51वें चीफ जस्टिस बने संजीव खन्ना | कभी इनके चाचा को इंदिरा गांधी ने नहीं बननें दिया था CJI ?
आज देश के 51वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने शपथ ग्रहण कर लिया है। उनकी नियुक्ति जब सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे, उस समय भी विवादों में रही थी। यह खुद पुराने इतिहास के साथ विवादों में जुड़े हुए हैं, क्योंकि जब इनके चाचा जी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनने वाले थे, उस समय इंदिरा गांधी जी ने उनकी नियुक्ति को रोक दिया था। इस तरह से यह माना जाता है कि इनकी नियुक्ति उस का कंपनीसेशन में की गई थी।
वर्तमान में चंद्रचूड़ साहब रिटायर हो गए और उनकी जगह आपने आज यानी मंडे के दिन शपथ ग्रहण सुबह 10 बजे कर लिया है। आपका नाम है संजीव खन्ना और आप देश के 51वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया कहलाएंगे। इनका कार्यकाल मई 2025 तक रहेगा। कार्यकाल लगभग 6 महीने का रहेगा और इस 6 महीने के कार्यकाल में आप काफी सारे बड़े फैसले लेने वाले हैं। काफी सारे बड़े केसेस इनकी बेंच के सामने लिस्टेड हैं।
चंद्रचूड़ साहब रिटायर हुए और उनके स्थान पर जस्टिस खन्ना 51वें चीफ जस्टिस के रूप में आज के दिन शपथ लिए। यही सुर्खी हर जगह बनी हुई है। 13 मई 2025 तक आपका कार्यकाल रहेगा और सुबह 10 बजे इनको शपथ ग्रहण करा दिया गया। यह कार्यक्रम की तस्वीरें देख सकते हैं जहां राष्ट्रपति इनको शपथ ग्रहण करवा रही हैं। राष्ट्रपति के द्वारा इनको शपथ ग्रहण करवाई गई। इनके बारे में थोड़ा सा तथ्यात्मक जानकारी जान लीजिए। आपका जन्म 1960 में हुआ था। भारत के अंदर सुप्रीम कोर्ट के अंदर अगर किसी को चीफ जस्टिस होना है तो उसकी अधिकतम उम्र 65 वर्ष तक हो सकती है। आपने 14 मई 1960 को जन्म लिया था। इसलिए 13 मई 2025 में आप 65 साल के होंगे और आपका कार्यकाल पूर्ण हो जाएगा।
1993 में आप दिल्ली के अंदर बार काउंसिल के अंदर एडवोकेट बने। 2004 में आप स्टैंडिंग काउंसिल, यानी सरकारी वकील बने। 2006 में आप दिल्ली हाई कोर्ट के परमानेंट जज बने। 2019 में इन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में एलीवेट किया गया। दिल्ली हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट जाना बड़ा विवादों में रहा था। इनके ऊपर के जो 32 जज थे, उनको छोड़कर इन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में लिया गया था। यह मामला बहुत विवादित हुआ था। राष्ट्रपति को लेटर लिखकर बताया गया था कि इनकी नियुक्ति 32 जजों को क्रॉस करके हुई है।
सुप्रीम कोर्ट के अंदर इनकी नियुक्ति कॉलेजियम ने डिसाइड की थी। कॉलेजियम ने इन्हें अपलिफ्ट किया था। सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने इन्हें अपने कैडर में बुलाया था। इसका मतलब यह हुआ कि इनके लिए सरकार नहीं, कॉलेजियम जिम्मेदार है। वर्तमान सरकार ने इस कॉलेजियम सिस्टम को हटाने के लिए NJAC लाने का प्रयास किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे भी हटा दिया। सुप्रीम कोर्ट के अंदर जजेस की नियुक्ति को लेकर काफी सवाल उठते हैं।
चंद्रचूड़ साहब ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में संजीव खन्ना का नाम भेज दिया था। यह सुप्रीम कोर्ट के अंदर एक व्यवस्था है कि कौन सीजेआई बनेगा, इसके लिए बाहरी संस्थान का कोई दखल नहीं है। लोकतांत्रिक देश में न्यायपालिका में संसद का कंट्रीब्यूशन हो, इसकी बहुत बार मांग उठी है। एनडीए गठबंधन ने भी एक बार प्रयास किया था कि कुछ ऐसा बनाया जाए जिससे सीजेआई की नियुक्ति या फिर जजों की नियुक्ति में सरकार का इंटरफेरेंस हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपनी स्वतंत्रता में दखल करार दिया।
