क्या पुनर्जन्म होते हैं?
सुरेश वर्मा की गाड़ी की ओर दो लोग बढ़ते हैं, और अचानक उनमें से एक ने सुरेश पर गोली चला दी। गोली उसके दाहिने मंदिर पर लगी और बाएँ कान के पीछे से निकली। इसी बीच, जब टीटू से कैश ड्रॉर की जगह पूछी गई, उसने सही-सही वही स्थान बताया जहाँ सुरेश वर्मा अपना कैश रखा करता था।
शांति देवी के केस में महात्मा गांधी का भी शामिल होना था। इस संदर्भ में, सुरेश की फैमिली ने अपने बच्चों को 20 अलग-अलग बच्चों के बीच बिठाया ताकि यह जांचा जा सके कि क्या टीटू अपने खुद के बच्चों को पहचान पाता है। पुनर्जन्म (रिइनकार्नेशन) और विभिन्न धर्मों के पुनर्जन्म के सिद्धांतों पर चर्चा की जाएगी।
टीटू सिंह, जो 12 दिसंबर 1983 को आगरा के पास के एक गांव में जन्मे थे, ने बचपन से ही अजीब बातें करनी शुरू कर दीं। उन्होंने दावा किया कि वह सुरेश वर्मा हैं, जिनकी हत्या 30 साल की उम्र में हो गई थी। टीटू ने अपने पिछले जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी दी, जिसमें उसका परिवार, गाड़ी, और दुकान शामिल थे।
टीटू की बातें इतनी सटीक थीं कि सुरेश वर्मा की फैमिली ने इस मामले को गंभीरता से लिया। अशोक, सुरेश की फैमिली का सदस्य, आगरा जाकर सुरेश वर्मा की दुकान ‘सुरेश रेडियो’ का पता लगाया और वहां सुरेश की पत्नी उमा से मिला। उमा ने टीटू के बारे में सुनी जानकारी से पुष्टि की कि टीटू सच में सुरेश वर्मा का पुनर्जन्म हो सकता है।
सालों बाद, डॉक्टर सतवंत पसरीचा और अन्य प्रमुख रिसर्चरों ने टीटू केस का अध्ययन किया। डॉ. इयान स्टीवेंसन ने भी इस केस को बारीकी से स्टडी किया। रिसर्च में पाया गया कि टीटू के बर्थमार्क्स, सुरेश वर्मा की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से मेल खाते थे, और टीटू की बताई गई जानकारियाँ सही थीं।
शांति देवी के केस के बारे में भी चर्चा की जाती है। शांति, जो 1926 में दिल्ली में जन्मी थी, ने चार साल की उम्र में कहा कि वह मथुरा की निवासी है और उसने अपने पिछले जीवन की घटनाओं का वर्णन किया। उसकी बातें सच साबित हुईं जब केदारनाथ चौबे, उसके कथित पति, ने पुष्टि की कि शांति के बारे में सभी बातें सही थीं।
शांति देवी के पुनर्जन्म के मामले ने कई लोगों को चौंका दिया था और महात्मा गांधी भी इस मामले में गहरी दिलचस्पी लेने लगे। गांधी जी ने एक कमेटी गठित की जिसमें प्रमुख लोग और मीडिया के सदस्य शामिल थे। इस कमेटी ने शांति देवी की परीक्षा लेने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि शांति देवी वास्तव में लुगदी देवी का पुनर्जन्म थी।
हालांकि, कुछ लोग जैसे बालचंद्र नहा ने इस केस को संदेह की दृष्टि से देखा और कहा कि इसके लिए कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। इंद्रा सेन ने बालचंद्र के दृष्टिकोण का विरोध किया और यह सवाल उठाया कि इतनी छोटी बच्ची को उन निजी बातों का पता कैसे चल सकता है जो केवल केदारनाथ और लुगदी देवी के बीच हुई थीं।
अब बात करते हैं केदारनाथ द्वारा शांति से पूछे गए सवाल की। केदारनाथ ने शांति से पूछा कि इतने स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद लुगदी देवी ने बच्चा कैसे पैदा किया। शांति ने इस सवाल का सही जवाब दिया, जिससे केदारनाथ को यकीन हो गया कि शांति ही लुगदी देवी है। इस प्रकरण के बाद, कुछ लोग इसे संदेह की दृष्टि से देखते हैं, जबकि अन्य इसे पुनर्जन्म का प्रमाण मानते हैं।
फिर इस संदर्भ में विज्ञान और धर्म के दृष्टिकोण का भी उल्लेख किया गया। विज्ञान में पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं किया जाता और इसके लिए ठोस प्रमाण की जरूरत होती है। वहीं, धर्म और धार्मिक विश्वास इसे मानते हैं और इसे आत्मा के पुनर्जन्म से जोड़ते हैं।
इस विषय पर भारतीय धार्मिक परंपराओं और पश्चिमी विचारधाराओं के बीच का अंतर भी प्रस्तुत किया गया है, जिसमें हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और पश्चिमी धर्मों जैसे कि ईसाई धर्म और इस्लाम का उल्लेख किया गया है।
इसके अतिरिक्त, बर्थ मार्क्स और पास्ट लाइफ रिग्रेशन जैसी अन्य अवधारणाओं पर भी चर्चा की गई, जिनके माध्यम से पुनर्जन्म का अध्ययन किया जाता है।
अंततः, सुमित्रा और शिवा के केस का उदाहरण दिया गया, जिसमें सुमित्रा के पुनर्जन्म के बाद शिवा के रूप में सामने आने की कहानी को प्रस्तुत किया गया और इसके प्रमाणों को विश्लेषित किया गया।