वेदा मूवी की कहानी सारांश
कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें जॉन इब्राहिम एक रिपोर्टर पर गुस्सा हो गए थे जिसने यह कहा था कि वो हमेशा एक जैसी फिल्में करते हैं। तब जॉन ने चैलेंज किया था कि उनकी अगली फिल्म पिछली फिल्मों से एकदम अलग होगी। और विश्वास मानिए, वे मजाक बिल्कुल नहीं कर रहे थे। मैं वेदा की बात कर रही हूं, जिसने 2024 के सबसे बड़े फिल्मों के क्लैश में सबको चौंका दिया है। नंबर वन पोजीशन पर स्त्री का बैठना तय था, लेकिन नंबर टू पर जॉन इब्राहिम की फिल्म का अक्षय को पीछे कर देना सबसे बड़ा सरप्राइज था। अब जब बॉलीवुड का ओरिजिनल बैड गाए एक गुड गाए बनकर आएगा, तो लोग थिएटर में जरूर जाएंगे। लेकिन क्या फिल्म वाकई दमदार है या सिर्फ दिखावा?
बहुत कम लोग समझ पाएंगे कि वेदा असल में महाभारत के सबसे डार्क चैप्टर, द्रौपदी के चीरहरण पर आधारित एक मॉडर्न कहानी है। “यदा यदा ही धर्मस्य” श्रीकृष्ण के बोले गए शब्दों में, जॉन ने खुद को रथ चलाने वाला सारथी और एक स्त्री को नए जमाने का अर्जुन बता दिया है। एक सलाह जो मैं आपको देना चाहती हूं: अगर आपने फिल्म का ट्रेलर नहीं देखा है, तो प्लीज मत देखना। सीधे थिएटर जाकर फिल्म का आनंद लेना ज्यादा मजेदार होगा। वेदा का विषय वास्तविक जीवन की डिस्टर्बिंग घटनाओं से उठाया गया है। कहानी वही है जिसे हम कई बार देख चुके हैं, लेकिन फिल्म दिखाने का तरीका उस पर ही फिल्म को बेचा जाएगा।
एक पढ़ी-लिखी तेज दिमाग वाली लड़की है जिसका सबसे बड़ा सपना है बॉक्सिंग ग्लव्स पहनकर रिंग में दुश्मन को हराना। आप सोचेंगे इसमें दिक्कत क्या है? दिक्कत एक नहीं, बहुत सारी हैं। बॉक्सिंग रिंग में बिना जूतों के नहीं जा सकते, और यह लड़की चप्पल पैरों में नहीं, बल्कि सर पर रखकर चलती है। घर में नहीं होते नियम-कायदे तो ये लड़की अपने गांव के नियमों का पालन कर रही है जो इसे कभी आजाद नहीं होने देंगे। वैसे, आजादी से याद आया, इस कहानी में एक और कैदी है जो खुद से लड़ रहा है। एक समय का देश का सबसे बड़ा रक्षक अब गद्दार बन चुका है, क्योंकि उसने देश से बढ़कर खुद को रखा था।
क्या आप क्या करेंगे अगर कोई आपके सामने परिवार का गला काट दे? हीरो, हीरोइन, बचा कौन? विलन! एक्शन वाले बैड गाए से लड़ना तो फिर भी आसान है, लेकिन उस से क्या करोगे जो सिर्फ दिमाग से लड़ाई करना जानता हो? “सिस्टम” जैसा शब्द असल ज़िंदगी में अक्सर इस्तेमाल होता है, उसी सिस्टम के सिर पर पांव रखे बैठा है यह बंदा। क्या कलयुग की महाभारत में द्रौपदी को इंसाफ मिलेगा, या श्रीकृष्ण का रथ दुर्योधन के महल को कुचलकर आगे बढ़ेगा?
जितना मजेदार तरीके से मैंने आपको फिल्म की कहानी सुनाई है, उतनी मेहनत शायद फिल्म के मेकर्स ने भी नहीं की है। वेदा को देखते समय ऐसा लगेगा कि आप दो अलग-अलग मूवीज़ देख रहे हैं। पहले हाफ में सब कुछ परफेक्ट है, कोई गलती नहीं। मद्रास कैफे वाली जॉन की क्लासिक झलक मिलती है, शुरुआत में सिर्फ कंटेंट पर फोकस है। लेकिन दूसरे हाफ में सब कुछ बदल जाता है, जैसे सत्यमेव जयते वाले दिन वापस आ गए हों। सीरियस सिनेमा का मज़ाक उड़ता है, पावरफुल क्लाइमैक्स भी कॉमेडी बन जाता है। 90s की फिल्मों की तरह, हीरो 10-15 गोलियां खाने के बाद भी डायलॉग्स बोलता रहता है। वेदा 30 साल पीछे जाकर खुद का मजाक बनाती है।
फिल्म देखने का एकमात्र कारण है जॉन इब्राहिम का स्क्रीन प्रेजेंस। बिना कुछ कहे, केवल स्क्रीन पर आकर सिस्टम की वाट लगा देते हैं। जॉन का एक्शन शानदार है, और उनके फिल्म सिलेक्शन से आपके मन में उनके लिए रिस्पेक्ट बढ़ जाती है। शर्वरी के साथ रोमांटिक रोल नहीं, बल्कि उनकी लड़ाई में फादर फिगर बनकर खड़े होते हैं। शर्वरी का भी चयन बेहतरीन है। मुंजा और वेदा, दोनों में वो कमाल की हैं। हालांकि उनके सीन्स कम हैं, लेकिन जितने भी हैं, वो दमदार हैं।
वेदा को पांच में से तीन स्टार्स मिलेंगे। जॉन का एक्शन, शर्वरी का परफॉर्मेंस, और अभिषेक बैनर्जी का पागलपन इस फिल्म को देखने लायक बनाते हैं। नेगेटिव पॉइंट्स: प्रेडिक्टेबल और सीरियस क्लाइमैक्स, फिल्म की धीमी गति, और हीरो का सुपरमैन बनना जरूरी नहीं। बाकी लोग “स्त्री” के घर में जाकर हॉरर कॉमेडी का आनंद लें, और मैं आपको अलविदा कहता हूं।