चाइना ने हाल ही में साइंस एंड टेक्नोलॉजी में एक बेहतरीन कारनामा कर दिखाया है। एक ऐसा कारनामा जिसे अभी तक कोई नहीं कर पाया था। क्या कर दिया है चाइना का चांग ई 6 मिशन? मून के उस किनारे पर उतर करके, ड्रिल करके वहां से मिट्टी लेकर चल भी दिया है। जिस इलाके में लोग उतर नहीं पाते, वहां इन्होंने अपना लैंडर उतारा, गड्ढा खोदा, मिट्टी निकाली, वापस भरा और लिफ्ट हो लिया। चाइना का चांग ई 6 वहां से लिफ्ट हो गया है। मून से रॉक सैंपल लेकर लौट रहा है।
विचार कीजिए, भारत ने अपना चंद्रयान 3 जब दक्षिण पोल पर भेजा था, तो केवल लैंड कराया था। वहां पर रोव कराया था। इन्होंने ना केवल लैंड कराया, बल्कि अपने उस चांग ई 6 से वहां के सैंपल कलेक्ट करवाए, सैंपल उठवाए, उठाकर वापस चलवाई, और वह जून के अंतिम सप्ताह में वापस चाइना आकर के रुकेगा। यानी कि कुरियर सेवा की तरह, माल गया है, लिया है, वापस आया है। अपने आप में कितना अद्भुत दृश्य साइंस एंड टेक्नोलॉजी का यह होने जा रहा है।
यह अपने आप में हिस्ट्री में पहली बार हो रहा है। पहली बार जो इनका चांग ई 6 मिशन वहां गया, पहले भी य मून कैलेंडर को भेज चुके हैं, लेकिन इस तरह से मिट्टी खोदकर वहां से निकालना यह अपने आप में एक बहुत बड़ी जानकारी निकल कर आ रही है। चीन ने ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है, जो दक्षिणी ध्रुव की तरफ से मिट्टी के सैंपल लेकर के वापस अर्थ की तरफ लौट रहा है।
बाय द वे, यह जब गया था, हमने उस समय भी सेशन किया था। संभवतः आप लोगों को ध्यान होगा, हमने उस समय भी सेशन किया था और कहा था, चीन का मून मिशन और पाकिस्तान का नाम, यह करके हमने आपके RNA के अंदर ही यह सेशन किया था। अपनी पाठशाला पर अभी भी डला हुआ है। 3 मई को यह लॉन्च हुआ था, हमने यह चीज चर्चा में ली थी और आपको बताया था कि यह लॉन्च हुआ था। तब की जिक्र आपको बताई थी, याद कर लीजिएगा। हमारी यह तारीखें, 3 मई के दिन जब यह गया था, तो चाइना ने एंबिशियस मिशन टू दी फार साइड ऑफ मून लॉन्च किया था। यह टाइटल था जिसके ऊपर हमने सेशन किया था और वह आपके लिए अभी भी अपनी पाठशाला पर डला हुआ है।
इन्होंने हैनान प्रोविंस जो है, यहां से इसको लॉन्च किया था। यहां से लॉन्च करके यह मून की तरफ गया था। चांग ई 6 तो चांग ई 6 मिशन है, लेकिन इसमें जो रॉकेट यूज़ किया गया है वो लॉन्ग मार्च 5 नाम का रॉकेट है, जो चीन का अब तक का सबसे पावरफुल लॉन्च माना जाता है।
साथियों, 53 दिन के इस पूरे कारनामे में 3 तारीख को यह गया हुआ है, जून के आखिरी सप्ताह में लगभग 23 तारीख को यह वापस लौटना अपेक्षित है। 25 तारीख को यह धरती पर लौट रहा है। 