बांग्लादेश को हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए भारत का सख्त संदेश
दुनिया भर के हिंदुओं के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है कि हमारे पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में क्या हो रहा है। एक तरफ, वहां की सरकार ठीक से काम नहीं कर पा रही है, और दूसरी ओर, शेख हसीना को भारत में शरण देने की सजा वहां के हिंदू अल्पसंख्यकों को मिल रही है। इसका असल मकसद यह है कि चूंकि भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं, अगर बांग्लादेश में हिंदुओं को प्रताड़ित किया जाएगा, तो भारतीयों को दर्द होगा। इसी वजह से बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे हैं, धार्मिक नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा है, मंदिरों में तोड़फोड़ हो रही है, और दलितों के घर जलाए जा रहे हैं। इससे पूरी दुनिया का ध्यान हिंदुओं की ओर आकर्षित हो गया है।
बांग्लादेश, जिसने आजादी के बाद पाकिस्तान का साथ दिया था और एक मुस्लिम राष्ट्र बनकर उभरा था, 1971 में भारत के प्रयासों से पाकिस्तान से अलग होकर बना था। तब बांग्लादेश ने सेकुलरिज्म अपनाने की कसम खाई थी, लेकिन 15 साल के बाद उसने खुद को फिर से एक मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर दिया। तब से वहां की हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ जो घटनाएं हो रही हैं, उनकी बानगी है कि एक संत को केवल इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि वह हिंदुओं के हितों की बात कर रहा था। उनका नाम है चिन्मय प्रभु, जो बांग्लादेश में गिरफ्तार किए गए। इस गिरफ्तारी के बाद दुनिया भर में प्रदर्शन शुरू हो गए।
चिन्मय प्रभु इस्कॉन से जुड़े हुए थे, लेकिन इस्कॉन ने शायद किसी दबाव या अपनी छवि बनाए रखने के कारण उनसे किनारा कर लिया है। इस्कॉन के जनरल सेक्रेटरी चारु चंद्र दास ब्रह्मचारी ने अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए चिन्मय प्रभु को सभी पदों से हटा दिया और कहा कि उनका इस्कॉन से कोई ताल्लुक नहीं है। चिन्मय प्रभु चटगांव इस्कॉन के प्रमुख थे, लेकिन अब किसी पद पर नहीं हैं।
बात शुरू होती है शेख हसीना से, जिन्हें एक साजिश के तहत देश छोड़ना पड़ा और भारत में शरण मिली। इसके बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार बढ़ गए। 1950 में बांग्लादेश में 76 प्रतिशत मुसलमान और 22 प्रतिशत हिंदू थे, जो 2023 तक घटकर 7.5 प्रतिशत रह गए हैं। बांग्लादेश ने 1988 में खुद को मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर दिया, जिसके बाद हिंदुओं की संपत्ति पर सरकारी अतिक्रमण बढ़ गया और बड़ी संख्या में हिंदू पलायन करके भारत में शरण लेने लगे।
चिन्मय दास प्रभु ने हिंदुओं के अधिकारों की मांग के लिए सनातन जागरण मंच का गठन किया और कई रैलियों को संबोधित किया। इसके बाद उन्हें धार्मिक विद्वेष फैलाने और सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। भारत सरकार ने इसे बांग्लादेश का अंदरूनी मामला बताते हुए प्रतिक्रिया नहीं दी।
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