कितनी मायने रखती है जमानत से जुड़ी सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है जो आने वाले समय में कई लोगों को कानूनी दबाव से राहत दिला सकती है। यह टिप्पणी उन लोगों के लिए राहतकारी हो सकती है जो सोचते हैं कि कानून उनके जीने के अधिकार को छीन रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जमानत मिलना नियम है और जेल जाना अपवाद है। यह टिप्पणी पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) के मामलों पर भी लागू होती है। आइए समझते हैं कि इसका क्या मतलब है और इसका कितना व्यापक महत्व है।
सबसे पहले, मनी लॉन्ड्रिंग को समझते हैं। सरल शब्दों में, काले धन को सफेद करना मनी लॉन्ड्रिंग कहलाता है। अवैध धन, जिस पर आपने टैक्स नहीं चुकाया, उसे कानूनी ढंग से उपयोग में लाने की प्रक्रिया को मनी लॉन्ड्रिंग कहते हैं। उदाहरण के लिए, बिना टैक्स चुकाए धन को किसी संपत्ति में निवेश करना और फिर उस संपत्ति को बेचकर धन को वैध दिखाना मनी लॉन्ड्रिंग का एक तरीका है। इसके अलावा, अवैध धन को हवाला के माध्यम से विदेश भेजकर वहां से किसी शेल कंपनी के माध्यम से अपने धंधे में निवेश दिखाना भी मनी लॉन्ड्रिंग का एक तरीका है। इन गतिविधियों को रोकने के लिए 2002 में भारत में एक कानून बनाया गया।
पीएमएलए के तहत जमानत को लेकर काफी सख्ती बरती गई है। इसमें धारा 45 के तहत यह प्रावधान है कि आरोपी को यह सिद्ध करना होगा कि उसने मनी लॉन्ड्रिंग नहीं की है। जमानत के लिए सरकारी वकील की संतुष्टि जरूरी होती है कि आरोपी बाहर जाकर सबूतों को नष्ट नहीं करेगा।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत मिलना नियम है और जेल जाना अपवाद। यह टिप्पणी मनी लॉन्ड्रिंग कानून पर भी लागू होती है। सुप्रीम कोर्ट का यह बयान महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे कानून का डर कम होगा और लोग अपने जीने के अधिकार के प्रति आश्वस्त हो सकेंगे।
जमानत का मतलब होता है कि आरोपी को तब तक रिहा कर दिया जाए जब तक उस पर लगे आरोप सिद्ध नहीं हो जाते। पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल करने में समय लगता है और आरोपी तब तक न्यायिक हिरासत में रहता है। इस बीच, आरोपी कोर्ट से जमानत की मांग कर सकता है कि जब तक उसका अपराध सिद्ध नहीं होता, उसे जेल में न रखा जाए।
पीएमएलए के मामले में आरोपी को ही सिद्ध करना होता है कि उसने मनी लॉन्ड्रिंग नहीं की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा कि यह गलत है। किसी पर आरोप लगने का मतलब यह नहीं होता कि वह दोषी है, और उसे जेल में रखना अपवाद होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का यह बयान महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह जमानत के अधिकार को मजबूत करता है और लोगों के जीने के अधिकार को सुनिश्चित करता है। जेल भेजने का मतलब यह नहीं होता कि व्यक्ति दोषी है और इसे एक अपवाद माना जाना चाहिए। इस बयान से न्यायिक प्रक्रिया में संतुलन बनेगा और लोगों के मन में न्याय प्रणाली के प्रति विश्वास बढ़ेगा।
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