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पुतिन की हार के पीछे क्या है कारण? 30 साल बाद मोदी का चौंकाने वाला यूक्रेन दौरा

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पुतिन की हार के पीछे क्या है कारण? 30 साल बाद मोदी का चौंकाने वाला यूक्रेन दौरा

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी खबर है कि पुतिन अब हारते नजर आ रहे हैं। अब आप सोच सकते हैं कि “हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं,” यह बात बॉलीवुड में तो सुनी है, लेकिन क्या यह पुतिन पर लागू होती है? ताजे अपडेट्स के अनुसार, यूक्रेन ने दावा किया है कि उन्होंने लगभग 1100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर रूस से कब्जा कर लिया है। दूसरी ओर, रूस ने अपनी सीमा से लगभग 2 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया है। यह एक विचारणीय बात है कि पुतिन, जिन्होंने यूक्रेन के पूर्वी हिस्से पर 20% से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर रखा था, अब अचानक अपने लोगों को खाली करा रहे हैं। यह प्रश्न उठता है कि पुतिन ने इतनी बड़ी बढ़त हासिल करने के बाद अब अपने नागरिकों को सुरक्षित क्यों किया? जबकि यूक्रेन की सेना लगातार उनके खिलाफ बढ़ती जा रही है।

इस बीच, पुतिन अज़रबैजान की यात्रा पर हैं और वहां राजकीय सम्मान प्राप्त कर रहे हैं, जबकि यूक्रेन की सेना रूस की सीमा के भीतर घुसपैठ कर रही है। यह देखकर कई लोग हैरान हो रहे हैं कि पुतिन हार क्यों रहे हैं? और क्या यह यूक्रेन के लिए एक ट्रैप है?

इस बीच, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 23 अगस्त को यूक्रेन की यात्रा पर जा रहे हैं। यह यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह 30 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा होगी। इससे सवाल उठता है कि मोदी जी इस समय यूक्रेन क्यों जा रहे हैं? जब यूक्रेन और रूस के बीच कोई बातचीत नहीं हो रही है, तब यह दौरा इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

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इसका एक कारण यह हो सकता है कि भारत वर्तमान में G-20 का अध्यक्ष है, और मोदी जी के पास अब कुछ महत्वपूर्ण नेताओं के नाम आ चुके हैं, जिनमें यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी शामिल हैं। ऐसे में भारत का रुख, जो अब तक न्यूट्रल था, इस दौरे के बाद साफ हो सकता है।

इस यात्रा का एक और बड़ा कारण हो सकता है कि भारत अब अपनी भूमिका को स्पष्ट करने जा रहा है। भारत ने अब तक दोनों पक्षों को बराबर का दर्जा दिया है, लेकिन अब संभव है कि भारत कुछ नतीजे निकालने की कोशिश करे। अमेरिका की ओर से भी दबाव है कि भारत अपनी स्थिति साफ करे। हालांकि, रूस के साथ भारत की मित्रता अडिग है और यह दौरा दोनों देशों के संबंधों पर असर नहीं डालेगा।

इस पूरे परिप्रेक्ष्य में, यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री मोदी इस दौरे के माध्यम से क्या संदेश देना चाहते हैं। क्या यह दौरा रूस-यूक्रेन विवाद में भारत की नई भूमिका की ओर इशारा करता है? यह तो समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तो तय है, यह यात्रा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नए समीकरण बनाने वाली हो सकती है। अब यह देखना होगा कि पुतिन की हार वास्तव में क्या मायने रखती है, और भारत के प्रधानमंत्री का यूक्रेन दौरा क्या नई दिशा दिखाता है।”

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