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आखिर चीन और भारत को नजदीक ले आए पुतिन भारत-चीन सीमा से पीछे हटी सेना

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आखिर चीन और भारत को नजदीक ले आए पुतिन भारत-चीन सीमा से पीछे हटी सेना

आज हम एक ऐसी घटना की चर्चा करेंगे जो अक्सर युद्ध के समय की कूटनीति के पीछे की रणनीति को समझाती है। आज का सेशन आपको यह बताएगा कि जब नाटो और रूस आपस में झगड़ रहे हैं, तो पर्दे के पीछे क्या चल रहा है।

मैंने बताया था कि पुतिन ने नाटो को धमकाते हुए कहा कि अगर आपने यूक्रेन को लॉन्ग रेंज मिसाइल दी, तो मेरा हमला नाटो देशों पर होगा। इस धमकी ने नाटो मेंबर्स को रूस के खिलाफ एकजुट होने पर मजबूर कर दिया। मैंने बताया कि यूके के पीएम बाइडन से मिलने पहुंचे, और कनाडा भी यूक्रेन को मिसाइल देने की बात कर रहा था। नाटो देशों ने फिलहाल के लिए लॉन्ग रेंज मिसाइल देने से रुकने का फैसला किया।

 पुतिन की धमकी ने काम किया और नाटो देशों ने फिलहाल के लिए लॉन्ग रेंज मिसाइल देने से रोक दिया। लेकिन यह स्थायी नहीं है क्योंकि यह युद्ध ढाई साल से चल रहा है और आगे भी बढ़ सकता है।

पुतिन के साथ कौन से देश खड़े हैं? नाटो मेंबर्स की संख्या बढ़कर 32 हो चुकी है, लेकिन पुतिन के साथ कोई देश खुलकर नहीं खड़ा है। डोबल साहब ने पुतिन से मुलाकात की और मोदी जी के साथ यूक्रेन के राष्ट्रपति से हुई बातचीत की जानकारी दी।

इसके बाद डोबल साहब ने चाइना के वांग व से मुलाकात की, जो चाइना के दूसरे सबसे बड़े नेता हैं। इस मुलाकात के बाद चाइनीज मीडिया में खबर आई कि वांग व और इंडिया के एनएसए ने सेंट पिट्सबर्ग में बातचीत की और बॉर्डर इश्यूज को लेकर सहमति बनी।

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गलवान वैली इंसिडेंट के बाद से दोनों देशों की सेनाएं बॉर्डर पर डटी थीं, लेकिन अब 21 राउंड वार्ता के बाद सेनाएं पीछे हटने लगी हैं। जयशंकर साहब ने स्विट्जरलैंड में अनाउंस किया कि 75% तक डिसएंगेजमेंट हो चुका है और दोनों देशों ने अपनी सेनाएं पीछे ले ली हैं।

गलवान वैली इंसिडेंट 15 जून 2020 को हुआ था, जिसमें दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। उसके बाद से 21 राउंड बातचीत के बाद भी कोई स्पष्ट निर्णय नहीं निकला था। अब दोनों देशों की सेनाएं 75% तक पीछे हट गई हैं।

भारत ने रूस से मिले S-400 मिसाइल सिस्टम को बॉर्डर पर तैनात किया और 68000 सैनिक भेजे। राफेल विमानों को भी बॉर्डर पर तैनात किया गया। चाइना ने भी प्रॉपर इंफ्रास्ट्रक्चर बना लिया है। अब सवाल यह है कि सेनाएं 75% तक पीछे कैसे हट गईं।

इसका जवाब पुतिन हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत रूस के बीच शीत युद्ध शुरू हुआ। अमेरिका ने नाटो बनाया और सोवियत रूस ने वारसा पैक्ट। सोवियत रूस टूट गया और नाटो बचा रहा। अब पुतिन ने ब्रिक्स और एससीओ को मजबूत करने की शुरुआत की।

नाटो में 32 मेंबर्स हैं जबकि वारसा पैक्ट खत्म हो गया। पुतिन ने सोवियत रूस को पुरानी याद दिलाकर अपने पड़ोसियों को एक करने की कोशिश की। पुतिन ने चाइना और भारत को एक साथ लाकर नाटो के खिलाफ खड़ा किया।

पुतिन ने अमेरिका के विरोधियों को एक करने का प्रयास किया। भारत और चाइना उनकी कोर ताकत बनकर निकले। पुतिन ने ब्रिक्स और एससीओ को मजबूत करने के लिए यात्राएं कीं। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री और शी जिनपिंग से मुलाकात की।

पुतिन ने शी जिनपिंग को समझाया कि अगर चाइना ताइवान पर हमला करता है और अमेरिका भारत का उपयोग करता है, तो चाइना चारों तरफ से घिर जाएगा। इसलिए पुतिन ने एससीओ और ब्रिक्स को मजबूत बनाने की शुरुआत की। नाटो में सैन्य गठबंधन है जबकि ब्रिक्स में नहीं है। इन दोनों देशों का एक होना ही पुतिन की सबसे बड़ी जीत है।

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