साउथ इंडियन फिल्मों का वर्चस्व पुष्पा 2 ने इतिहास रच दिया
अल्लू अर्जुन की “पुष्पा 2” ने वह कर दिखाया है जो अब तक कोई भारतीय फिल्म नहीं कर पाई थी। सिर्फ एक हफ्ते में इस फिल्म ने 1000 करोड़ रुपये कमा लिए हैं, मतलब पुष्पा ने निर्माताओं पर पैसे की बारिश कर दी है। एक समय था जब बॉलीवुड में कोई फिल्म 100 करोड़ भी कमा लेती थी तो उसके हीरो के फैंस उसे भारत रत्न देने की मांग करने लगते थे, और आज “पुष्पा 2” ने पहले दिन ही वर्ल्डवाइड 2283 करोड़ कमा लिए। फिल्म के हिंदी संस्करण ने ही एक सप्ताह में लगभग 500 करोड़ कमा लिए हैं। आमतौर पर हम अपने चैनल पर हिंदी फिल्मों की कमाई की बात नहीं करते, लेकिन जिस तरह एक के बाद एक साउथ इंडियन मूवीज 1000 करोड़ रुपए कमा रही हैं और हिंदी फिल्मों को पीछे छोड़ रही हैं, हमें लगा कि इस पर चर्चा करना जरूरी है।
पहले हम आपको बताएंगे कि पिछले चार-पांच सालों में इन साउथ इंडियन मूवीज ने कितना बिजनेस किया है और इन फिल्मों के मुकाबले में बड़ी हिंदी फिल्में कहां खड़ी हैं। इसके बाद हम उन कारणों की बात करेंगे, जिनसे लोग इन साउथ इंडियन मूवीज से इतना कनेक्ट कर पा रहे हैं।
2015 में राजामौली साहब की “बाहुबली” का पहला पार्ट रिलीज हुआ था। इसके डब्ड वर्जन ने तहलका मचा दिया था। उस समय इस फिल्म के हिंदी वर्जन ने 500 करोड़ की कमाई की थी, जो सबसे ज्यादा कमाई करने वाली साउथ की डब्ड हिंदी फिल्म बन गई थी। लेकिन आप जानते हैं, दो साल बाद जब “बाहुबली” का दूसरा पार्ट हिंदी में रिलीज हुआ तो उसने कितने पैसे कमाए? 2017 में “बाहुबली” के हिंदी डब्ड वर्जन ने 248 करोड़ कमाए, मतलब 500 करोड़ से सीधा 250 करोड़। इतनी ज्यादा कमाई ने पूरी साउथ इंडियन और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को हिला कर रख दिया।
उसके बाद कन्नड़ इंडस्ट्री से “केजीएफ 1” और “केजीएफ 2,” एसएस राजामौली की “आरआरआर,” “पुष्पा,” और अब “पुष्पा 2” आई। ये सारी फिल्में हैं जिनकी लाइफटाइम कमाई 1000 करोड़ से ऊपर की हो गई है और इनमें से एक मोटा हिस्सा हिंदी बेल्ट से मिला है। अब सवाल उठता है कि ये फिल्में अपने हिंदी वर्जन में इतना बड़ा बिजनेस कैसे कर रही हैं? इन फिल्मों के कंटेंट में ऐसा क्या खास है कि नॉर्थ के लोग इससे कनेक्ट कर रहे हैं?
अल्लू अर्जुन की “पुष्पा 2” ने सिर्फ एक सप्ताह में 1032 करोड़ कमा लिए। इससे पहले “बाहुबली” ने 10 दिनों में 1000 करोड़ कमाए थे, “केजीएफ 2” और “आरआरआर” को भी 1000 करोड़ कमाने में इतने ही दिन लगे थे। “जवान” और “पठान” जैसी हिंदी फिल्मों को 18 और 27 दिन लगे थे 1000 करोड़ कमाने में। साउथ इंडियन फिल्में आज पूरे इंडिया में रूल कर रही हैं।
अब सवाल आता है कि इन साउथ इंडियन फिल्मों का नॉर्थ इंडिया की ऑडियंस से कनेक्ट का सबसे बड़ा कारण क्या है? इन फिल्मों का भारतीय कल्चर से जुड़ा होना। हिंदी फिल्मों को लेकर दर्शकों की आम शिकायत होती है कि वे बहुत ज्यादा वेस्टर्नाइज्ड होती हैं। इसके विपरीत, साउथ की फिल्मों में हीरोइन साड़ी पहनती है, जो देसी और रियल लगती है। लोगों को उनमें भारतीय होने की झलक मिलती है। यही वजह है कि इन फिल्मों की एक पैन इंडिया अपील है।
“बाहुबली” लोगों को इसलिए अच्छी लगी क्योंकि उसमें भारतीय संस्कृति की झलक थी, जिसमें इमोशन, मैसेज, एक्शन और इनोवेशन सब था। यही बात लोगों को राजामौली सर की “आरआरआर” में भी लगी। उसमें देशभक्ति, इतिहास, दो दोस्तों के रिश्ते का इमोशन और टेक्नोलॉजिकल ब्रिलियंस था। साउथ की फिल्मों को पसंद करने वालों का मानना है कि टेक्नोलॉजी, ग्राफिक्स और स्पेशल इफेक्ट्स के मामले में साउथ इंडियन फिल्में हॉलीवुड से कम नहीं हैं।
