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यमन में भारतीय नर्स निशा प्रिया को मौत की सजा

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यमन में भारतीय नर्स निशा प्रिया को मौत की सजा

यमन में एक भारतीय नर्स निशा प्रिया को मौत की सजा सुनाई गई है। इस सजा को यमन के राष्ट्रपति रशद मोहम्मद अल अलीमी ने मंजूरी दी है। आइए इस मामले के घटनाक्रम और भारत सरकार की प्रतिक्रिया को विस्तार से समझते हैं।

निशा प्रिया की कहानी

निशा प्रिया केरल के पलक्कड़ जिले के कोलन इलाके से ताल्लुक रखती हैं। साल 2008 में अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए निशा यमन चली गईं। 2011 में भारत वापस लौटकर उन्होंने टॉमी थॉमस से शादी की और 2012 में परिवार के साथ फिर से यमन चली गईं। वहां उनकी एक बेटी का जन्म हुआ।

परिवारिक खर्च बढ़ने पर टॉमी भारत लौट आए, जबकि निशा ने यमन में क्लीनिक खोलने का फैसला किया। स्थानीय कानून के मुताबिक, यह क्लीनिक खोलने के लिए उन्हें एक स्थानीय पार्टनर की जरूरत थी, जिसके लिए उन्होंने तलाल अब्दो महदी के साथ साझेदारी की। इस क्लीनिक के लिए निशा और उनके पति ने करीब 50 लाख रुपये का निवेश किया।

विवाद और गिरफ्तारी

कुछ समय बाद यमन गृहयुद्ध की चपेट में आ गया। इस दौरान निशा और उनके पार्टनर महदी के बीच विवाद शुरू हो गया। महदी ने निशा का पासपोर्ट जब्त कर लिया, जिससे वह भारत लौटने में असमर्थ हो गईं।

जुलाई 2017 में महदी का शव टुकड़ों में एक वाटर टैंक में मिला। आरोप लगा कि निशा ने उन्हें इंजेक्शन देकर मार डाला। करीब एक महीने बाद निशा को गिरफ्तार कर लिया गया। 2020 में यमन की निचली अदालत ने निशा को मौत की सजा सुनाई, जिसे ऊपरी अदालत ने भी बरकरार रखा।

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ब्लड मनी और भारत सरकार का प्रयास

यमन के कानून के तहत, ब्लड मनी (दिया) के जरिए दोषी को माफी मिल सकती है। निशा की मां और सेव निशा प्रिया फाउंडेशन इस दिशा में प्रयासरत हैं। उन्होंने पीड़ित परिवार से समझौते के लिए ब्लड मनी जुटाने का प्रयास किया है।

इस मामले में भारतीय दूतावास ने वकील की व्यवस्था की, लेकिन अब तक पर्याप्त धनराशि नहीं जुटाई जा सकी है। 30 दिसंबर को राष्ट्रपति ने सजा के कागज पर हस्ताक्षर कर दिए, जिससे अगले एक महीने में सजा लागू होने की संभावना है।

भारत सरकार की प्रतिक्रिया

भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि वे इस मामले से अवगत हैं और परिवार के साथ सभी विकल्प तलाश रहे हैं। सरकार ने हर संभव मदद का आश्वासन दिया है।

आगे की संभावनाएं

यह मामला बेहद जटिल है क्योंकि यमन में गृहयुद्ध और अंतरराष्ट्रीय दबावों की स्थिति बनी हुई है। ब्लड मनी के जरिए समझौता फिलहाल सबसे संभावित विकल्प नजर आ रहा है। हालांकि, समय बेहद कम है और स्थिति संवेदनशील बनी हुई है।

यह एक अनूठा मामला है, जिसमें कूटनीतिक और कानूनी दोनों प्रयासों की जरूरत है। निशा प्रिया की जिंदगी बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और भारत सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।

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