Headlines

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ संविधान संशोधन और चुनाव सुधार की चुनौतियाँ

222325665899666556

वन नेशन वन इलेक्शन’ संविधान संशोधन और चुनाव सुधार की चुनौतियाँ

आज हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के माध्यम से संविधान संशोधन की बात या चुनाव कराने की जो योजना है, उसमें असली समस्या क्या है? क्या वर्तमान एनडीए सरकार इस समस्या को हल कर पाएगी? इन सभी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा आज के सत्र में होगी। तो जल्दी से सत्र को साझा करें और जानकारी प्राप्त करना शुरू करें।

सबसे पहले ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ शब्द की बात करें। देश में आज लोकसभा, विधानसभा, पंचायती राज और अर्बन बॉडीज के चुनाव होते हैं, जहां हम सभी हिस्सा लेते हैं। लोकसभा के चुनाव को आम चुनाव कहा जाता है, विधानसभा के चुनावों में राज्य सरकारों के लिए चुनाव होते हैं, और पंचायती राज के चुनाव राज्य चुनाव आयोग कराता है। एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में इन तीनों चुनावों के लिए वोट देता है, लेकिन जब वह वोट देता है तो उसका समय और देश के संसाधन दोनों खर्च होते हैं।

लोकसभा चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग पूरी तैयारियां करता है, जैसे कि इलेक्टोरल रोल्स बनाना, ईवीएम की व्यवस्था करना, चुनाव प्रचार की तैयारियां करना, आदि। फिर विधानसभा के चुनाव होते हैं, तब फिर से यह सारी प्रक्रिया दोहराई जाती है। फिर पंचायती राज के चुनाव होते हैं, तो फिर से यह सारी प्रक्रिया दोहराई जाती है। इन कई बार की प्रक्रिया से होने वाले नुकसान से बचने के लिए इन सभी चुनावों को एक ही बार में कराने का प्रस्ताव लाया गया।

इस प्रस्ताव में दो प्रमुख बिंदु थे: पहला, लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं। दूसरा, पंचायती राज और स्थानीय निकायों के चुनाव लोकसभा-विधानसभा के चुनावों के 100 दिन के अंतराल में कराए जाएं। पूरे देश में इसी तरह चुनावों को एक साथ कराने की योजना को ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ कहा जाता है।

क्या यह वर्तमान सरकार की नई सोच है या इससे पहले भी यह विचार आ चुका है? देश की आजादी के बाद से लगातार चार लोकसभा चुनाव विधानसभाओं के साथ ही हुए थे। लेकिन समय के साथ कुछ विधानसभाएं भंग होती रहीं और यह प्रणाली बदल गई। वर्तमान में केंद्र सरकार चाहती है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं ताकि खर्च बचे और सुरक्षा बल तथा शिक्षक अन्य कार्यों में व्यस्त हो सकें।

0000000000000000000000000000

इस योजना को लागू करने के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता है। लोकसभा में इस विषय पर वोटिंग हुई। 17 दिसंबर को जब वोटिंग हुई, तो 269 सांसदों ने पक्ष में और 198 सांसदों ने विपक्ष में वोट दिया। संविधान संशोधन के लिए लोकसभा में कुल सदस्य संख्या के 50% से अधिक सांसदों का समर्थन आवश्यक है, और सदन में उपस्थित सांसदों का दो तिहाई बहुमत चाहिए।

संविधान संशोधन बिल को पास करने में कुछ तकनीकी बाधाएं हैं। इस बिल को पास करने के लिए 272 से ज्यादा सीटों की आवश्यकता है, लेकिन जो लोग प्रेजेंट हैं, उनका दो तिहाई होना चाहिए। इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया।

संविधान संशोधन की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा। उदाहरण के लिए, राजस्थान में 2023 में विधानसभा के चुनाव हुए थे और लोकसभा के चुनाव 2024 में होंगे। अगर इन्हें एक साथ कराना है, तो या तो लोकसभा का कार्यकाल घटाना पड़ेगा या विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाना पड़ेगा। संविधान में संशोधन करके आर्टिकल 83 (जो लोकसभा के कार्यकाल को 5 साल का बताता है) और आर्टिकल 172 (जो विधानसभा के कार्यकाल को 5 साल का बताता है) में परिवर्तन करना होगा।

17 दिसंबर को संसद में दो बिल पेश किए गए थे: एक संविधान संशोधन बिल और दूसरा केंद्र शासित प्रदेश कानूनों में संशोधन करने का बिल। इसमें कहा गया था कि पांडिचेरी, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ ही कराया जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *