अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। जो बाइडन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच कड़ा मुकाबला है। लेकिन इसी बीच, एक बड़ी घटना घटित हुई है। ट्रंप की एक चुनावी रैली में उनके कान के पास से गोली गुजर गई, जिससे वह बाल-बाल बचे। यह स्थिति इतनी घातक थी कि अगर गोली थोड़ी भी इधर-उधर होती तो आज ट्रंप हमारे बीच नहीं होते।
अमेरिका, जो दुनिया को लोकतंत्र का पाठ सिखाता है, अब खुद हंसी का पात्र बन रहा है। यह वही देश है जो भारत को फ्रीडम ऑफ स्पीच और एक्सप्रेशन की नसीहत देता है। लेकिन आज, वहां के पूर्व राष्ट्रपति पर जानलेवा हमला हुआ है। ट्रंप पर चली गोली अमेरिका की फजीहत के समान है, जैसे 9/11 के हमले में लादेन ने अमेरिका पर हमला किया था।
ट्रंप की रैली के दौरान, जब वे मंच पर बोल रहे थे, तभी वहां चीख-पुकार मच गई। ट्रंप ने तुरंत अपने कान पर हाथ रखा और देखा कि खून निकल रहा है। यह हमला ट्रंप के लिए कितना घातक था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गोली उनके कान के पास से गुजरी थी।
इस घटना ने अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां अमेरिका अपनी सुरक्षा में सबसे आगे होने का दावा करता है, वहां ट्रंप पर गोली चलने की घटना इस दावे की पोल खोल रही है। इस घटना के बाद, ट्रंप के समर्थकों में गजब का उत्साह देखा गया। ट्रंप ने अपने समर्थकों के सामने फाइट फाइट का नारा लगाते हुए जुझारू पन दिखाया।
डोनाल्ड ट्रंप पर हुए इस हमले ने अमेरिकी चुनावों को और रोचक बना दिया है। नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में बाइडन और ट्रंप के बीच मुकाबला और भी तगड़ा हो गया है। ट्रंप ने इस हमले के बाद जिस तरह से बाउंस बैक किया है, वह दुनिया भर के नेताओं के लिए एक प्रेरणा बन गया है।
इस हमले के बाद, कई सवाल उठ रहे हैं। क्या यह हमला बाइडन ने करवाया था? या फिर ट्रंप ने खुद पर हमला करवाया ताकि सिंपैथी वोट मिल सके? हालांकि, यह सभी बातें अभी केवल अटकलें हैं। सच्चाई क्या है, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा।
इस घटना ने अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। वहां की सीक्रेट सर्विस, एफबीआई, और स्थानीय पुलिस की जिम्मेदारी होती है राष्ट्रपति की सुरक्षा की। लेकिन इस घटना के बाद, इनकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं।
अंत में, यह घटना अमेरिकी लोकतंत्र और उसकी सुरक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र के दावे पर इस घटना ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या अमेरिका अब भी अपने लोकतंत्र और नेताओं की सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकता है? यह सवाल अब हर किसी के मन में है।