उत्तर प्रदेश, भारत का वह राज्य जो सर्वाधिक लोकसभा की सीटें देता है, उस राज्य के चुनाव परिणामों का क्या असर पड़ा, इसका विश्लेषण करने और यह बात इसलिए मायने रखती है क्योंकि वर्तमान में उत्तर प्रदेश के अंदर सियासी उठापटक की तैयारियां चल रही हैं।
इस समय पर बीजेपी के अंदर जिस तरह की तैयारियां चल रही हैं, वह सोशल मीडिया पर साफ दिखाई दे रही हैं। हालांकि बीजेपी जानी जाती है इस बात के लिए कि उसके अंदर की चीजें बाहर तक न निकलें, लेकिन कयास लगाने वालों का क्या है, दबा के कयास लगाए जा रहे हैं। सारी घटनाएं क्यों उठती हैं और किस तरह से मायने रखती हैं, आज के सेशन में चर्चा होगी।
जैसा कि आप जानते हैं, उत्तर प्रदेश के अंदर कहा जाता है कि जिसने उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों पर नियंत्रण पा लिया, समझो उसने सरकार में अपना पैर जमा लिया। इस बार के लोकसभा परिणामों में 80 में से केवल 33 सीटें ही जीतने में बीजेपी कामयाब रही, जो कि वर्तमान में सत्तारूढ़ पार्टी है। दूसरी ओर, विपक्ष की तरफ से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 43 सीटें जीतने में कामयाबी पाई। ऐसी स्थिति में सत्तारूढ़ पार्टी के मुख्यमंत्री का पद बरकरार रहेगा या नहीं, यह सवाल उठता है।
इस बार के चुनाव परिणाम बीजेपी के लिए चिंताजनक साबित हुए हैं। उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार का प्रमुख कारण जातिवाद और पीडीए गठबंधन रहा है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने की नीति बनाई, जिससे वे चुनाव में अच्छे परिणाम पाने में सफल रहे। इसके अलावा, योगी आदित्यनाथ की नेतृत्व क्षमता और उनकी सरकार द्वारा किए गए कार्यों पर भी सवाल उठे हैं।
बीजेपी के लिए यह समय आत्ममंथन का है। पार्टी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने हार के कारणों की समीक्षा करने के लिए 40,000 से अधिक पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और एक 15 पेज की रिपोर्ट तैयार की, जो प्रधानमंत्री को सौंपी गई। इस रिपोर्ट में हार के कई कारण बताए गए, जिनमें संगठन के कार्यकर्ताओं की नाराजगी और ब्यूरोक्रेसी के उपयोग के तरीके शामिल हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या योगी आदित्यनाथ जी का नेतृत्व कमजोर साबित हुआ है और क्या उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सकता है? इस बीच, विपक्ष के नेताओं, खासकर अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्या के बीच राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है।
अखिलेश यादव ने एक ट्वीट में तंज कसते हुए कहा कि “100 लाओ, सरकार बनाओ,” जिसका मतलब है कि अगर केशव प्रसाद मौर्या अपने साथ 100 विधायकों को लेकर समाजवादी पार्टी में शामिल हो जाते हैं, तो वे सरकार बना सकते हैं। इस पर केशव प्रसाद मौर्या ने पलटवार करते हुए इसे खयाली पुलाव कहा।
उत्तर प्रदेश में वर्तमान राजनीतिक समीकरण को समझने के लिए, 403 विधानसभा सीटों में से 393 सीटें अब सक्रिय हैं। बीजेपी के पास 251 सीटें हैं, जबकि समाजवादी पार्टी के पास 105 सीटें और कांग्रेस के पास 2 सीटें हैं। अगर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर 100 विधायक और जोड़ लेते हैं, तो वे सरकार बना सकते हैं।
इस तरह की राजनीतिक उठापटक और बयानबाजी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जारी है। आने वाले महीनों में बाईपोल चुनाव होने हैं और देखना यह होगा कि बीजेपी अपनी रणनीति को कैसे सुधारती है और उत्तर प्रदेश की राजनीति में क्या बदलाव आता है।