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सरकारें सभी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा नहीं कर सकतीं : सुप्रीम कोर्ट

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सरकारें सभी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा नहीं कर सकतीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: प्राइवेट प्रॉपर्टी और उसका महत्व

आज का टॉपिक सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले पर है, जिसमें कहा गया है कि सरकार अब किसी की प्रॉपर्टी का अधिग्रहण करने से पहले सोचेगी। इसका मतलब यह है कि अगर आपकी प्रॉपर्टी किसी सड़क निर्माण, खेल का मैदान बनाने या अन्य सरकारी कार्यों में आ जाती है, तो सरकार आपको सीधा पैसे देकर कब्जा नहीं कर सकती। यह एक महत्वपूर्ण फैसला है, जिसके लिए हमें संविधान और उसके आर्टिकल्स की यात्रा पर चलना होगा।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और उसका प्रभाव

इस फैसले की एक लाइन में व्याख्या यह है कि अब सरकार किसी की प्रॉपर्टी का अधिग्रहण करने से पहले डरेगी। यह फैसला प्राइवेट प्रॉपर्टीज के संदर्भ में है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सारी प्राइवेट प्रॉपर्टीज कम्युनिटी रिसोर्सेज नहीं हैं।

यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच द्वारा आया है, जिसमें सात जजों ने एकमत होकर कहा कि सभी प्रॉपर्टीज को कम्युनिटी रिसोर्सेज के तहत नहीं लिया जा सकता। यह फैसला 1978 के एक फैसले को पलटता है, जो कहता था कि नॉट ऑल प्राइवेट प्रॉपर्टीज इज मटेरियल रिसोर्स ऑफ कम्युनिटी।

इतिहास और संविधान के संदर्भ

इस फैसले को समझने के लिए हमें इतिहास में जाना पड़ेगा, विशेषकर अंग्रेजों के काल में। अंग्रेजों ने भारत पर राज करने के लिए जमींदारी सिस्टम को अपनाया, जिसमें बड़े भूभाग पर कुछ लोगों को टैक्स वसूलने की जिम्मेदारी दी गई। यह जमींदार अंग्रेजों के लिए टैक्स वसूलते थे और किसानों का शोषण करते थे।

जब भारत आजाद हुआ और संविधान बना, तो संविधान निर्माताओं ने मूल अधिकारों में संपत्ति के अधिकार को शामिल किया। यह अधिकार आर्टिकल 19(1)(f) और आर्टिकल 31 में दिया गया था। इसका मतलब था कि अगर सरकार आपकी प्रॉपर्टी लेती है, तो आप सुप्रीम कोर्ट में शिकायत कर सकते हैं।

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संपत्ति का अधिकार और संविधान संशोधन

नेहरू जी ने महसूस किया कि संपत्ति का अधिकार मूल अधिकार में होने से सरकार के विकास कार्यों में बाधा आएगी। इसलिए, 1950 में संविधान लागू होते ही, उन्होंने पहला संविधान संशोधन प्रस्तावित किया और संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार से हटाकर एक विधिक अधिकार बना दिया।

1978 में 44वें संविधान संशोधन के माध्यम से आर्टिकल 31 को हटाकर 300A बनाया गया, जिससे संपत्ति का अधिकार मूल अधिकार से हटकर विधिक अधिकार बन गया। इसका मतलब यह था कि अब आप अपनी संपत्ति के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकते।

सुप्रीम कोर्ट का नवीनतम फैसला

सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम फैसले ने 1978 के फैसले को पलटते हुए कहा कि प्राइवेट प्रॉपर्टीज को कम्युनिटी रिसोर्सेज के रूप में नहीं लिया जा सकता। यह फैसला 7-2 के मत से आया है और यह कहता है कि सरकार प्राइवेट प्रॉपर्टी का अधिग्रहण करने से पहले दो बार सोचेगी।

यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रॉपर्टी राइट्स को मजबूत करता है और सरकार के अधिग्रहण की शक्तियों पर अंकुश लगाता है। यह फैसला प्रॉपर्टी के मालिकों के अधिकारों की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सरकार प्रॉपर्टी अधिग्रहण के मामले में मनमानी नहीं कर सकती।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय संविधान और प्रॉपर्टी राइट्स की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह फैसला प्राइवेट प्रॉपर्टी के महत्व को पुनः स्थापित करता है और सरकार के अधिग्रहण की शक्तियों पर नियंत्रण रखता है।

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