जैसलमेर के रेगिस्तान में पानी का फव्वारा वैज्ञानिकों ने क्या कहा?
राजस्थान के जैसलमेर जिले की मोहनगढ़ तहसील के चक 27 बीडी गांव में 28 दिसंबर 2024 को एक हैरान कर देने वाली घटना घटी। यहां ट्यूबवेल की खुदाई के दौरान अचानक जमीन से तेज़ धार में पानी निकलने लगा, जिसने आसपास के इलाके को तालाब जैसा बना दिया। यह घटना चर्चा का विषय बन गई और पानी की उत्पत्ति को लेकर कई दावे सामने आए।
सरस्वती नदी का दावा खारिज
कुछ लोगों ने इस पानी को सरस्वती नदी से जोड़ने की कोशिश की, क्योंकि खुदाई के दौरान सफेद चिकनी मिट्टी भी निकली थी। परंतु वैज्ञानिकों ने इस दावे को खारिज कर दिया। उन्होंने बताया कि यह पानी खारा है, जो नदी के पानी से अलग होता है। इसके अलावा, सरस्वती नदी के अस्तित्व का दावा करीब 5000 साल पुराना है, जबकि इस पानी की उम्र करीब 60 लाख साल बताई जा रही है।
टेथिस सागर से जुड़ी थ्योरी
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह पानी टेथिस सागर से संबंधित हो सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जैसलमेर का वह क्षेत्र करीब 25 करोड़ साल पहले टेथिस सागर का तट हुआ करता था। बोरवेल से निकली सफेद चिकनी मिट्टी और खारा पानी, समुद्र के पानी की विशेषताओं से मेल खाते हैं। भूजल विशेषज्ञों ने बताया कि खुदाई के दौरान रसरी काल की सैंड (पुरानी मिट्टी) निकली, जो यह संकेत देती है कि यह पानी वैदिक काल से भी पुराना हो सकता है।
टेथिस सागर और जैविक इतिहास
टेथिस सागर का इतिहास करीब 60 करोड़ साल पुराना माना जाता है। यह गोंडवाना और लौरसिया महाद्वीपों के बीच स्थित था। भूगर्भीय बदलावों के कारण, इसी सागर के अवसादों से हिमालय और एल्प्स जैसे पहाड़ों का निर्माण हुआ। इसलिए, वैज्ञानिक इस पानी को टेथिस सागर से जोड़कर देख रहे हैं।
गैस के बुलबुले और संभावनाएं
खुदाई के बाद पानी के साथ-साथ जमीन से गैस भी निकल रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि पानी के नीचे गैस की उपस्थिति ने पानी को अधिक दबाव दिया, जिससे वह बाहर फव्वारे की तरह निकला। गैस के नमूनों की जांच के लिए विशेषज्ञों को बुलाया गया है।
पानी का उपयोग और अध्ययन
खारा होने के कारण इस पानी को पीने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता। हालांकि, इसका अन्य उपयोग संभावित है, जिसकी पुष्टि विस्तृत जांच के बाद होगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस घटना पर गहन अध्ययन और शोध की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
फिलहाल पानी का प्रवाह बंद हो गया है, लेकिन यह घटना जैसलमेर के भूगर्भीय इतिहास पर नई रोशनी डाल रही है। इस पर किए जा रहे अध्ययन से भविष्य में और रोचक तथ्य सामने आ सकते हैं।