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अमर क्यों नहीं होते हम?

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अमर क्यों नहीं होते हम?

कई बार आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा: “हम अमर क्यों नहीं होते?” यह प्रश्न कोई नया नहीं है। हम सभी ने अलग-अलग रूपों में अमरता की कहानियाँ सुनी हैं, जैसे रावण की तपस्या या अन्य राक्षसों की अमर होने की चाहत। यह इंसान के लिए हमेशा से एक चुनौती रही है कि वह मरे नहीं। वैज्ञानिकों के लिए भी यह एक बड़ा कोतुहल का विषय रहा है कि इंसान मरता क्यों है।

लोग कहते हैं कि इंसान बूढ़ा होकर मरता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि इंसान बूढ़ा क्यों होता है। कुछ कहते हैं कि पर्यावरण प्रदूषण, खानपान, और अन्य कारणों से इंसान बूढ़ा होता है। लेकिन असल में, इसका जवाब वैज्ञानिकों ने खोज लिया है: इंसान इसलिए मरता है क्योंकि उसकी कोशिकाएं अमर नहीं होतीं।

अब आप कहेंगे कि कोशिकाओं का मरना कोई नई बात नहीं है। हम तो हर दिन सुनते हैं कि शरीर में कोशिकाएं मरती रहती हैं और नई बनती रहती हैं। लेकिन वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि कोशिकाएं अनंतकाल तक विभाजन नहीं कर सकतीं; इनके विभाजन की भी एक सीमा होती है।

इस सीमा का पता सबसे पहले लियोनार्ड हेफ्लिक नाम के वैज्ञानिक ने लगाया। उन्होंने बताया कि कोशिकाएं अधिकतम 60 बार विभाजन कर सकती हैं। इसके बाद, कोशिकाएं विभाजित होना बंद कर देती हैं, और व्यक्ति की मृत्यु निश्चित हो जाती है।

इस सीमा का कारण कोशिकाओं के क्रोमोसोम्स के किनारों पर मौजूद टेलोमेर्स होते हैं। जैसे-जैसे कोशिकाएं विभाजित होती हैं, टेलोमेर्स छोटे होते जाते हैं। एक समय आता है जब टेलोमेर्स खत्म हो जाते हैं और इसके साथ ही कोशिकाएं भी विभाजन करना बंद कर देती हैं, जो इंसान की मृत्यु का कारण बनता है।

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वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान खोजने की कोशिश की है। उन्होंने टेलोमेर्स को बढ़ाने, डीएनए को बदलने, और अन्य जैविक विधियों का उपयोग करने की कोशिश की है। लेकिन हर प्रयास में यह डर रहता है कि अगर कोशिकाओं का अनियंत्रित विभाजन शुरू हो गया, तो यह कैंसर का रूप ले सकता है।

अंततः, हेफ्लिक लिमिट ने यह साबित किया कि जीवन एक निश्चित अवधि के लिए है और अमरता का वरदान किसी को नहीं मिला है, न ही भविष्य में मिलेगा। वैज्ञानिकों की अब तक की रिसर्च यही कहती है।

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