मुंबई में एक बच्ची की अनसुनी कहानी मांओं ने छोड़ा, समाज अपनाएगा?
मुंबई की घनी बस्तियों में जन्मी एक चार महीने की मासूम, जिसने दुनिया में कदम रखा तो उसे मां का प्यार नहीं मिला। न तो जन्म देने वाली मां ने उसे अपनाया, न ही पालने का वादा करने वाली मां ने।
एक अनोखा समझौता
एक हिंदू महिला, जो आर्थिक तंगी और पारिवारिक परिस्थितियों के कारण अपने गर्भस्थ शिशु को जन्म देने में असमर्थ थी। दूसरी ओर, एक मुस्लिम महिला, जो मां बनना चाहती थी लेकिन उसकी कोख यह जिम्मेदारी फिर से उठाने में असमर्थ थी। दोनों ने एक समझौता किया—हिंदू महिला बच्चे को जन्म देगी और मुस्लिम महिला उसे अपनी संतान के रूप में अपनाएगी। कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए यह समझौता गुप्त रखा गया।
अक्टूबर 2024 में जब बच्ची का जन्म हुआ, तो उसकी मां बदल दी गई। अस्पताल में मुस्लिम महिला के आधार कार्ड का उपयोग किया गया, जिससे बच्ची के जन्म प्रमाण पत्र में उसका नाम मां के रूप में दर्ज हो गया। जन्म के बाद बच्ची मुस्लिम महिला के पास आ गई और सब कुछ ठीक चल रहा था—चार महीने तक।
एक रिपोर्ट, जिसने सब कुछ बदल दिया
जनवरी 2025 में बच्ची की तबीयत बिगड़ने पर उसे सर्जरी के लिए वाडिया अस्पताल ले जाया गया। जांच में पता चला कि बच्ची एचआईवी पॉजिटिव है। इसके बाद अस्पताल ने मुस्लिम महिला का एचआईवी टेस्ट करवाया, जो निगेटिव आया। इस खबर ने सब कुछ बदल दिया—जिस ममता से वह बच्ची को अपना चुकी थी, वह डर में बदल गई। उसने अस्पताल में साफ कह दिया कि अब वह इस बच्ची को नहीं रख सकती।
बच्ची को छोड़कर दोनों मांओं का गायब होना
मुस्लिम महिला ने अस्पताल में पूरी सच्चाई बताई और बच्ची को वहीं छोड़कर चली गई। अस्पताल ने महिला एवं बाल कल्याण विभाग को इसकी सूचना दी। 21 फरवरी को ठाणे जिला बाल संरक्षण हेल्पलाइन को इस मामले की जानकारी दी गई। 28 फरवरी को ठाणे के मानपाड़ा पुलिस स्टेशन में शून्य एफआईआर दर्ज की गई, जिसे बाद में मुंबई के भोइवाड़ा पुलिस स्टेशन को ट्रांसफर कर दिया गया।

कानूनी कार्रवाई और सवालों के घेरे में व्यवस्था
दोनों महिलाओं पर अवैध रूप से बच्चे को त्यागने, झूठे दस्तावेज बनाने, और धोखाधड़ी के आरोपों में मामला दर्ज किया गया है। इसके अलावा, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 के तहत भी उन पर केस दर्ज हुआ है।
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने कई सवाल खड़े कर दिए—
- क्या एचआईवी पॉजिटिव आना किसी की गलती है?
- क्या समाज आज भी इस बीमारी को कलंक मानता है?
- क्या व्यवस्था अनाथ बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया को आसान बना सकती है?
- इस बच्ची का भविष्य क्या होगा—कोई सरकारी अनाथालय, कोई एनजीओ, या कोई ऐसा परिवार जो एचआईवी पॉजिटिव बच्चे को अपनाने की हिम्मत रखता हो?
बच्ची इस समय कलवा के एक अस्पताल में भर्ती है, जहां उसे इलाज मिल रहा है, लेकिन एक परिवार की जरूरत अब भी अधूरी है। उसकी मांओं ने उसे छोड़ दिया, लेकिन क्या समाज उसे अपनाएगा?