अमेरिका की घेराबंदी फेल! जानिए कैसे भारत ने रक्षा क्षेत्र में फ्रांस को चुना विकल्प
इस चर्चा में एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटना को समझने के लिए कुछ बुनियादी सिद्धांतों को जानना जरूरी है। पहला सिद्धांत यह है कि अमेरिका किसी का सगा नहीं होता। दूसरे, जियो-पॉलिटिक्स में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता, और न ही कोई स्थायी मित्र होता है। इन सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका के लिए सबसे अच्छा यही होता है कि कोई देश उसके साथ हथियारों की खरीदारी कर ले। इस प्रकार, जो देश अमेरिका के साथ वेपन डील करता है, वह उसके लिए सबसे अच्छा मित्र होता है।
अमेरिका अक्सर देशों को धमकी देता है कि वे रूस के साथ डील न करें। वह हमेशा कहता है कि भले ही रूस के साथ आपके पुराने संबंध रहे हों, लेकिन अब हम आपको अधिक व्यापारिक लाभ दे सकते हैं। इसलिए, जब आप व्यापार में लाभ उठाते हैं, तो आपको हमारे हथियार भी खरीदने चाहिए। इस संदर्भ में, पूरी दुनिया में दो प्रमुख शक्तियों के बीच विभाजन साफ दिखाई देता है: एक तरफ रूस और दूसरी तरफ अमेरिका। अमेरिका के साथ कौन खड़ा है? नाटो के 32 सदस्य, जिसमें फ्रांस और ब्रिटेन सबसे ताकतवर देश हैं, हमेशा अमेरिका के साथ रहते हैं।
फ्रांस का इतिहास भी ध्यान देने योग्य है। पहले, फ्रांस एक शक्तिशाली देश था, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद उसकी शक्ति में कमी आई। अमेरिका ने इस दौरान हथियार बेचे और युद्धों का लाभ उठाया, जिससे वह समृद्ध हुआ। अब फ्रांस अपनी पुरानी शक्ति को पुनः प्राप्त करने के अवसर तलाशता है। ऐसे में, भारत ने अमेरिका और फ्रांस के बीच एक हल्की सी तल्खी पैदा करने में सफलता पाई है।
जब अमेरिका और रूस भारत को अपनी ओर खींच रहे थे, तब अमेरिका ने भारत पर अपना हक जताना शुरू कर दिया। लेकिन भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, अमेरिका जैसे बड़े देश को हैंडल करने में सक्षम है। हाल ही में, प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान, भारत ने अमेरिका के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें ड्रोन का एक बड़ा सौदा शामिल है। यह सौदा लगभग 4 बिलियन डॉलर का है।
इस तरह, अमेरिका ने भारत पर दबाव डालने का प्रयास किया, लेकिन भारत ने फ्रांस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करते हुए एक संतुलन बनाने में सफलता प्राप्त की। भारत ने राफेल जेट्स के लिए 32 विमानों का समझौता किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत अब एक स्वतंत्र और मजबूत शक्ति बनकर उभरा है।
अंत में, मोदी जी ने इस जटिल स्थिति को समझते हुए दोनों देशों के बीच संतुलन बनाने का कौशल दिखाया। भारत ने यह साबित कर दिया कि वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने हितों की रक्षा कर सकता है और आवश्यकतानुसार अपने संबंधों को संतुलित कर सकता है।