भारत में विवादित जजों की छुट्टी अतुल सुभाष केस और शेखर यादव के बयान
आज हम देश में इस समय सुर्खियों में चल रहे दो जजों की चर्चा करेंगे। एक जज हैं जो अतुल सुभाष केस से जुड़े हुए हैं। आरोप है कि आत्महत्या करने से पहले अतुल सुभाष ने कहा था कि उस जज ने उनकी शादी का सेटलमेंट कराने के लिए ₹1 लाख की मांग की थी। दूसरे जज हैं शेखर यादव, जिन पर आरोप है कि उन्होंने मुसलमानों को लेकर गलत बयानबाजी की।
अब दो महत्वपूर्ण सवाल बनते हैं: पहला, क्या एक हाई कोर्ट के जज, जो इलाहाबाद हाई कोर्ट से संबंधित हैं, उन्हें हटाया जा सकता है? दूसरा, क्या एक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज, रीता कौशिक, जिन्होंने अतुल सुभाष केस में बेईमानी की थी, उन्हें हटाया जा सकता है? आज के सेशन में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे।
अतुल सुभाष केस, जिसके बारे में कल भी हमने आपको अपने अंकित इंस्पायर इंडिया चैनल पर जानकारी दी थी, की कहानी और घटनाओं को संक्षेप में बताते हैं। अतुल सुभाष ने कहा था कि उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है और उन्होंने यह जानकारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी साझा करने की कोशिशें की। इनके बारे में हमने विस्तृत सेशन पहले ही अंकित इंस्पायर इंडिया पर किया है, आप जाकर उन्हें देख सकते हैं।
अतुल सुभाष केस में न्याय की मांग जोर पकड़ रही है। कोर्ट से जानकारी मांगी जा रही है, संसद में मुद्दा उठाया जा रहा है, और सोशल मीडिया पर चर्चाएं चल रही हैं। इसमें जो नाम निकल कर आ रहा है वह जज रीता कौशिक का है। कहा गया है कि जब अतुल सुभाष कोर्ट में गए, तो जज साहिबा ने कहा कि यदि तुम अपना मामला सेटल कराना चाहते हो तो मुझे ₹1 लाख दो, मैं हस्बैंड-वाइफ के बीच का मामला सेटल कर दूंगी।
अतुल सुभाष ने कोर्ट में शिकायत करते हुए कहा कि उनकी पत्नी पिछले बार ₹50,000 महीना मांग रही थी, लेकिन अब वह केस समाप्त करने के पहले ₹2 करोड़ मांग रही हैं। जज साहिबा ने कहा कि वह केस को सेटल तो करवा सकती हैं, लेकिन इसकी फीस लगेगी। यह बात अतुल सुभाष ने मरने से पहले अपने बयानों में लिखकर रिकॉर्ड कर दी थी।
इसके बाद जज साहिबा को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की ट्रोलिंग शुरू हुई। अतुल सुभाष का लिखा हुआ बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने जज साहिबा के बारे में सारी बातें बताई हैं। इस कारण सोशल मीडिया पर यह ट्रेंड हो रहा है कि पुरुषों के साथ भी शोषण होता है।
दूसरे जज हैं शेखर यादव, जो इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज हैं। उनका एक बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के एक बैठक में कहा कि हमारे समाज में शासन व्यवस्था बहुसंख्यक के अनुसार ही चलेगी। उन्होंने मुसलमानों के लिए कठ मुल्ला शब्द का उपयोग किया, जिसके बाद से उनके इस बयान के चलते उन्हें हटाने की मांग की जा रही है। सांसदों और वकीलों की तरफ से उन्हें हटाने की डिमांड की जा रही है।
शेखर यादव का यह बयान संसद में भी उठा। श्रीनगर के सांसद राहुला मेहदी ने उनके खिलाफ इम्पीचमेंट मोशन लाने का प्रयास शुरू कर दिया है। उन्होंने जज साहब को हटाने के लिए एक पत्र पर साइन करवाकर कई सांसदों से समर्थन मांगा है। अब सवाल उठता है कि अगर किसी जज का इस तरह के मामलों में नाम आता है तो क्या उन्हें हटाया जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को हटाने की प्रक्रिया संसद के पास होती है। सबसे पहले कम से कम 100 सांसद लोकसभा में या 50 सांसद राज्यसभा में लिखित में स्पीकर या चेयरमैन को रिक्वेस्ट देंगे। स्पीकर तीन लोगों की एक कमेटी बनाएंगे, जिसे इंक्वायरी कमेटी कहते हैं। उस कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाई कोर्ट के जज, और एक जूरिस्ट होंगे। इंक्वायरी कमेटी जांच करेगी कि क्या जज सही मायने में हटाए जा सकते हैं।
जज को हटाने की स्पष्ट व्याख्या संविधान में नहीं है। मिसबिहेवियर की व्याख्या भी नहीं है, इसलिए इंक्वायरी कमेटी डिटेल में जांच करेगी। यह प्रणाली सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों पर लागू होती है।
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जजों को हटाने की प्रक्रिया अलग होती है। पहले सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की बात कर लेते हैं। इन जजों को हटाने के लिए संसद में रेजोल्यूशन पास करना होता है। यह प्रक्रिया संसद के पास होती है।
अंत में, जजों को हटाने की प्रक्रिया जटिल है, लेकिन अगर संसद और न्यायपालिका सही तरीके से काम करें तो विवादित जजों को हटाया जा सकता है।