मणिपुर में राष्ट्रपति शासन कारण, प्रभाव और राजनीतिक भविष्य
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगने की घटना पर चर्चा करते हुए, यह समझना जरूरी है कि यह कदम किन परिस्थितियों में उठाया गया। मणिपुर में फरवरी 2022 में विधानसभा चुनाव हुए थे, और अभी तक केवल 3 साल ही बीते हैं। ऐसे में, यह सवाल उठता है कि आखिर क्यों इतने कम समय में ही राष्ट्रपति शासन लगाने की नौबत आई।
मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह के इस्तीफे के बाद, नया मुख्यमंत्री चुनने की प्रक्रिया में गतिरोध उत्पन्न हो गया। राज्य में मैते और कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष भी इसका एक बड़ा कारण है। मैते समुदाय, जो मैदानी इलाकों में रहता है, सत्ता में प्रभावशाली है, जबकि कुकी और नागा समुदाय, जो पहाड़ी इलाकों में रहते हैं, अपने अधिकारों को लेकर चिंतित हैं। हाल ही में मैते समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिए जाने के बाद यह संघर्ष और तीव्र हो गया।
राज्य में 60 विधायकों की विधानसभा है, जिसमें बीजेपी के पास 37 विधायक हैं। इनमें से 15 विधायक वीरेंद्र सिंह के समर्थन में हैं, जबकि 10 विधायक कुकी समुदाय से हैं। ऐसे में, एक ऐसे मुख्यमंत्री की तलाश है जो दोनों समुदायों को स्वीकार्य हो, लेकिन अभी तक ऐसा कोई चेहरा सामने नहीं आया है।
केंद्र सरकार ने इस स्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला किया, जो कि 2014 के बाद पहली बार हुआ है जब केंद्र और राज्य दोनों में एक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद राष्ट्रपति शासन लगाया गया। यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि विधानसभा का सत्र 6 महीने से अधिक समय तक नहीं बुलाया जा सकता था, और नया मुख्यमंत्री चुनने में देरी हो रही थी।

कुकी समुदाय इस फैसले से खुश है, क्योंकि उन्हें लगता है कि अब केंद्र सरकार उनकी बात सुनेगी। वहीं, मैते समुदाय इससे नाराज है, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह कदम उन्हें दबाने के लिए उठाया गया है।
भविष्य में क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। क्या मणिपुर में नए चुनाव होंगे, या फिर बीजेपी की वापसी होगी, यह समय ही बताएगा। फिलहाल, राष्ट्रपति शासन के तहत राज्य का प्रशासन केंद्र सरकार द्वारा चलाया जाएगा, और विधानसभा की शक्तियां निलंबित कर दी गई हैं।