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Black Day for Democracy अब संसद में होगी आतं और खालिस्तानी

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क्या हमारा लोकतंत्र बहुत मजबूत हो गया है? इतना मजबूत हो गया है कि किसी को कुछ भी भारत के विरोध में बोलना हो, चाहे भारत को तोड़ने की बात करता हो, चाहे भारत से अलग राज्य बनाने की मांग करता हो, भारत के खिलाफ बयानबाजी करता हो, भारत के संविधान को मान्यता ना देने की बात करता हो, उसको भी हम संसद में बिठाकर सम्मान से रखेंगे?

या फिर हम यह कहें कि हमारी कानून व्यवस्था इतनी पंगु हो गई है कि उस कानून व्यवस्था के चलते ऐसे लोग खुलेआम ना केवल चुनाव लड़ रहे हैं बल्कि शपथ तक ले ले रहे हैं?

साथियों, आज के सेशन में हम एक ऐसी घटना का जिक्र आपसे करने जा रहे हैं, जिसने बहुत सारे लोगों को भारतीय लोकतंत्र पर, जिसे तानाशाही का डर था, उसे एक एक्सट्रीम लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अंदर ले जाने के लिए मजबूर कर दिया है। मैं इसे एक्सट्रीम लोकतांत्रिक व्यवस्था इसलिए कह रहा हूं कि संभवतः ऐसा लोकतंत्र भी दुनिया में कहीं होता होगा, जहां देश विरोधी डिसेंट को भी स्थान दिया जाता होगा। आज इंडिया या तो वो बनने निकल पड़ा है या फिर यह लोकतंत्र का काला दिन है।

आज के सेशन को सुनने के बाद आप खुद डिसाइड करिएगा कि इंडिया किस तरफ बढ़ चुका है। तो चलिए शुरुआत करते हैं। आज के सेशन में हम चर्चा करने वाले हैं साथियों, ऐसी घटना की, जिसमें एक व्यक्ति जो खालिस्तान यानी कि एक अलग देश की मांग करता है, खालिस्तान की मांग करता है, और एक ऐसा व्यक्ति जो टेरर फंडिंग के आरोप में जेल में है, वह दोनों व्यक्ति लोकसभा के लिए शपथ ले चुके हैं।

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एक तरफ चर्चा है अमृतपाल सिंह की, जो कि नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (एनएसए) के तहत असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद था। दूसरी तरफ बात है इंजीनियर राशिद खान की, जो कि तिहाड़ जेल में यूएपीए यानी कि अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट के तहत तिहाड़ जेल में बंद था। यह दोनों ही जेल में रहते हुए चुनाव लड़ते हैं और चुनाव जीत कर आते हैं। इनको चुनाव जीतने के बाद में जेल में रहते हुए ही पेरोल दी जाती है कि जाइए और आप एमपी की शपथ लीजिए और जाकर के हमारे लोकसभा जिसके लिए हमें कहा गया है कि प्रत्येक देशवासी को संसदीय व्यवस्था में विश्वास रखना चाहिए, प्रत्येक देशवासी को बाबा साहेब अंबेडकर के द्वारा बनाए गए संविधान में विश्वास रखना चाहिए। उस संविधान पर विश्वास ना रखने वाले व्यक्ति के सम्मान में झुक जाइए।

हमारे देश में एक ऐसा ही इतिहास बनने जा रहा है, क्योंकि वह व्यक्ति जो देश के संविधान को नहीं मानता, बाबा साहेब अंबेडकर के दिए संविधान को नहीं मानता, उस व्यक्ति को जेल में शपथ दिला दी जाती है। इसलिए बड़ा सवाल बनता है आफ्टर ऑल जिम्मेदार कौन है? हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था, हमारी कानून व्यवस्था, आप और हम।

साथियों, चर्चा है दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद कश्मीरी नेता शेख अब्दुल राशिद और असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह के शुक्रवार को सांसद पद के शपथ लेने की। साथियों, यह दोनों पेरोल से बाहर आए और संसद भवन के अंदर शपथ ली।

