चीन का ‘अदृश्य’ होने वाला विमान J-35A | सदमे में अमेरिका
चीन ने अपने ‘अदृश्य’ होने वाले विमान J-35A को दुनिया के सामने पेश किया है, जो अमेरिका के F-35 फाइटर जेट की पूरी तरह से कॉपी मानी जा रही है। इस विमान की तुलना और इसके बनने की प्रक्रिया को लेकर कई सवाल उठाए गए हैं। चीन की तारीफ हो रही है, लेकिन यह तारीफ उनकी नकल करने की कला के लिए है। चीन ने अमेरिका के फाइटर जेट F-35 की तकनीक को रिवर्स इंजीनियरिंग करके J-35A बनाया है।
चीन की रिवर्स इंजीनियरिंग तकनीक दुनिया भर में जानी जाती है। इस तकनीक के जरिए उन्होंने दूसरे देशों की उन्नत तकनीकों को नकल करके अपने उत्पाद बनाए हैं। शुरुआती औद्योगिक क्रांति यूरोप और पश्चिमी देशों से शुरू हुई थी, लेकिन एशिया में इसके आने की कहानी रिवर्स इंजीनियरिंग की वजह से है। जापान ने अमेरिका के उत्पादों की नकल की, फिर चीन ने जापान के उत्पादों की नकल की, और आज चीन दुनिया भर के बड़े उत्पादों का कॉपी हाउस बन चुका है।
चीन ने F-35 की तरह दिखने वाले J-35A को बनाया है, जिसमें उन्होंने F-35 की तकनीक और डिजाइन को नकल किया है। यह विमान स्टेल्थ तकनीक से लैस है, जो इसे रडार पर अदृश्य बनाता है। इसका मतलब है कि जब यह विमान दुश्मन के क्षेत्र में उड़ान भरता है, तो रडार इसे पकड़ नहीं पाते। इसके लिए विमान पर एक विशेष कोटिंग की जाती है, जो रेडियो वेव्स को अवशोषित कर लेती है और उन्हें वापस नहीं लौटने देती।
अमेरिका ने अपने F-35 फाइटर जेट को बनाने में बिलियंस ऑफ डॉलर्स खर्च किए हैं और इस विमान की तकनीक को सुरक्षित रखने के लिए कई तरह के उपाय किए हैं। हालांकि, चीन ने साइबर हैकिंग के जरिए इस तकनीक को चुरा लिया और अपनी लैब में रीप्रोड्यूस किया। अब चीन ने J-35A को पेश करके दुनिया को दिखा दिया कि वे भी उन्नत फाइटर जेट बना सकते हैं।
इस विमान की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी स्टेल्थ तकनीक, जो इसे रडार की पकड़ में आने से बचाती है। इसके अलावा, यह विमान वर्टिकल टेक ऑफ और लैंडिंग की क्षमता रखता है, जिसका मतलब है कि यह बिना रनवे के भी उड़ान भर सकता है और लैंड कर सकता है। हालांकि, चीन का J-35A अभी इस विशेषता में पूरी तरह से सक्षम नहीं है, लेकिन उन्होंने बाकी की तकनीक को बखूबी नकल किया है।
चीन का यह कदम अमेरिका के लिए एक चुनौती है, क्योंकि उन्होंने अमेरिका की तकनीक को कॉपी करके अपने फाइटर जेट्स बनाए हैं। यह तकनीक युद्ध में बहुत महत्वपूर्ण होती है और चीन ने इसे हासिल करके अपनी ताकत में इजाफा किया है। हालांकि, यह तकनीकी चोरी का मामला है और इसके लिए चीन को आलोचना का सामना भी करना पड़ सकता है।