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यूरोप का परमाणु नीति पर नया रुख ट्रंप से अलगाव या रूस का डर?

यूरोप का परमाणु नीति पर नया रुख ट्रंप से अलगाव या रूस का डर?

यूरोप का परमाणु नीति पर नया रुख ट्रंप से अलगाव या रूस का डर?

विश्व में बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के बीच यूरोपियन यूनियन (EU) अब अपनी सुरक्षा नीति पर पुनर्विचार कर रहा है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने हाल ही में एक प्रस्ताव दिया है जिसमें यूरोप की सुरक्षा के लिए फ्रांस के परमाणु हथियारों की भूमिका को बढ़ाने की बात कही गई है। यह चर्चा तब और प्रासंगिक हो जाती है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाटो से अमेरिका के संभावित अलगाव का संकेत दिया है।

यूरोप में परमाणु शक्ति की स्थिति:

  • यूरोप में केवल दो देशों – फ्रांस और ब्रिटेन – के पास परमाणु हथियार हैं।
  • जर्मनी, जो यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, के पास द्वितीय विश्व युद्ध के बाद परमाणु हथियार रखने की अनुमति नहीं है।
  • ब्रिटेन अब यूरोपियन यूनियन का हिस्सा नहीं है, इसलिए फ्रांस अकेला परमाणु शक्ति संपन्न EU देश बचता है।

मैक्रों की नई नीति:

  • रूस की बढ़ती सैन्य गतिविधियों और अमेरिका की अनिश्चित भूमिका के मद्देनजर, मैक्रों ने यूरोपीय देशों को फ्रांस की परमाणु छत्रछाया में आने का प्रस्ताव दिया है।
  • उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका यूरोप की सुरक्षा नहीं करता, तो फ्रांस यह जिम्मेदारी उठाएगा।
  • यूरोपीय देशों को अपनी रक्षा खर्च बढ़ाने की सलाह दी गई है।

रूस की सैन्य तैयारियां और यूरोप की चिंता:

  • रूस 2030 तक 3 लाख नए सैनिक, 3000 टैंक और 300 लड़ाकू विमान जोड़ने की योजना बना रहा है।
  • ट्रंप के सत्ता में आने के बाद रूस का आत्मविश्वास और बढ़ गया है, जिससे यूरोप को अपने भविष्य की सुरक्षा को लेकर संदेह हो रहा है।
  • अगर यूक्रेन हारता है, तो अगला लक्ष्य बाल्टिक देश (एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया) और फिर पोलैंड हो सकते हैं।

ट्रंप की रणनीति और यूरोप की दुविधा:

  • ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि अगर नाटो सदस्य देश पर्याप्त वित्तीय योगदान नहीं देते, तो अमेरिका उनकी सुरक्षा नहीं करेगा।
  • यूरोप पर 25% टैरिफ लगाने की बात भी कही गई है, जिससे यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ सकता है।
  • अमेरिका और रूस के बीच संभावित ‘समझौते’ की अटकलें लगाई जा रही हैं, जिससे यूरोप को अपनी सुरक्षा व्यवस्था खुद करनी पड़ सकती है।
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यूरोप की प्रतिक्रिया:

  • यूरोपीय नेता अब यह सोच रहे हैं कि या तो वे अमेरिका को धन देकर नाटो में बनाए रखें, या अपनी स्वतंत्र सुरक्षा नीति बनाएं।
  • फ्रांस और ब्रिटेन के परमाणु हथियारों का उपयोग पूरे यूरोप की सुरक्षा के लिए करने पर चर्चा हो रही है।
  • अमेरिका ने यूरोप में अपनी सेना तैनात कर रखी है, जिससे यूरोप अमेरिका पर बहुत हद तक निर्भर है। अगर अमेरिका पीछे हटता है, तो यूरोप को तुरंत अपनी सुरक्षा नीतियों को मजबूत करना होगा।

यूक्रेन का भविष्य और रूस की प्रतिक्रिया:

  • अमेरिका ने यूक्रेन को सैन्य सहायता कम कर दी है, जिससे जेलेंस्की की सरकार चिंतित है।
  • यूरोप अब यूक्रेन को अपना ‘यूटेलसैट’ सैटेलाइट सिस्टम प्रदान कर रहा है ताकि वह अमेरिका की गैरमौजूदगी में अपनी रक्षा कर सके।
  • रूस ने मैक्रों के बयान को ‘धमकी’ बताया है, जिससे तनाव और बढ़ सकता है।

निष्कर्ष: यूरोप अब एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है, जहां उसे तय करना होगा कि वह अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर रहेगा या अपनी स्वतंत्र रणनीति बनाएगा। मैक्रों का प्रस्ताव यूरोप के लिए एक नई दिशा खोल सकता है, लेकिन इससे रूस के साथ टकराव की संभावनाएं भी बढ़ सकती हैं। आने वाले वर्षों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यूरोप इस चुनौती से कैसे निपटता है।

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