53 दिन के अंदर यह चांद की यात्रा करके मिट्टी लेकर वापस आ रहा है। यह अपने आप में एक जबरदस्त अजूबा हो रहा है। सोचिए, सबसे पहले यह यहां से शुरू हुआ। ये जो वाइट कलर में आपको दिख रहा है, यहां से लिफ्ट हुआ, लिफ्ट होकर इसने पहले अर्थ का चक्कर काटा, अर्थ का भी कंप्लीट चक्कर नहीं काटा। अर्थ का चक्कर काट के एक ही बार में एग्जिट कर गया अर्थ की कक्षा से, और एग्जिट करके सीधा मून की कक्षा के अंदर एंट्री कर गया। मून की कक्षा में एंट्री किया, वहां धीरे-धीरे उतरना शुरू हुआ, रुकना शुरू हुआ और उतरते-उतरते यहां उतरा। जब यह लैंड किया, लैंड करने के बाद में फिर यहां से लिफ्ट हुआ, और लिफ्ट होकर के अब यह चल दिया है। यं चक्कर काटते हुए यह वापस अर्थ की कक्षा में आएगा, और अर्थ की कक्षा में आकर के चाइना के उत्तर की तरफ मंगोलिया की तरफ ये जाकर लैंड करेगा। जब ये लैंड करेगा तो वर्टिकल डिसेंड होगा, जो कि अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।
तो साथियों, लॉन्ग मार्च 5 नाम के रॉकेट के साथ इन्होंने अपना चांग ई 6 मिशन भेजा। ऐसा करके चंद्रमा पर उतरने वाले देशों के क्रम में चाइना तीसरी बार इस तरह की लैंडिंग कराने में कामयाब देश रहा है। और इन्होंने अपने द्वारा साउथ पोल के एटकिन बेसिन के ऊपर यह लैंडिंग कराई है। यह टर्म याद रख लीजिएगा, क्योंकि चांद के ऊपर कुल मिलाकर तीन ही बड़े हिस्से कंसीडर किए जाते हैं। उनमें से एटकिन बेसिन के ऊपर इनकी यह लैंडिंग जो है, यह अपने आप में बहुत ज्यादा मायने रखती है। एटकिन बेसिन, साउथ पोल के नजदीक स्थित वह क्षेत्र है।
अब सवाल बनता है, साउथ पोल में ऐसा क्या है? असल मायने में साथियों, साउथ पोल चंद्रमा का वह हिस्सा है, जो अर्थ से दिखाई नहीं पड़ता है। अर्थ से जो दिखता है, उस तरफ तो बहुत बार लैंडिंग हुई है। अर्थ से दक्षिण की तरफ, यानी कि जो दिख नहीं रहा है, उसके दूसरी तरफ उतारना अपने आप में वैज्ञानिकों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहता है। और हमें क्यों नहीं दिख रहा है? क्योंकि सूरज का सीधा प्रकाश वहां नहीं पहुंच रहा है। ऐसी स्थिति में सूरज की एब्सेंट में अंधेरे वाले सिरे पर उतारना वैज्ञानिकों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। ना केवल उतारना, एक ऐसी जगह पर उतारना जिसके बारे में आपको कुछ ना पता हो, वह रहस्य से भरा हो सकता है।
हालांकि भारत ने इनके एटकिन बेसिन से भी दक्षिण की तरफ अपना मून लैंडर उतारा था, लेकिन हमने सैंपल कलेक्ट नहीं किए थे। ये सैंपल कलेक्ट करके यहां से वापस चल रहा है। ये अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है, जिसको कि साइंस के अंदर सेलिब्रेट किया जा रहा है। हमारा चंद्रयान 3 जो है, वो यहां पर बिल्कुल दक्षिण के किनारे तक पहुंच गया था। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।
ठीक है साहब, तो फार साइड पर जाकर के यह सारा कारनामा हो रहा है। आप देख लीजिए, नियर साइड से जब हम चंद्रमा देखते हैं, तो बहुत सारे खड्डे और ऐसी चीजें दिखाई देती हैं। ऐसा लगता है, कुछ लोग कहते हैं, एक बुढ़िया माई है जो चक्की चला रही है। कुछ लोग तमाम तरह की चंद्रमा को देखकर बातें करते हैं। कुछ लोग कहते हैं, चंद्रमा पर भी तो दाग है। तो यह जो साइड हमको दिखती है, वो दाग वाली साइड है। जो दूसरी साइड हमें नहीं दिखती, वो इस तरह की साइड है जिसे लेकर के लोग क्यूरियस हैं कि अल्टीमेटली दूसरी तरफ क्या होता है।
