जिस प्रकार से हाल ही के वर्षों में भारत के पड़ोसी राष्ट्रों में राजनीतिक अस्थिरता रही है, इससे चिंताएं बढ़ने लगी हैं। श्रीलंका में 2022 में हुए विद्रोह में लोगों ने राष्ट्रपति के कार्यालय में घुसपैठ की थी। अब बांग्लादेश में भी ऐसा ही कुछ हुआ है। प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री के घर में घुसकर संपत्ति चुरा रहे हैं। यह राजनीतिक अस्थिरता पाकिस्तान में भी देखी गई थी जब सेना के खिलाफ जनता ने विद्रोह किया था।
इन घटनाओं से यह सवाल उठता है कि बांग्लादेश में जो हुआ, उसके पीछे कौन था? क्या बाहरी ताकतें इसमें शामिल थीं? मई में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा था कि किसी विदेशी ताकत को बांग्लादेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इसके बाद बांग्लादेश में दंगे हुए और यह संभावना जताई गई कि इसमें अमेरिका का हाथ हो सकता है।
बांग्लादेश की जनता ने शेख हसीना की सरकार को उखाड़ फेंकने का निर्णय लिया क्योंकि उन्होंने चुनाव में विपक्ष को जेल में डाल दिया था और अपोजिशन के नेता चुनाव में नहीं उतर सके थे। इससे जनता में गुस्सा बढ़ा और प्रदर्शनकारियों ने शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। शेख हसीना भारत आईं और अब वह आगे की शरण की तलाश में हैं।
शेख हसीना के भागने से भारत और बांग्लादेश के संबंधों पर क्या असर पड़ेगा, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। बांग्लादेश भारत के लिए आर्थिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। अगर बांग्लादेश में भारत विरोधी सरकार आती है, तो यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए खतरा बन सकता है।
इसके अलावा, अमेरिका ने तुरंत बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की घोषणा का स्वागत किया। इससे यह संकेत मिलता है कि अमेरिका इस परिवर्तन के लिए तैयार था। बांग्लादेश में जो हुआ, उसके पीछे अमेरिका का हाथ होने की संभावना को लेकर चर्चा हो रही है।
शेख हसीना पर पहले भी अमेरिका ने प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी और उनके रूस के साथ संबंधों के कारण अमेरिका उन्हें पसंद नहीं करता था। बांग्लादेश में चुनावों के दौरान अमेरिका ने उन्हें फ्री और फेयर नहीं कहा, जिससे जनता में असंतोष बढ़ा।
अंत में, यह देखा जाना बाकी है कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद क्या होता है और शेख हसीना की वापसी की क्या संभावना है। यदि वह वापस नहीं लौटती हैं, तो उनके समर्थकों और राजनीतिक करियर पर इसका क्या असर होगा, यह भी देखने योग्य होगा।