दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, बांग्लादेश से ज्यादा भूखी?
सोचिए कि एक सुबह आपको एक कॉल आए और आपसे पूछा जाए, “भैया, आप भूखे हैं?” आप जवाब दें, “हां यार, लंच टाइम हो रहा है, भूख तो लगी है। बताइए, क्या बात है?” और फिर कॉल कट जाए। तब समझ जाइएगा कि आपने भारत को शर्मिंदा कर दिया है। ऐसा क्यों? क्योंकि आज एक ऐसी रिपोर्ट की चर्चा है, जो इस प्रकार के कॉल्स से तैयार की गई है। इसमें लोगों से पूछा गया, “भूख लगी है?” और आपने जवाब दिया, “हां भाई, लगी है, लंच टाइम हो गया है।” और इस तरह से 3000 लोगों के जवाबों के आधार पर देश को पूरी दुनिया में शर्मिंदा होना पड़ा।
आगे से जब भी कोई फोन आए, तो संभलकर जवाब दें। क्योंकि आपके गलत जवाब के चलते हो सकता है कि इंडिया की लिस्ट में जो आज 127 देशों में 105वें स्थान पर है, वो और भी खराब हो जाए। हमें सबसे बड़ा भूखा देश बताया गया है। कहा गया है कि भुखमरी के हालात यहां दुनिया के 127 देशों में 105वें नंबर पर हैं। आप दुनिया की पांचवीं बड़ी इकॉनमी होने का दावा करते हैं, कि हमने फलाने देश को अनाज भेजा, दवा भेजी, मदद की, लेकिन आप खुद के भूखे हैं।
यह रिपोर्ट ग्लोबल हंगर इंडेक्स की है, जिसमें भारत को सीरियस कैटेगरी का भूखा बताया गया है। हमारे पड़ोसी देश और डेवलप्ड कंट्रीज काफी अच्छी स्थिति में हैं। उनका पेट भरा हुआ है। दुनिया ने यूनाइटेड नेशंस के अंदर सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स सेट किए हैं, जिनमें हंगर को मिटाना एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
अब आपके मन में सवाल उठ सकता है कि 3000 लोगों के कॉल पर दिए जवाब से कैसे तय हो सकता है कि आप कितने भूखे हैं? लेकिन केवल कॉल ही नहीं, और भी कारक हैं, जैसे चाइल्ड मोर्टालिटी, बच्चों की हाइट और वजन, जो इस इंडेक्स में शामिल होते हैं। भारत की डाइवर्सिटी इतनी जबरदस्त है कि यहां हर क्षेत्र के लोग अलग-अलग हाइट, रंग, और वजन के पाए जाते हैं। इसलिए इस तरह की रिपोर्ट भारत के लिए शर्मिंदगी का कारण बन जाती है।
भारत के पड़ोसी देश नेपाल, श्रीलंका, और बांग्लादेश हमसे बेहतर स्थिति में पाए गए हैं। 2014 में हम 55वें नंबर पर थे और आज 105वें नंबर पर। 10 साल में ऐसा क्या हुआ कि हमारी स्थिति इतनी खराब हो गई? सरकार ने बच्चों को छोटा कर दिया, या उनके खाने में से कुछ छीन लिया?
ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रैंकिंग में सुधार कैसे होगा? इसमें चार पैमाने हैं: अंडर नरिचमेंट, चाइल्ड वेस्टिंग, चाइल्ड स्टंटिंग, और चाइल्ड मोर्टालिटी। ये पैमाने हमारे देश की विविधता को ध्यान में नहीं रखते। जैसे कि 3000 लोगों से पूछा गया, “भूख लगी है?” और आपने जवाब दिया, “हां,” तो आपने 33% नंबर गलत करवा दिए। बच्चों की हाइट और वजन को भी अलग-अलग क्षेत्रों में नापा नहीं जा सकता।
इस तरह की रिपोर्ट्स से हमारे देश की वास्तविक स्थिति का सही आकलन नहीं हो पाता। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के चार पैमानों में से तीन, यानी अंडर नरिचमेंट, चाइल्ड स्टंटिंग, और चाइल्ड वेस्टिंग हमारे देश की विविधता को सही से नहीं दर्शाते। चाइल्ड मोर्टालिटी ही एकमात्र आंकड़ा है, जिससे देश की सेहत का सही अंदाजा लगाया जा सकता है। हमें इन रिपोर्ट्स को समझदारी से लेना होगा और सुधार के लिए सही कदम उठाने होंगे।
