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क्या अननेचुरल से* स अब क्राइम नहीं होगा? BNS में सेक्शन्स 377 को लेकर उठे सवाल!

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क्या अननेचुरल से* स अब क्राइम नहीं होगा? BNS में सेक्शन्स 377 को लेकर उठे सवाल!

हम जिस खबर पर चर्चा कर रहे हैं, वह बहुत ही दिलचस्प है। हाल ही में भारत में 1 जुलाई से भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) लागू हो गई है। इससे पहले देश में इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) लागू थी, जिसमें साक्ष्य और अपराध के लिए अलग-अलग संहिताएं थीं। अब बीएनएस के अंतर्गत एक मामला दिल्ली हाई कोर्ट में विचाराधीन है। यह मामला सेक्शन 377 से जुड़ा है, जो आईपीसी का एक हिस्सा हुआ करता था। इस सेक्शन में अननेचुरल सेक्स को अपराध माना गया था और 10 साल तक की सजा का प्रावधान था। हालाँकि, इसमें काफी कानूनी लड़ाई चली, और 2018 में नवतेज सिंह जौहर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसे बदल दिया, जिसमें सहमति से अननेचुरल सेक्स को अपराध नहीं माना गया।

सेक्शन 377 एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला था। लेकिन अब जब भारतीय न्याय संहिता लागू हो गई है, उसमें सेक्शन 377 या उसके समकक्ष कोई भी प्रावधान नहीं है। इस वजह से सवाल उठता है कि क्या अब अननेचुरल सेक्स अपराध नहीं रहा? या अगर यह अपराध है, तो वह किस कानून के तहत कवर किया गया है? इस सवाल पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से 10 दिनों के भीतर जवाब मांगा है।

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दिल्ली हाई कोर्ट में इस पर एक पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें पूछा गया है कि नए क्रिमिनल लॉ में सेक्शन 377 कहां है। खासकर, अगर अननेचुरल सेक्स गैर सहमति से होता है तो वह अपराध की श्रेणी में कैसे आएगा? और अगर यह प्रावधान नहीं है, तो क्या यह एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए खतरा बन सकता है? यह भी सवाल उठता है कि क्या इस प्रावधान को न शामिल करने से रेप के मामलों में और जटिलताएँ उत्पन्न होंगी?

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता 1 जुलाई से भारत में लागू हो चुकी हैं, जिन्होंने आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंस एक्ट का स्थान लिया है। इसी संदर्भ में दिल्ली हाई कोर्ट में अननेचुरल सेक्स से जुड़े अपराधों को लेकर सुनवाई चल रही है। इस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि किस प्रावधान के तहत हम अननेचुरल सेक्स को अपराध मानें।

याचिकाकर्ता गंतव्य गुलाटी ने कोर्ट में यह सवाल उठाया है कि बीएनएस में सेक्शन 377 को शामिल नहीं किया गया है, जो एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए खतरा पैदा कर सकता है। इस स्थिति में पुलिस किस आधार पर किसी को सजा देगी, खासकर जब महिला, पुरुष या पशु के साथ यौन दुराचार होता है?

एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के बारे में जानकारी दी जा रही है कि लेस्बियन वे महिलाएं होती हैं, जो महिलाओं की ओर यौन आकर्षित होती हैं; गे वे पुरुष होते हैं, जो पुरुषों की ओर आकर्षित होते हैं; बायसेक्सुअल वे होते हैं, जो महिला और पुरुष दोनों के प्रति आकर्षित होते हैं; और ट्रांसजेंडर वे होते हैं, जिनका जन्म से ही जेंडर स्पेशलाइज्ड नहीं होता। यह प्रश्न भी उठ रहा है कि इस मुद्दे पर बीएनएस में संसदीय समिति द्वारा की गई सिफारिशें क्यों नजरअंदाज की गईं, जिसमें 377 को शामिल करने की मांग की गई थी।

पहले, 377 में सहमति से हुए अननेचुरल सेक्स के प्रति भी सजा का प्रावधान था, लेकिन 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह सजा केवल गैर सहमति से हुए सेक्स के लिए रह गई थी। अब, चूंकि बीएनएस में यह प्रावधान नहीं है, इसलिए यह मामला हाई कोर्ट में गया हुआ है।

प्रधानमंत्री द्वारा पंच प्रण की बात की गई थी, जिसमें गुलामी के हर दंश से मुक्ति पाने की बात की गई थी। इसी के चलते भारत ने तीनों कानून बदले।  फिलहाल, इस मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट में क्या निर्णय होता है, यह देखना होगा। यदि आपके मन में इस मुद्दे पर कोई सवाल हो तो आप जरूर पूछें। धन्यवाद।

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