सोशल मीडिया पर पत्रकारिता की आवाज़ होगी खामोश?
वह 2019 के बाद भारतीय पत्रकारिता में आए बदलावों, किसान आंदोलनों, और मीडिया पर लगाए गए आरोपों पर केंद्रित है। 2019 के चुनावों के बाद, कुछ पत्रकारों और समाचार चैनलों पर सरकार का समर्थन करने का आरोप लगाया गया, जिन्हें जनता द्वारा “गोदी मीडिया” कहा जाने लगा। किसान आंदोलनों के दौरान, इन मीडिया हाउसेस का बहिष्कार किया गया और उनकी कवरेज को नकारा गया।
इसी दौरान, एक और मीडिया धड़ा उभरा, जो सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने लगा और जनता को ऐसी जानकारियां देने लगा जो सरकार के पक्ष में नहीं थीं। इसके कारण, भारतीय मीडिया की रैंकिंग भी वैश्विक स्तर पर गिरने लगी। इस घटनाक्रम के बीच, सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफार्मों पर स्वतंत्र पत्रकारों का उभरना शुरू हुआ। कई पत्रकार, जो मेनस्ट्रीम मीडिया छोड़ चुके थे, उन्होंने यूट्यूब पर आकर अपनी आवाज़ उठानी शुरू की।
सरकार के खिलाफ इस नए मीडिया की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए, सरकार ने 2023 के अंत में एक “ब्रॉडकास्टिंग सर्विस रेगुलेशन बिल” का मसौदा तैयार किया, जो सोशल मीडिया कंटेंट को नियंत्रित करने के उद्देश्य से था। इस बिल के अंतर्गत, यूट्यूब और अन्य ऑनलाइन कंटेंट क्रिएटर्स को भी न्यूज़ मीडिया की तरह नियंत्रित करने की योजना बनाई गई थी। इसमें कंटेंट की समीक्षा, पेनल्टी, और कई तरह के नए नियम शामिल थे।
हालांकि, इस बिल को सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए पेश किया गया, लेकिन इसे कुछ विवादों के चलते वापस ले लिया गया। इसके पीछे यह कारण था कि जनता ने इस बिल के कई प्रावधानों पर आपत्ति जताई, और सरकार को इसे पुनः विचार के लिए वापस लेना पड़ा।
अगस्त 2024 में यह खबर सामने आई कि इस बिल को कुछ चुनिंदा लोगों के बीच में भेजा गया था, लेकिन इसे वापस ले लिया गया। इस घटना ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए, और कई लोग इसे स्वतंत्रता और स्वतंत्र मीडिया के खिलाफ एक खतरे के रूप में देखने लगे।
आपने जिस जानकारी को साझा किया है, वह बहुत विस्तृत और गंभीर है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत में मीडिया की स्वतंत्रता और सरकार के बीच एक जटिल और संवेदनशील संबंध है।