अब एक और भारतीय क्षेत्र पर पाकिस्तान का दावा जानिए क्या है जुनागढ़ विवाद?
अब हम पाकिस्तान की तरफ बढ़ते हैं, जहां स्थिति कुछ इस प्रकार है कि घर में नहीं दाने और मम्मी चली भुनाने। यह कथन पाकिस्तान के वर्तमान हालात पर सटीक बैठता है। हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान दिया है कि जूनागढ़ भारत का हिस्सा नहीं है, बल्कि पाकिस्तान का है और वे इस मुद्दे को यूएन में उठाते रहेंगे। यह बयान हमें इमरान खान के उस कदम की याद दिलाता है, जब उन्होंने जूनागढ़ को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाने का प्रयास किया था। आज के सत्र में हम जानेंगे कि जूनागढ़ की पूरी कहानी क्या है।
पाकिस्तान में वर्तमान समय में मॉल लूटे जा रहे हैं, लेकिन विदेश मंत्रालय देशवासियों में देशप्रेम जगाने के लिए भारत के एक हिस्से को लेने की बात कर रहा है। ममता जहरा बलूच ने कहा कि जूनागढ़ पाकिस्तान का हिस्सा था और भारत ने उस पर अवैध कब्जा कर रखा है। पाकिस्तान इस मुद्दे को जम्मू-कश्मीर की तरह अधूरा एजेंडा मानता है और अपने विदेश मंत्री की प्रवक्ता के जरिए बयान जारी करता है। हालांकि बलूच मैडम जिस क्षेत्र से आती हैं, वह खुद आजादी की मांग कर रहा है। पाकिस्तान का दावा है कि जूनागढ़ का मुद्दा भी जम्मू-कश्मीर की तरह अनफिनिश्ड एजेंडा है।
इस समय पर जब आपके पास कुछ भी नहीं बचा हो, तो अपने देश के लोगों को फेक मोटिवेशन देकर आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। पाकिस्तान में भी इस तरह से इंडिया को दुश्मन बताकर जूनागढ़ मुद्दे को उठाया जा रहा है। हम आज इस मुद्दे का विस्तृत विश्लेषण करेंगे और जानेंगे कि जूनागढ़ की पूरी कहानी क्या है।
भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष की नींव अंग्रेजों ने रखी थी। अंग्रेजों ने अपनी डिवाइड एंड रूल की नीति के तहत धर्म के आधार पर भारत को बांट दिया। उन्होंने कहा कि मुसलमानों के लिए पाकिस्तान और बाकियों के लिए भारत होगा। जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तो ब्रिटिश इंडिया के दो हिस्से बनाए गए – भारत और पाकिस्तान। अंग्रेजों का नियंत्रण दो प्रकार से था – एक तो वे क्षेत्र जहाँ ब्रिटिशर्स डायरेक्ट कंट्रोल में थे और दूसरे वे रियासतें जहाँ राजघरानों का शासन था। अंग्रेजों ने रियासतों से कहा कि वे भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में मिल सकते हैं या स्वतंत्र रह सकते हैं।
1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद जूनागढ़ के नवाब महाबत खान ने पाकिस्तान में मिलने का फैसला किया। जूनागढ़ की 80% जनता हिंदू थी, जबकि नवाब मुस्लिम थे। इस निर्णय के पीछे नवाब के प्रधानमंत्री शाहनवाज भुट्टो का हाथ था, जो सिंध प्रांत से मुस्लिम लीग के सदस्य थे। उन्होंने जिन्ना से बातचीत करके पाकिस्तान में मिलने की इच्छा जताई।
शाहनवाज भुट्टो और जिन्ना की सहमति से 15 अगस्त 1947 को जूनागढ़ के पाकिस्तान में मिलने का ऐलान किया गया। यह ऐलान जनता की राय लिए बिना किया गया, जिससे जनता में भारी विरोध हुआ। भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और जूनागढ़ को भारत में मिलाने का फैसला किया।
इस प्रकार, जूनागढ़ का मुद्दा आज भी पाकिस्तान के लिए एक अधूरा एजेंडा बना हुआ है, जो समय-समय पर उठता रहता है।