अमृतपाल सिंह, जो 2012 में देश से बाहर दुबई गया था काम के सिलसिले में और 2022 में भारत लौटा। यहां लौटकर के ‘वारिस पंजाब दे’ का मुखिया बनता है। यहां बन कर के फिर वह प्रॉपर तरीके से अजनाला के अंदर एक मारपीट के मामले में उस पर मारपीट का मामला दर्ज किया जाता है। मामला दर्ज होने के बाद उसके समर्थक अजनाला थाने में पूरी तरह से कब्जा कर लेते हैं।

लोकतंत्र में पुलिस को इस तरह से प्रताड़ित होते हुए पहली बार किसी ने इस तरह की तस्वीरों में देखा था यानी कि पुलिस को पीछे हटना पड़ा था क्योंकि एक व्यक्ति ने अपने समर्थन में इस तरह के लोगों को जुटाकर देश विरोधी बातें करने के लिए उकसाया और इस तरह का माहौल बनाया।

इस व्यक्ति का एक वीडियो बहुत वायरल हो रहा है जिसमें इंडिया टीवी पर इसने इंटरव्यू दिया और इसने कहा कि जब इससे पूछा गया कि आप अपने आप को भारत का नागरिक मानते हैं, तो यह कहता है मैं अपने आप को पंजाबी मानता हूं। पंजाब मेरी एथनिसिटी है, पंजाब मेरी नेशनलिटी है, पंजाबी मेरी लैंग्वेज है, पंजाबी मेरा भोजन है। मैं केवल पंजाब मानता हूं।

पंजाब इंडिया में भी और पाकिस्तान में भी है। क्या आप इंडिया के कॉन्स्टिट्यूशन को मानते हो? तो इसने आर्गुमेंट दिया लगता है संविधान को यह अपने तरीके से तोड़ मरोड़ के पढ़ता है। इसने आर्गुमेंट दिया कि आर्टिकल 25 के क्लॉज बी में कहा गया है कि हिंदुइज्म के अंदर ही सिखिज्म को, जैनिज्म को, बुद्धिज्म को काउंट किया जाएगा। जब मेरा संविधान जो सिखिज्म है उसको अलग आइडेंटिटी नहीं देता तो मैं उस संविधान को कैसे मान सकता हूं। यानी यह वो व्यक्ति है जो संविधान में भी विश्वास इसलिए नहीं रखता क्योंकि इसको लगता है कि देश का संविधान सिखिज्म को अलग मान्यता नहीं देता। इस वजह से मैं संविधान को नहीं मानता। यह देश के संविधान को इग्नोर करने वाला व्यक्ति है और यह व्यक्ति फिलहाल चुनाव जीत कर आता है।

ये वो व्यक्ति है जो सही तरीके से यह ठहरा है कि खालिस्तान की मांग तो पंजाब में उठ ही रही है। बच्चा बच्चा इसकी मांग कर रहा है। जो इसके खिलाफ होता है उसका हश्र इंदिरा गांधी की तरह होता है। क्योंकि आपको मालूम होगा कि इंदिरा गांधी जी का भी कुछ इसी तरह से एसिनेट हुआ था जब कुछ खालिस्तानी प्रोटेस्टर्स के द्वारा इस तरह की हरकत की गई थी।

साथ ही साथ यह देश के गृहमंत्री को भी अपनी तरफ से धमकी देता है। आपको याद होगा खालिस्तान की बढ़ती मांग को देखकर पंजाब के अंदर ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था जिससे कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के ऊपर भी हमने एक सेशन किया था। आपको प्रॉपर तरीके से बताने से, जिसके बाद में मतलब बाय अ रिएक्शन इंदिरा गांधी जी का एसिनेट हुआ था उनके गनमैन के द्वारा जो बॉडीगार्ड थे, जो सिख थे, उनके द्वारा उनका एसिनेट किया गया था, जिससे देश में काफी सिख विरोधी दंगे उठे थे।

यह व्यक्ति कुछ उसी तरह की बातें करता है अमृतपाल सिंह। और यह पूरी तरह वैसे ही कंसीक्वेंसेस की अगर कोई खालिस्तान के विरोध में है तो उसे वैसे ही परिणाम भुगतने पड़ेंगे, ऐसी खुलेआम चुनौती देता है। यानी कि यह सत्ता को चुनौती देता है, यह संविधान को चुनौती देता है, यह देश को चुनौती देता है और यह चुनाव जीत कर आता है और हमारे चुनाव जीतने के बाद इसे बकायदा शपथ दिलाई जाती है। समझ ही नहीं आ रहा है कि मजाक चल रहा है हम देशवासियों के साथ में। हमें बेवकूफ बनाया जा रहा है। यह चल क्या रहा है?