न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, क्योंकि जब आप ही अपनों को नियुक्त कर रहे हैं, तो सीनियरिटी की बात कहां रह जाती है? दिल्ली हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में इनकी नियुक्ति के समय 32 जजों को बाईपास कर दिया गया था। यह 2019 में ही सुप्रीम कोर्ट आ गए थे ताकि भविष्य में सीजेआई बन सकें। इनके चाचा हंसराज खन्ना जो कभी सीजेआई बनने से बस एक कदम चूके थे क्योंकि इंदिरा गांधी ने उनकी नियुक्ति नहीं की थी।
हंसराज खन्ना ने इंदिरा गांधी की सरकार की इमरजेंसी का विरोध किया था। वह इमरजेंसी के विरोध करने वालों में थे, इस कारण से उन्हें सीजेआई नहीं बनाया गया। 1977 में वरिष्ठता के आधार पर उनका बनना तय हुआ था, लेकिन जस्टिस एम एच बेग को सीजेआई बना दिया गया। इसके विरोध में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा दे दिया। जब इंदिरा गांधी की सरकार गिरी, तब उन्हें चौधरी चरण सिंह की सरकार में तीन दिन का कानून मंत्री बनाया गया।
संजीव खन्ना 2023 में चेयरमैन ऑफ सुप्रीम लीगल सर्विस कमेटी भी रहे। वर्तमान में एग्जीक्यूटिव चेयरमैन ऑफ नेशनल लीगल सर्विस हैं और 2025 तक सीजेआई रहेंगे। इनके पिता दिल्ली हाई कोर्ट के जज रहे हैं और चाचा हंसराज खन्ना सुप्रीम कोर्ट के मशहूर जज थे। हंसराज खन्ना ने इमरजेंसी का विरोध किया था और उन्हें सीजेआई नहीं बनाया गया था।
2019 में संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। उस समय दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस कैलाश ने राष्ट्रपति को लिखा था कि यह गलत परिपाटी सेट हो रही है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज बनते समय राष्ट्रपति कोविंद ने इन्हें अपॉइंटमेंट दी थी।
संजीव खन्ना ने आर्टिकल 377, इलेक्टोरल बॉन्ड के मामलों में ऐतिहासिक फैसले दिए हैं। 6 साल के करियर में 450 बेंच में हिस्सा लिया है और 115 फैसले लिखे हैं। 8 नवंबर को एएमयू से जुड़े मामले में यूनिवर्सिटी को माइनॉरिटी स्टेटस देने का समर्थन किया। 370 का फैसला, इलेक्टोरल बॉन्ड, वीवीपट के मामलों में भी इनका समर्थन रहा है। इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार देने वाला फैसला भी इन्हीं की बेंच ने दिया था।
एमओपीएसी के तहत इनकी नियुक्ति हुई है। चंद्रचूड़ साहब ने 11 अक्टूबर को कानून मंत्री को नाम भेजा था। सबसे सीनियर मोस्ट जज को सीजेआई बनाया जाता है। अगले 7 सालों में आठ जजेस बनेंगे। संजीव खन्ना के बाद बीआर गवाई, सूर्यकांत जी, विक्रम नाथ जी, बीवी नाग रत्ना इस क्रोनोलॉजी में आने वाले हैं।
इंदिरा गांधी के समय दो बार सीनियर मोस्ट जज को सीजेआई नहीं बनाया गया। पहली बार 1973 में जस्टिस ए एन रे को सीजेआई बनाया गया और दूसरी बार हंसराज खन्ना को सीनियर मोस्ट होते हुए भी सीजेआई नहीं बनाया गया। हंसराज खन्ना को 1977 में वरिष्ठता के आधार पर सीजेआई बनना था, लेकिन जस्टिस एम एच बेग को सीजेआई बना दिया गया। इसके पीछे कारण था कि हंसराज खन्ना ने संविधान संशोधन के मामले में इंदिरा गांधी के फैसले का विरोध किया था।
संजीव खन्ना पांच बड़े मामलों की सुनवाई करेंगे अपने छह महीने के कार्यकाल में। इन मामलों में मेरिटल रेप केस, इलेक्शन कमीशन के सदस्यों का अपॉइंटमेंट का प्रोसेस, बिहार की जातिगत जनगणना की वैधता, सबरीमाला केस का रिव्यू और सेडिशन की संवैधानिकता शामिल हैं।