खबर यह है कि भारत यूरिया में आत्मनिर्भर बनने जा रहा है। आप में से कई लोग सोच सकते हैं कि इसमें क्या बड़ी बात है, लेकिन यह वास्तव में बहुत बड़ी बात है। तो आइए समझते हैं कैसे।
हरित क्रांति और यूरिया:
भारत में हरित क्रांति के पीछे तीन प्रमुख कारण थे:
- सिंचाई की व्यवस्था: हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में नहरों के माध्यम से पानी की उचित व्यवस्था की गई।
- उच्च उपज वाले बीज: किसानों को ऐसे बीज दिए गए जो अधिक उत्पादन कर सकें।
- उर्वरकों का वितरण: फर्टिलाइजर्स का व्यापक वितरण किया गया।
इनमें से तीसरा कारण फर्टिलाइजर्स विशेष रूप से यूरिया का वितरण था जिसने कृषि उत्पादन में भारी वृद्धि की और भारत को खाद्य आत्मनिर्भर बना दिया।
यूरिया और उसकी सब्सिडी:
यूरिया एक महत्वपूर्ण उर्वरक है, लेकिन इसकी कीमतें बहुत ऊँची होने के कारण किसानों के लिए इसे अफोर्ड करना मुश्किल था। इसलिए सरकार इसे सब्सिडी देकर सस्ते दाम पर किसानों को उपलब्ध कराती थी। इससे कृषि उत्पादन बढ़ा, लेकिन यूरिया का अत्यधिक उपयोग भी एक समस्या बन गया।
आत्मनिर्भरता की ओर:
भारत ने अब बंद पड़ी पांच यूरिया फैक्ट्रियों को फिर से चालू कर लिया है। यह कदम भारत को 2025 तक यूरिया में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में उठाया गया है।
नैनो यूरिया:
नैनो यूरिया एक नई तकनीक है जिसे इफको ने विकसित किया है। 50 किग्रा यूरिया के एक बैग के स्थान पर 500 एमएल की एक बोतल नैनो यूरिया उपयोगी हो सकती है। इसे पत्तियों पर स्प्रे किया जाता है जिससे यूरिया सीधे पौधों में अवशोषित हो जाता है और जमीन में अपशिष्ट कम होता है।
पर्यावरणीय लाभ:
नैनो यूरिया के उपयोग से पर्यावरणीय समस्याएँ भी कम होंगी। परंपरागत यूरिया बारिश के पानी से बहकर तालाबों और जलाशयों में चला जाता था, जिससे जलकुंभी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती थीं। नैनो यूरिया का स्प्रे करने से यह समस्या नहीं होती है।
आर्थिक लाभ:
नैनो यूरिया के उपयोग से किसानों का खर्च कम होगा और यूरिया की बर्बादी रुकेगी। इसके साथ ही सरकार की सब्सिडी का भार भी कम होगा।
निष्कर्ष:
भारत का यह कदम कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। यूरिया में आत्मनिर्भरता से देश की अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा और किसानों का जीवन भी बेहतर होगा।
इस जानकारी के साथ हम आशा करते हैं कि आप सभी को भारत के इस महत्वपूर्ण कदम के बारे में जानकारी मिल गई होगी।