विशेष रूप से यह सवाल उठना इसलिए भी लाजमी है क्योंकि यह व्यक्ति अभी फिलहाल के लिए आर्म्स एक्ट के तहत भी जिसके पास बड़ी मात्रा में असला था, इसके साथ-साथ एनएसए के तहत, एनएसए वही एक्ट जो इंदिरा गांधी जी की हत्या के बाद लागू किया गया था, उसी के तहत इसे पंजाब असम के डिब्रूगढ़ जेल में बंद किया हुआ है। यह व्यक्ति वहां से बाहर लाकर के वहां बैठे-बैठे चुनाव भी लड़ लेता है और चुनाव लड़ कर के प्रॉपर तरीके से अब शपथ भी ले लेता है।

अब आपके दिमाग में सवाल बनेगा कि क्या हमारा कानून इतना कमजोर है? क्या? तो देखिए असल मायने में क्या है कि हमारे देश के राजनेताओं ने कुछ अपने ऐसे मिसाल कायम किए हुए हैं कि राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के चलते भी राजनेता दूसरे राजनेताओं को जेल में डालते आए हैं कि भाई इनके ऊपर यह आरोप है कि इन्होंने ऐसा किया था।

तो चुनाव आयोग के द्वारा इस पर रोक लगाई गई थी कि केवल इस आधार पर कि आप के ऊपर किसी तरह के आरोप हैं, आप चुनाव नहीं लड़ सकते। इस तरह की कोई स्थिति नहीं बनाई गई। हां, एक स्थिति जरूर बनाई गई कि अगर आप को कोई कोर्ट फाइनल करके सजा दे चुका है कि भाई अब यह व्यक्ति सच में अपराधी है, अगर सजा मिल चुकी है, वह व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता है। लेकिन इसने फाइनल सजा नहीं मिली हुई है, केवल सस्पेक्टेड अपराधी है तो वह चुनाव लड़ सकता है।

इसी तरह की स्थिति में यह व्यक्ति चुनाव लड़ता है। साथ ही साथ कश्मीरी लीडर, राशिद खान की अगर चर्चा करें, जो कि जेल में यूएपीए के तहत बंद है। इस पर दिल्ली हाई कोर्ट में भी केस चल रहा है, यह जम्मू कश्मीर के पूर्व विधायक रह चुके हैं और अबकी बार यह लोकसभा का चुनाव लड़कर जीत कर आए हैं। यह वही राशिद हैं जिन पर टेरर फंडिंग और आतंकी समूहों को समर्थन के आरोप में केस चल रहा है।

सवाल यह है कि आखिर किस तरह की कानून व्यवस्था है हमारे देश की जो किसी भी व्यक्ति को इस तरह से लोकतांत्रिक संस्थाओं का हिस्सा बन जाने का अवसर दे देती है। साथियों यह संविधान और कानून का पेंच है। संविधान और कानून का पेंच इस मायने में कि संविधान और कानून आपको हर व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार देता है, जब तक कि उसने अपराध सिद्ध नहीं किया हो। और यही एक अवसर है। तो यानी हमारे लोकतंत्र की कमी का नतीजा है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो रही है। तो इस तरह की बातों को देखकर आप यह कह सकते हैं कि क्या हमारे लोकतंत्र की अति है या फिर कानून व्यवस्था का मजाक है?

तो यह कहना गलत नहीं होगा कि 2024 का चुनाव और 2024 की शपथ ग्रहण एक नए इतिहास के रूप में जानेगा। लोकतंत्र के नाम पर यह संभवतः एक नई शुरुआत है।

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