राजामौली ने “बाहुबली” और “आरआरआर” बनाई तो उनकी तारीफ “अवतार” और “टाइटैनिक” जैसी फिल्मों के निर्देशक जेम्स कैमरन ने भी की। दूसरी ओर, हिंदी फिल्मों की टेक्नोलॉजी काफी पीछे है। रजनीकांत और अक्षय कुमार की “रोबो 2” की रिलीज इसलिए आगे बढ़ाई गई क्योंकि निर्देशक को ग्राफिक्स पसंद नहीं आए। जबकि हिंदी फिल्मों में ग्राफिक्स और स्पेशल इफेक्ट्स का हाल करण जोहर की “ड्राइव” में देख सकते हैं।
आज अगर साउथ की डब फिल्में ओरिजिनल हिंदी फिल्मों से ज्यादा कमा रही हैं, तो इसकी एक वजह ओटीटी प्लेटफॉर्म्स भी हैं। जब से इंडिया में प्राइम वीडियो में डब होकर साउथ की फिल्में आने लगीं, हिंदी दर्शकों को असली कंटेंट का एहसास हुआ। इससे पहले हिंदी फिल्म निर्माता बाहर की अच्छी फिल्मों की नकल करके हिंदी में बनाते थे, लेकिन अब वही ओरिजिनल कंटेंट हिंदी में डब होकर आने लगा है। इसका प्राइम उदाहरण है आमिर खान की “लाल सिंह चड्ढा,” जो हॉलीवुड की फेमस मूवी “फॉरेस्ट गम्प” पर आधारित थी।
जब “फॉरेस्ट गम्प” हिंदी में ओटीटी पर उपलब्ध हो चुकी थी, तो “लाल सिंह चड्ढा” को लोग कैसे पसंद करते? बॉलीवुड में बैंक रॉबरी पर कई फिल्में बनी हैं, जैसे आमिर खान की “धूम 3।” लेकिन अब दुनिया की बेस्ट मूवीज हिंदी में उपलब्ध हैं। इसके लिए पहले एक बढ़िया स्टोरी होनी चाहिए, फिर अच्छे निर्देशक और वर्ल्ड लेवल के ग्राफिक्स होने चाहिए। उन्होंने टाइम से समझा कि जो व्यक्ति थिएटर में आपकी फिल्म देखने आ रहा है, उसे पैसा वसूल एंटरटेनमेंट चाहिए।
इसलिए उन्होंने “आरआरआर,” “पुष्पा,” “केजीएफ” और “बाहुबली 2” जैसी फिल्में बनाई। हिंदी इंडस्ट्री यहां पर दो लेवल पीछे रही। पहला, एक्सट्रीम एक्शन जनर में मूवी बनाने वाले निर्देशक और स्पेशल इफेक्ट्स की कमी। दूसरा, हिंदी इंडस्ट्री में सुपरस्टार्स की उम्र हो गई है। साउथ में उनके पास प्रभास, अल्लू अर्जुन, यश, रामचरण, जूनियर एनटीआर हैं। शाहरुख खान ने भी यह समझा कि कुछ बड़ा देना होगा, तभी उन्होंने “जवान” और “पठान” जैसी मूवीज की।
हिंदी फिल्मों में टैलेंटेड लोग हैं, लेकिन उन्हें आगे आने का मौका कम मिलता है। हिंदी फिल्मों में सलीम-जावेद साहब ने अमिताभ बच्चन को लेकर जो फिल्में बनाई, उनमें एंग्री यंग मैन वाला लुक था, जो आज का एक्शन हीरो ही तो था। “केजीएफ” में यश के कैरेक्टर में “काला पत्थर” के अमिताभ बच्चन जैसा ही लगा। लेकिन अब हिंदी फिल्मों में “आर्चीज” जैसी फिल्में बनती हैं, जो किसके लिए बनाई, क्यों बनाई, समझ नहीं आता।
नॉर्थ की ऑडियंस में यह परसेप्शन बन गया है कि साउथ वाली फिल्मों में भारतीय संस्कृति दिखाई जाती है। दूसरी ओर, हिंदी फिल्मों में कई ऐसे एक्टर और निर्देशक हैं जिनको लेकर लोगों में परसेप्शन है कि वे अपने कल्चर को बदनाम करते हैं। अगर परसेप्शन बन गया, तो उसे बदलना आसान नहीं होता। बॉलीवुड आज कई स्तरों पर स्ट्रगल कर रहा है क्योंकि उनके सुपरस्टार बूढ़े हो चुके हैं, नई स्टोरी और नया एक्शन हीरो नहीं मिल रहा। दूसरी ओर, साउथ के पास रॉकी और पुष्पा हैं, जिन्होंने अपने दम पर फिल्मों को हिट कराया।
आपको साउथ इंडियन फिल्में क्यों पसंद हैं? आपके फेवरेट एक्टर कौन हैं? अपने विचार हमें बताएं।