ठीक है, तो चाइना का नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने कुछ इमेजेस जारी की जब चांग ई 6 यहां पर मून की फार साइड पर लैंड हुआ। आप भी तस्वीरें देखें, तो देखकर आपको चंद्रमा की कुछ चीजें बहुत फेसिनेट करती हुई दिख सकती हैं। आप इधर देखें, यह चंद्रमा की वो सरफेस है। इस सरफेस पर उतरते हुए आपको चांग ई 6 उतरता हुआ दिख रहा है। चंद्रमा किस तरह से दिखता है, यह आपके सामने है। आप कह रहे हैं, सर यहां तो उजाला है ही नहीं, तो दिख कैसे रहा है? तो ये वो कैमरे हैं, जो नाइट विजन कैमरे हैं, जिनसे ये दृश्य लिया गया है। चंद्रमा के इस सिरे पर उतरने से पहले यह चंद्रमा का सिरा कैसा दिख रहा है? विचार कीजिए, किसी को नहीं पता। यह दलदल है, यह मिट्टी के अंदर धस जाएगा, पथरीला क्षेत्र है, क्या है?
और ऐसे जगह पर उतारा जा रहा हो चंद्रमा अब दिखने पर हमें यह अंदाजा तो लगने लगा है कि यहां पर अगर मजबूत जगह है, मिट्टी का एनालिसिस होगा। जो स्टोन वहां से लाए जा रहे हैं, उनका एनालिसिस होगा। उसके अध्ययन से यह पता लगेगा कि यहां पर रुका जा सकता है। क्योंकि अभी कुछ आईडिया ही
नहीं है, पानी है या नहीं है, यह नहीं पता है, मिनरल्स है या नहीं है, यह नहीं पता।
ऐसी स्थिति में यहां पर जाना अपने आप में बड़ी खबर है। ग्लोबल टाइम्स ने इस खबर को इसी प्रकार से बताया था। 2 जून के दिन, जब इनकी लैंडिंग हुई थी, उसके बाद में यह यहां से प्रॉपर तरीके से लेकर निकला। तो देखिए, जब यह लैंड किया, उस समय, और लैंड करने के बाद में, इसने कैसे एक विशेष आर्म के माध्यम से गड्ढा खोदा। और चाइना का फ्लैग कैसे इसने बाहर निकाला, यह अपने आप में एक बहुत ही जबरदस्त चीज निकल कर यहां आई है। तो देखिए, इसमें खड्डा करने के लिए इन्होंने बकायदा एक मैकेनिकल आर्म लगाई है, एक ऐसा हाथ लगाया है जो यहां पर गड्ढा करेगा।
ठीक है ना, तो यहां पर कैसे होगा? तो वो मैं आपके सामने तस्वीरों दिखाता हूं। देखो, आपको यह मून का, मतलब इनका चांग ई मिशन जो है, वह यहां पर अपना लैंडर इस प्रकार से उतारता है। यह लैंडर अपने में से एक हाथ जैसा यंत्र बाहर निकालता है, जो कि ड्रिल करता है। ड्रिल किए हुए सामान को जैसे जेसीबी के अंदर मुंह नहीं निकलता है, कुछ उस प्रकार की चीज निकालता है, निकाल कर के वापस भरने के लिए। देखिए, ऐसे इसने गड्ढा खोदा, गड्ढा खोद कर के ये सामान भरता है बॉक्स में और बकायदा इन वैज्ञानिक, जो कि अर्थ पर बैठे हुए हैं।
