पाकिस्तान में मंकी पॉक्स का कहर! WHO ने घोषित की इमरजेंसी
खबर है कि डब्ल्यूएचओ ने मंकी पॉक्स, जिसे अब एमपॉक्स के नाम से जाना जाता है, पर ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित की है। इस वीडियो में हम जानेंगे कि मंकी पॉक्स क्या है, और क्यों इसे वैश्विक आपातकाल घोषित किया गया है। आपको याद होगा कि कोरोना के समय डब्ल्यूएचओ की चेतावनियों को हमने बहुत गंभीरता से लिया था। इमरजेंसी और इसके द्वारा जारी सभी संदेशों को आपने सुना था। अब डब्ल्यूएचओ ने एमपॉक्स को लेकर ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी है, जिसका मतलब है कि दुनिया को सतर्क रहने की जरूरत है। मंकी पॉक्स, जिसे अब एमपॉक्स कहा जाता है, सुर्खियों में है क्योंकि यह बीमारी अब ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी का कारण बन चुकी है। आज के सेशन में हम इसके बारे में विस्तृत जानकारी साझा करेंगे।
मंकी पॉक्स एक वायरस जनित बीमारी है, जो पहले अफ्रीका में पाई गई थी। कांगो में इसके कुछ मामले देखे गए थे, और अब तक यह बीमारी 177,000 लोगों को बीमार कर चुकी है। यह बीमारी 500 से अधिक लोगों की जान ले चुकी है और अब अफ्रीका के अलावा यूरोप में भी देखी गई है। स्वीडन में इसका पहला केस दर्ज हुआ है। यह एक जूनोटिक बीमारी है, यानी यह संक्रामक बीमारी है, जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क से फैलती है। अफ्रीका के पड़ोसी देशों में इसके फैलने के कारण डब्ल्यूएचओ ने इसे ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी है। 16 अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में भी एमपॉक्स का मामला देखा गया है, जहां यह व्यक्ति सऊदी अरब से लौटकर आया था। यह बीमारी अब अफ्रीका से निकलकर स्वीडन और सऊदी अरब में भी देखी जा चुकी है, जिससे यह ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी बन गई है।
टेडरॉस एडन ने इमरजेंसी कमेटी की बैठक बुलाकर इस स्थिति के लिए तैयारियां करने की सलाह दी है। अफेक्टेड देशों को इससे निकालने के लिए अंतरराष्ट्रीय चिंताएं जताई गई हैं। डब्ल्यूएचओ ने मंकी पॉक्स पर दो वर्षों में दूसरी बार वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है, जो कांगो के संदर्भ में की गई थी। इसके बाद पड़ोसी देशों जैसे बुरुंडी, केन्या, रवांडा, युगांडा में भी इसका फैलाव देखा गया है। यह वायरस क्लैड आईबी नामक वायरस का सबटाइप है, जो चार नए अफ्रीकी देशों में फैला हुआ है। डब्ल्यूएचओ ने 1.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की आपातकालीन निधि जारी की है।
सवाल उठता है कि एमपॉक्स क्या है और यह कैसे फैलता है? मंकी पॉक्स का नाम 2022 में बदलकर एमपॉक्स रखा गया है। यह बीमारी जानवरों से इंसान में फैलने वाली बीमारी है, जिसे जूनोटिक डिजीज कहा जाता है। यह मंकी पॉक्स वायरस के कारण होती है, जो पॉक्सविरिडे फैमिली से संबंधित है। इसका इतिहास देखा जाए तो 1958 में डेनमार्क में बंदरों पर रिसर्च करते समय यह बीमारी देखी गई थी, इसलिए इसे मंकी पॉक्स का नाम दिया गया। मानव में इसका पहला मामला 1970 में कांगो में देखा गया था। यह वायरस जानवरों, विशेषकर गिलहरी और बंदरों से फैलता है।
यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलती है। इसके लक्षण 5 से 21 दिनों के भीतर दिखाई देते हैं, जिसमें दानेदार निशान सबसे पहले चेहरे पर दिखाई देते हैं और फिर पूरे शरीर में फैल जाते हैं। इस बीमारी के कारण बॉडी पर रशेस हो जाते हैं, जिनमें फ्लूड भर जाता है और बाद में सूखकर फट जाता है। यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति के कपड़े, बर्तन, सलाइवा आदि के संपर्क में आने से फैलती है। इससे बचने के लिए एनिमल्स के संपर्क में न आएं और डिसइन्फेक्शन का उपयोग करें। पेशेंट को आइसोलेट रखें और एंटीवायरल ड्रग्स का उपयोग करें।
इस वायरस के दो जीन समूह हैं, जिन्हें क्लैड्स कहा जाता है। क्लैड वन केंद्रीय और पूर्वी अफ्रीका में पाया जाता है, जबकि क्लैड टू पश्चिमी अफ्रीका में पाया जाता है। 2022 में इसका नाम परिवर्तित कर एमपॉक्स कर दिया गया था। इस बीमारी के लक्षणों में बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, सूजी हुई लिंफ नोड्स और चेचक जैसे रशेस शामिल हैं। यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रामक तरीके से फैलती है।
इससे निपटने के लिए संक्रमित व्यक्ति को अलग रखा जाए और उसके निशानों को टच न किया जाए। स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन का उपयोग इस पर किया जा सकता है। वर्तमान में मंकी पॉक्स के टीके के लिए प्रयास जारी हैं, और स्मॉल पॉक्स के टीके काफी हद तक प्रभावी माने जाते हैं। अगर आप में से किसी को इस तरह के रशेस दिखाई दें, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। ग्लोबली हेल्थ इमरजेंसी जारी हो चुकी है, इसलिए सचेत और सतर्क रहें।
भारत में मानसून के समय में मॉइश्चर और गर्मी के कारण बहुत सी बीमारियाँ पनपती हैं, इसलिए इस मौसम में विशेष सतर्कता बरतें। उम्मीद है कि आप सभी साथी इस जानकारी से अपडेट हो चुके होंगे।