैसे भारत में राज्यसभा और लोकसभा होती है, वैसे ही यहां पर नेशनल असेंबली और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव होते हैं। नेपाल में मिक्स्ड इलेक्टोरल सिस्टम अपनाया जाता है, जिसमें फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम और प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन सिस्टम दोनों का उपयोग होता है।

नेपाल में 2022 में चुनाव हुए, जिसमें किसी भी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। तीन बड़ी पार्टियां – शेर बहादुर देउबा की पार्टी, केपी शर्मा ओली की पार्टी, और पुष्प कमल दहल प्रचंड की पार्टी – प्रमुख पार्टी बनकर उभरीं।
नेपाल में सत्ता परिवर्तन के इस खेल में प्रचंड ने पहले देउबा के साथ मिलकर सरकार बनाई, फिर ओली के समर्थन से प्रधानमंत्री बने। फिलहाल के लिए ओली और देउबा ने मिलकर प्रचंड का साथ छोड़ दिया है और अब ओली प्रधानमंत्री बन गए हैं।
नेपाल की इस राजनीतिक अस्थिरता का असर भारत पर पड़ सकता है, विशेष रूप से क्योंकि ओली का रवैया भारत के प्रति विपरीत रहा है। लेकिन देउबा के सहयोग से संभवतः ओली को भारत के खिलाफ कठोर कदम उठाने से रोका जा सकेगा।