10 दिन पहले सगाई हुई, हज़ारों जानें बचाने के लिए खुद शहीद हुए
यह अत्यंत गर्व की बात है कि उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए दूसरों की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। यह निस्संदेह गौरव का विषय है, लेकिन दुखद भी है कि मेरा इकलौता बेटा अब हमारे बीच नहीं रहा। यह शहीद फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव का पार्थिव शरीर है। उनकी उम्र मात्र 28 वर्ष थी। 10 दिन पहले ही उनकी सगाई हुई थी और आठ महीने बाद उनकी शादी होने वाली थी। सगाई के बाद, 31 मार्च को, सिद्धार्थ हरियाणा के रेवाड़ी से अपनी छुट्टी समाप्त कर गुजरात के जामनगर एयरफोर्स स्टेशन लौटे। 2 अप्रैल को, वे अपने सह-पायलट मनोज कुमार सिंह के साथ एक नियमित उड़ान के लिए जगुआर फाइटर प्लेन लेकर निकले।
उड़ान के दौरान विमान में तकनीकी खराबी आ गई। इसे सुरक्षित लैंड कराने की कई कोशिशें की गईं, लेकिन वे सफल नहीं हो सकीं। सिद्धार्थ को पहले ही इस अनहोनी का आभास हो गया था, लेकिन उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना अपने साथी पायलट को सुरक्षित निकालने का प्रयास किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि विमान किसी आबादी वाले क्षेत्र में न गिरे और संभावित जनहानि न हो। इसी कारण वे विमान के साथ बने रहे और उसे खुले मैदान की ओर मोड़ दिया। रात करीब 9:30 बजे, जामनगर से लगभग 12 किलोमीटर दूर सुवर्ता गांव के पास विमान क्रैश हो गया।
चश्मदीदों के अनुसार, टकराने के बाद विमान में आग लग गई और मलबा पूरे मैदान में फैल गया। सिद्धार्थ के को-पायलट की जान बच गई, लेकिन स्वयं सिद्धार्थ शहीद हो गए। को-पायलट का फिलहाल इलाज जारी है। जिस घर में शादी की तैयारियां हो रही थीं, वहां अब ‘सिद्धार्थ यादव अमर रहें’ के नारे गूंज रहे हैं। गले रुंधे हुए, सिद्धार्थ के पिता कहते हैं कि बेटे को खोने का दुख तो है, लेकिन उससे भी अधिक गर्व इस बात का है कि वह देश की सेवा करते हुए शहीद हुआ।
3 अप्रैल को भारतीय वायुसेना ने बयान जारी कर हादसे की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दिए। बयान में बताया गया कि जामनगर एयरफील्ड से उड़ान भर रहे दो-सीटर जगुआर विमान को तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ा, जिससे पायलटों ने विमान को आबादी से दूर ले जाने का प्रयास किया। दुर्भाग्यवश, एक पायलट शहीद हो गया, जबकि दूसरा घायल हुआ। वायुसेना ने इस घटना पर गहरा शोक व्यक्त किया और कहा कि वह शोकाकुल परिवार के साथ मजबूती से खड़ी है।
सिद्धार्थ ने 2016 में एनडीए की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। फाइटर पायलट बनने से पहले उन्होंने तीन वर्षों की कठिन प्रशिक्षण लिया और फिर दो वर्षों की सेवा के उपरांत उन्हें फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद पर पदोन्नत किया गया। उनके पिता सुशील कुमार बताते हैं कि सिद्धार्थ अपने परिवार की चौथी पीढ़ी के थे, जिन्होंने देश की सेवा की। उनके परदादा ब्रिटिश शासन के दौरान बंगाल इंजीनियर्स में थे, दादा अर्धसैनिक बलों में सेवा कर चुके थे और उनके पिता स्वयं भारतीय वायुसेना में कार्यरत थे।
जनवरी 2016 में सिद्धार्थ ने एनडीए कोर्स 135 में प्रवेश लिया था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एयरफोर्स स्कूल और केंद्रीय विद्यालय से प्राप्त की थी। वे एक अत्यंत मेधावी छात्र थे और सदैव आगे रहते थे। उनके परिवार में पहली बार कोई फाइटर पायलट बना था, और चौथी पीढ़ी के रूप में वे कमीशन अधिकारी बने। उनके पिता बताते हैं कि यह गर्व का विषय तो है ही, लेकिन एकमात्र संतान को खोने का दर्द भी अपार है।
उनकी छोटी बहन वर्तमान में दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) में बीटेक द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। 4 अप्रैल की सुबह, अंतिम संस्कार के लिए फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव भालकी लाया गया। तिरंगे में लिपटे उनके पार्थिव शरीर को जब गांव में लाया गया, तो पूरा गांव गर्व और शोक के मिश्रित भावों से भर गया। गांववासियों ने कहा कि वे सिद्धार्थ के बलिदान को कभी नहीं भूलेंगे। उन्होंने हजारों लोगों की जान बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।