अपने यह सोचे कि अगर जेसीबी को हम देखते हैं, तो जेसीबी का तो ड्राइवर साथ में बैठ के काम कर रहा होता है। यहां पे तो बकायदा चाइना के लोग धरती पर बैठे हैं, यहां से कमांड दे रहे हैं कि बेटा तुम चलो, यहां पर ड्रिल करो। मतलब यहां से कमांड जा रहा है। तो सोच कर देखिए, कम्युनिकेशन किस लेवल का होगा। लाखों किलोमीटर दूर, एक इंस्ट्रूमेंट चांद के उस किनारे पर, जो डायरेक्ट कनेक्शन में नहीं है, वहां पर काम कर रहा है, इंस्ट्रक्शंस के आधार पर ड्रिलिंग कर रहा है। यह रियल टाइम ड्रिलिंग है, जिसे देखकर जो साइंस के एंथू सियास्ट हैं, उन्हें बहुत खुशी होनी चाहिए कि साइंस ने किस लेवल की तरक्की की है। एक दिन निश्चित ही भारत भी इस तरह के कारनामे करेगा।
लेकिन साइंस बाउंड्री से परे है, जहां भी रिसर्च होती हैं, वह सबके लिए मानव सभ्यता के लिए होती हैं। अब आप देखिए, किस तरह से इन लोगों ने प्रॉपर तरीके से अपने इंस्ट्रक्शंस और दुनिया को बताते हुए वहां पर प्रॉपर तरीके से उसकी ड्रिलिंग हुई और ड्रिलिंग के पश्चात उस ड्रिल किए हुए सामान को वापस से इसके अंदर लोड किया गया। यह अपने आप में एक जबरदस्त चीज है, जिसे आप तस्वीरों के अंदर देख रहे हैं।
हालांकि वीडियो जो है वह काफी ज्यादा पावर का है, मतलब हमने थोड़ी सी ज्यादा इसके अंदर इमेज कैपेसिटी ले ली। अब देखें आप तो यह जो आप देख रहे हैं, तो इसने प्रॉपर तरीके से ड्रिल किया है। आप सोचिए, यह कम्युनिकेशन हो रहा है चांद से। चांद से कम्युनिकेशन के दौर ये सैंपल कलेक्ट किए जा रहे हैं। सैंपल मतलब ये ये प्रॉपर जब लैंडिंग हो रही है, लैंडिंग के साथ-साथ यहां पर जो दृश्य बन रहे हैं, ये साइंस में काफी ज्यादा खास दृश्य माने जाएंगे।
ठीक है, अब जब ये मिट्टी वापस आ जाएगी तो यहां के पूरे डाटा का एनालिसिस किया जाएगा चाइना के अंदर। और भविष्य के लिए कौन से मून मिशन भेजे जाएं इस पर चर्चा होगी। 25 जून को यह मिशन संभवतः वापस धरती पर लौटेगा और उतर कर के यह मंगोलिया इलाके के अंदर, जो कि चाइना के नॉर्थ में स्थित है, वहां के रेगिस्तान में कहीं लैंड करेगा। सफलता पूर्वक अगर यह लैंडिंग होती है तो संपूर्ण मानव जाति के लिए इसे एक बड़ी उपलब्धि माना जाएगा।
चांद के सुदूर हिस्सों तक यह पहुंचना बहुत मुश्किल क्यों है? क्योंकि यहां पर संपर्क होना बहुत मुश्किल टास्क होता है। अब अल्टीमेटली चाइना इस सैंपल से क्या करना चाहता है? क्या इस सैंपल के अंदर यूरेनियम है? क्या इस सैंपल के अंदर कोई ऐसी धातु है जिसके बारे में किसी को नहीं पता? क्योंकि अल्टीमेटली यह कयास लगाए जाते हैं, बहुत सारे लोगों का यह कयास है कि चंद्रमा पर इस समय प्रचुर मात्रा के अंदर न्यूक्लियर फ्यूल है, यानी कि यूरेनियम की बहुतायत है। ऐसा बहुत सारे लोग कयास लगाते हैं। सैंपल कलेक्शन से ज्ञात जानकारी नहीं है, ये तो इस बात को क्रॉस चेक करने के लिए कि अगर चंद्रमा से यूरेनियम मिल जाए तो सोचिए भविष्य क्या होगा। चंद्रमा से यूरेनियम इकट्ठा किया, किसी का भी कोई रोक टोक नहीं है। आए और यहां पर बढ़िया तरीके से न्यूक्लियर फ्यूल बना लिया।
