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भारत में सैन्य तख़्तापलट क्यों नहीं हुआ? जानिए इसके पीछे की चौंकाने वाली वजह

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भारत में सैन्य तख़्तापलट क्यों नहीं हुआ? जानिए इसके पीछे की चौंकाने वाली वजह

भारत में सैन्य तख्तापलट की अनुपस्थिति एक महत्वपूर्ण विषय है। पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, और श्रीलंका में सैन्य तख्तापलट या जन विद्रोह की घटनाएँ होती रही हैं। हालांकि, भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ। भारत और पाकिस्तान दोनों 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुए थे, लेकिन पाकिस्तान में कभी भी कोई प्रधानमंत्री अपनी पांच साल की अवधि पूरी नहीं कर सका, जबकि भारत में कभी सैन्य शासन नहीं आया। भारतीय लोकतंत्र की मजबूती इतनी प्रबल है कि सेना ने कभी भी राजनीतिक शासन में हस्तक्षेप नहीं किया।

इस स्थिति को समझने के लिए हमें भारतीय लोकतंत्र की गहराई को देखना होगा। भारत ने एक ऐसा लोकतांत्रिक ढांचा तैयार किया है जो अन्य देशों के मुकाबले काफी मजबूत है। जब दुनिया में सैन्य तख्तापलट हो रहे थे, भारत ने एक स्थिर लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाए रखी।

ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय सेना को ब्रिटिश सरकार ने पूरी ताकत से नियंत्रित किया। 1857 की क्रांति के बाद, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सेना को जातियों और क्षेत्रों के आधार पर विभाजित किया ताकि उनकी शक्ति को कमजोर किया जा सके। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय सेना ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने की स्थिति में नहीं थी, हालांकि भारत में राजनीतिक आंदोलन तीव्र हो रहे थे।

भारतीय नेताओं ने सेना को सत्ता के खिलाफ उठने के लिए कभी प्रेरित नहीं किया। 1942 में गांधी जी ने ‘क्विट इंडिया मूवमेंट’ चलाया, लेकिन सेना को शांत रखा गया। राजनेताओं ने सेना को केवल देश की रक्षा के लिए ही सीमित रखा, राजनीतिक विरोध में शामिल होने से रोका। इस दृष्टिकोण ने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय सेना ने कभी भी राजनीतिक सत्ता के खिलाफ विद्रोह नहीं किया।

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इसके विपरीत, पाकिस्तान में सेना ने बार-बार राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप किया, जबकि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था ने सेना को राजनीति से दूर रखा। पाकिस्तान की युवा और अशांत राजनीतिक व्यवस्था ने सेना को बार-बार सत्ता पर कब्जा करने का अवसर दिया।

भारत ने 1950 में जल्दी ही अपना संविधान लागू कर दिया था, जबकि पाकिस्तान का संविधान 1973 में आया। भारतीय नेताओं की दूरदर्शिता और राजनीतिक सूझबूझ ने भारत को लोकतांत्रिक ढांचे को बनाए रखने में मदद की और सैन्य शासन से बचा।

भारतीय संविधान में न्यायपालिका, व्यवस्थापिका, और कार्यपालिका को समान स्तर पर रखा गया है, जिससे कोई भी एजेंसी ऊंची या नीची नहीं है। यह प्रणाली न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाती है, जो प्रधानमंत्री तक को सजा देने में सक्षम है। इंदिरा गांधी के समय में इमरजेंसी का कारण भी यही था कि हाई कोर्ट ने उनके चुनाव को गलत माना था और सरकारी संस्थाओं के दुरुपयोग का आरोप लगाया था।

भारत में चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्थाओं ने लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए लगातार सुधार किए हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां वोटिंग की प्रक्रिया इतनी व्यापक है कि अमेरिका की तुलना में भी अधिक जनसंख्या है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान हिंसा होती है, लेकिन भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ कि विपक्षी नेता को सत्ता के खिलाफ चुनौती देने के कारण निशाना बनाया गया हो। यह सब भारतीय लोकतंत्र के मजबूत ढांचे के कारण संभव हुआ है।

नेहरू जी की सूझबूझ ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत किया। उन्होंने कमांडर इन चीफ का पद समाप्त कर दिया और सेना के तीनों प्रमुखों के ऊपर एक लोकतांत्रिक रूप से चुना हुआ रक्षा मंत्री नियुक्त किया। यह निर्णय लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण था।

1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने विभिन्न रेजीमेंट्स की स्थापना की थी जैसे जाट, असम, पंजाब, नागा, और गोरखा रेजीमेंट्स, जो जातियों और क्षेत्रों के आधार पर बनी थीं। भारतीय सेना की इसी विविधता ने उसे एक मजबूत और समर्पित संस्थान बनाया, जिससे तख्तापलट की घटनाएँ नहीं घटीं। नेहरू जी की दूरदर्शिता ने सेना और लोकतंत्र के बीच संतुलन बनाए रखा। 1957 में जनरल थिमैया के ऑफिस में एक योजना मिली कि सेना सत्ता पर कब्जा कर सकती है, लेकिन भारतीय सेना ने लोकतंत्र के पक्ष में काम किया और सत्ता पर कब्जा करने की योजना को नजरअंदाज किया।

1970 और 1980 के दशक की घटनाएँ जैसे इंदिरा गांधी की जीत और ऑपरेशन ब्लू स्टार ने भी भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली की मजबूती को दर्शाया। भारतीय सेना ने हमेशा लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सम्मानित किया और सत्ता में बदलाव के बावजूद लोकतंत्र को बनाए रखा।

2012 में जब सेना के तख्तापलट की बात उठी, तो भारतीय सरकार ने इसकी पुष्टि की और यह साबित किया कि भारतीय लोकतंत्र और सैन्य व्यवस्था के बीच कोई असंतुलन नहीं है।

इस प्रकार, भारत का लोकतंत्र और उसके संस्थागत ढांचे की मजबूती ने इसे सैन्य तख्तापलट से बचाए रखा है, और यही कारण है कि भारत दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्रों में से एक है।

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