यूनानिमिटी बहुत ज्यादा है, हर तरह की डाइवर्सिटी है, लेकिन सभी इसे मानते हैं। फिर आता है चाइल्ड मोर्टालिटी। इस आंकड़े को मिला लो। सरकार को पूरे देश में जज करना होता है, तो इस आंकड़े पर करो। इंटरेस्टिंग बात यह है कि 2014 में इनके आंकड़े बहुत ही ड्रास्ट्रिक थे और अब हम 105वें रैंक पर हैं। मतलब पहले हम भूखे नहीं थे और अचानक भूखे हो गए। यह सोचने वाली बात है। अचानक भूखे हो गए तो कैसे पता चला होगा? एक फिगर जो आपके पास है वह यह है कि हमारे कितने बच्चे मर रहे हैं। बच्चों की मृत्यु दर में कमी आई है, जो अच्छी बात है।
यह जो हाइट घटना है, सरकार इसे घटा नहीं सकती। लेकिन समझदार लोगों का क्या कहना है, वो सुनिए। बच्चे की हाइट क्यों घटती है या उसका वजन क्यों नहीं बढ़ता, इसके पीछे का लॉजिक क्या है? बच्चा जब पैदा होता है, तो अपनी मां का दूध पीता है, मां के पास रहता है। जिस तरह का खानपान मां करेगी, उसी से उसकी हाइट और वजन मानी जाएगी। यह सच भी है कि स्टंटिंग और वेस्टिंग पर पोषण का बहुत असर पड़ता है। लेकिन क्या केवल पोषण का ही असर पड़ता है? यह बहुत बड़ा कारण है।
मान लीजिए कि आपसे यह कहा जाए कि जिस क्षेत्र में बच्चों की हाइट नहीं बढ़ रही है, वहां आप उन्हें खूब खिलाकर देख लीजिए। क्या उनकी हाइट बढ़ जाएगी? नहीं, कुछ चीजों में जीन्स का भी फर्क होता है। केवल खिलाना ही फैक्टर नहीं हो सकता। लेकिन यह भी सत्य है कि जब बच्चों को प्रॉपर आहार नहीं मिलता, तो उनकी हाइट उतनी नहीं बढ़ती जितनी बढ़नी चाहिए।
इस मामले में उनका कहना है कि हम बच्चों को पैमाना इसलिए मानते हैं क्योंकि उनकी माताओं ने सही से पोषण नहीं लिया होगा, तो बच्चों की हाइट कैसे बढ़ेगी। माताओं ने पोषण नहीं लिया होगा और अगर वे एनीमिक हैं या अल्प पोषण का शिकार हैं, तो बच्चों पर उसका असर दिखेगा।
मैंने आपको बता दिया कि ये लोग कैसे जज करते हैं। अब देखते हैं कौन से देश हैं जो हमसे ऊपर हैं। लिस्ट में इंडिया 105वें नंबर पर है। इथियोपिया, हॉर्न ऑफ अफ्रीका वाला देश, सिविल वॉर के लिए जाना जाता है, हमसे ऊपर है। रवांडा, जो ब्रिटेन के शरणार्थियों से पैसा कमा रहा है, हमसे ऊपर है। बेनिन, बुर्किना फासो, माली, कोंगो, जिबूती जैसे देश हमसे ऊपर हैं।
म्यांमार, ताजिकिस्तान, घाना, इजिप्ट, जॉर्डन, इक्वाडोर, श्रीलंका भी हमसे ऊपर हैं। लेबनान, जिस पर इजराइल लगातार हमले करता है, भी हमसे ऊपर है।
यह रिपोर्ट वेल्ट हंगर हेल्फ कंसर्न वर्ल्ड वाइड और इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा मिलकर निकाली जाती है। इस रैंकिंग के लिए चार फैक्टर हैं: अंडर नरिचमेंट, चाइल्ड स्टंटिंग, चाइल्ड वेस्टिंग, चाइल्ड मोर्टालिटी।
भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों का वजन कम है, हाइट कम है, और चाइल्ड मोर्टालिटी 2.9 है। हमारे आंकड़े सुधर रहे हैं, लेकिन यह रैंकिंग बिगड़ रही है। 2014 में जब मोदी सरकार आई थी, तब भारत की रैंकिंग 55 थी। 2015 में 80, 2016 में 97, 2017 में 100 हो गई। यह साफ-साफ बायस दिखाता है। सरकारें इसको रिवर्स भी नहीं कर सकती। इस तरह की रैंकिंग सवाल खड़े करती हैं और भारत सरकार ने पहले भी इस पर सवाल उठाए हैं।
हम भारत के लोग दुनिया की रिपोर्ट्स से बहुत प्रभावित होते हैं। 140 करोड़ लोगों में 3000 लोगों का डाटा लेकर रैंकिंग निकालना उचित नहीं है। हमारे देश में जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन, नियुक्तियों की प्रभावी कमी, अवेयरनेस की कमी, ऐसे बहुत से कारक हैं जो हमारी भूख के लिए जिम्मेदार हैं। हम किसी भी तरह से यह नहीं मान सकते कि हमारे देश में भूखमरी नहीं है। सरकार के अपने स्तर पर प्रयास हैं और वे निरंतर इसे सुधारने का प्रयास कर रही हैं।