दूसरा, चंद्रमा को लेकर के एक तैयारी और चल रही है। अभी जब हम लोग दुबई गए थे, तो वहां पर एक फ्यूचर म्यूजियम है और उस फ्यूचर म्यूजियम में ये देखा गया कि मतलब यह दिखाने का प्रयास किया गया था, अगले 100 सालों में कैसा होगा, 50 सालों में दुनिया कैसी होगी। तो उसमें वो लोग ये प्रॉपर तरीके से दिखाते हैं, मैं एक वीडियो भी लेकर आया हूं, हो सकता है मैं आपके साथ शेयर भी करूंगा। उसमें क्या किया है, भविष्य को लेकर प्रोजेक्शन है कि दुनिया आगे क्या करेगी। तो चंद्रमा पर जैसे आज अपन यहां पर धरती पर देख रहे हैं, सोलर पैनल्स लगे हुए हैं। जहां-जहां पर ट्रॉपिकल एनवायरमेंट है, यानी कि वो क्षेत्र जो कि इक्वेटर के 23.30 उत्तर, 23.30 दक्षिण, जहां सूर्य का सीधा प्रकाश आता है, वहां पर तो सोलर पैनल सही से काम कर रहे हैं। सोलर पैनल्स के कारण बिजली का उत्पादन भी हो रहा है।
लेकिन अगर चंद्रमा पर ही सूर्य के प्रकाश को 35 लाख किलोमीटर ऊपर ही चंद्रमा पर ही सूर्य के प्रकाश को संग्रहित करके, उसे लेजर में कन्वर्ट कर दिया जाए और उस लेजर को अर्थ पर सीधा भेजा जाए, तो विचार कीजिए कि अर्थ पर एनर्जी का क्राइसिस ही खत्म हो जाएगा। यानी कि सूरज की दूरी चंद्रमा से कम है। ऐसी स्थिति में चंद्रमा से इकट्ठी की सनलाइट, उसे बीम में कन्वर्ट किया, बीम को सेंट्रलाइज्ड किया, सेंट्रलाइज्ड करके अर्थ पर भेजा और अर्थ से इलेक्ट्रिसिटी का प्रोडक्शन किया। यह फ्यूचरिस्टिक बड़ा ही जबरदस्त प्लान है, जिसे दुनिया के बड़े देश टारगेट कर रहे हैं। अमेरिका, चाइना, इंडिया, ये सभी लोग इसी कयास में हैं कि मून का कैसे उपयोग किया जाए। मून पर जाकर कैसे और दुनिया के आगे बढ़ा जाए। क्योंकि अल्टीमेटली अर्थ पर रह रहे लोगों की भलाई के लिए ही हम जितनी भी सैटेलाइट बॉडीज हैं, इनको टारगेट कर रहे हैं।
चाइना भविष्य में इसी काम को और आगे बढ़ाना चाहता है। यानी कि वो हर साल के लिए कुछ टारगेट लेकर चल रहा है। 2024 के अंदर सैंपल कलेक्शन हो गया। 2026 के अंदर इसका टारगेट है कि पानी की खोज के लिए मिशन भेजे। 2028 के अंदर यह लूनर पर ही यानी चंद्रमा पर ही एक रिसर्च स्टेशन बना देगा, ऐसा टारगेट है। बकायदा यहां पर, मतलब जैसे एस्ट्रोनॉट होते हैं, वैसे ही लैंड टेकोनॉट यानी कि जो लून पर जाएंगे, उनको वहां पर उतारेगा। बकायदा लोगों को चंद्रमा पर उतार देगा। 2035 तक इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन बना देगा यह चंद्रमा पर, ताकि वहां पर प्रॉपर तरीके से रिसर्च हो सके।
सोचो, जैसे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन धरती से 400 किमी ऊपर एक तीन बीएचके का कमरा, लगभग 40-50 हजार टन वजन का सामान तैर रहा है अंतरिक्ष में, ऑलरेडी इंसान के द्वारा बनाया हुआ। सोचो, चंद्रमा पर जाकर किसी ने कुछ बना दिया और वहां से फिर और आगे की तैयारी की जाए, तो फिर साइंस के सेक्टर में कितना कुछ हो सकता है।