एजुकेशन सिस्टम, विशेषकर पेपर लीक्स के कारण, इन दिनों काफी सुर्खियों में है। नीट स्कैम, नेट के पेपर का रद्द होना, उत्तर प्रदेश में आरओ-एआरओ परीक्षा का लीक होना और यूपी पुलिस की परीक्षा में दिक्कतें इन सब मामलों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारत के एजुकेशन सिस्टम को राज्य सूची में डाल देना चाहिए?
इस विषय को समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि एजुकेशन को केंद्रीय सूची से निकालकर राज्य सूची में डालने का क्या मतलब है और इसका पेपर लीक्स से क्या संबंध है।
वर्तमान व्यवस्था:
- केंद्रीय एजेंसीज: वर्तमान में कई प्रमुख परीक्षाएं केंद्रीय एजेंसीज के द्वारा कराई जाती हैं जैसे यूजीसी नेट, नीट यूजी, नीट पीजी आदि।
- संविधान की अनुसूची 7: इसमें तीन सूचियाँ हैं:
- केंद्रीय सूची: इसमें 100 विषय हैं जिन पर केंद्र सरकार कानून बना सकती है।
- राज्य सूची: इसमें 61 विषय हैं जिन पर राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।
- समवर्ती सूची: इसमें 52 विषय हैं जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, परंतु यदि केंद्र सरकार कानून बनाती है तो राज्य का कानून गौण हो जाता है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण:
- 1950-1976: शिक्षा राज्य सूची का विषय था।
- 42वां संविधान संशोधन (1976): स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर शिक्षा को राज्य सूची से निकालकर समवर्ती सूची में डाल दिया गया।
वर्तमान स्थिति:
- राज्यों की मांग: वर्तमान में कुछ राज्य, विशेषकर तमिलनाडु के सीएम स्टालिन, मांग कर रहे हैं कि शिक्षा को वापस राज्य सूची में डाला जाए।
- केंद्र की दलील: केंद्र का मानना है कि समावेशी शिक्षा होनी चाहिए ताकि पूरे देश में समान शिक्षा प्रणाली हो।
लाभ और हानि:
- राज्य सूची में होने के लाभ:
- स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा: राज्य अपनी जरूरतों के हिसाब से शिक्षा व्यवस्था बना सकते हैं।
- भाषाई और सांस्कृतिक संरक्षण: राज्य अपनी संस्कृति और भाषा को बढ़ावा दे सकते हैं।
- वित्तीय स्वायत्तता: राज्यों को 85% वित्तीय भार वहन करना पड़ता है, वे अपनी योजनाओं के अनुसार खर्च कर सकते हैं।
- समवर्ती सूची में होने के लाभ:
- समान शिक्षा प्रणाली: पूरे देश में एक समान शिक्षा व्यवस्था होगी।
- केंद्रीय मानक: राष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता बनी रहेगी, जिससे प्रतिस्पर्धा में समानता रहेगी।
- केन्द्रीय योजनाएँ: केंद्र द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ पूरे देश में समान रूप से मिल सकता है।
वैश्विक दृष्टिकोण:
- अमेरिका: शिक्षा स्टैंडर्ड्स राज्य और लोकल गवर्नमेंट्स द्वारा स्थापित किए जाते हैं।
- कनाडा: प्रोविंशियल गवर्नमेंट्स द्वारा शिक्षा का प्रबंधन किया जाता है।
- जर्मनी और साउथ अफ्रीका: राज्य स्तर पर ही शिक्षा की व्यवस्था होती है।
निष्कर्ष:
दोनों व्यवस्थाओं के अपने-अपने लाभ और हानियाँ हैं। राज्यों को वित्तीय भार वहन करना पड़ता है, लेकिन वे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा का प्रबंधन कर सकते हैं। वहीं, केंद्र सरकार समान शिक्षा प्रणाली स्थापित कर सकती है, जिससे देशभर में एकरूपता बनी रहेगी।
इस विषय पर आपसे अनुरोध है कि आप इस पर अपना दृष्टिकोण लिखें और सोचें कि कौन-सी व्यवस्था हमारे देश के लिए अधिक लाभदायक होगी। उम्मीद है कि इस चर्चा से आपको विषय को समझने में मदद मिली होगी। धन्यवाद!