भीमराव अंबेडकर जी संघर्ष शिक्षा और समानता की यात्रा
जिन्हें लगता है कि भगवान ने उनके साथ न्याय नहीं किया। आज मैं एक कहानी बताने जा रहा हूं, जो भीमराव अंबेडकर जी के बचपन से जुड़ी है। यह वह समय था जब उनकी जाति के बच्चों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी। चूंकि उनके पिता भारतीय सेना में सूबेदार थे, उन्हें स्कूल में प्रवेश मिल गया। लेकिन जब वह स्कूल पहुंचे, तो उन्हें एहसास हुआ कि बाकी बच्चे उनसे बात नहीं करते, उनके साथ खाना नहीं खाते, और यहां तक कि उन्हें उस मटके से पानी पीने तक की इजाजत नहीं थी, जिससे अन्य बच्चे पानी पीते थे। स्कूल में बच्चों की सीटिंग रोटेट होती थी, लेकिन अंबेडकर जी को कभी भी बाकी बच्चों के साथ बैठने का मौका नहीं मिला। उन्हें हमेशा क्लास की आखिरी पंक्ति में अकेले बैठना पड़ता था, जहां बाकी बच्चों के जूते पड़े होते थे। उन्हें बैठने के लिए दरी भी घर से लानी पड़ती थी। सोचिए, पांच साल का बच्चा स्कूल जा रहा है और कोई उससे बात नहीं करता। उसे यह डर होता है कि कहीं वह किसी से छू न जाए, और उसे यह भी पता होता है कि अगर वह प्यासा हो, तो कोई उसे पानी तक नहीं देगा। यह घटना सवा साल पहले की नहीं, बल्कि उस बच्चे की है, जिसकी जाति में किसी को भी स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी।
आजकल के बच्चों के साथ अगर ऐसा हो, तो उनका आत्मविश्वास टूट जाता है और वे स्कूल जाना छोड़ देते हैं। लेकिन अंबेडकर जी ने इस अपमान के बावजूद अपनी पढ़ाई पूरी की और क्लास के बाकी बच्चों से कहीं आगे बढ़ गए। उनकी कड़ी मेहनत और लगन के कारण उन्हें वजीफा मिला और उन्होंने विदेश में पढ़ाई की। अंबेडकर जी ने तीन पीएचडी कीं और उनके पास 35 डिग्रियां थीं। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में एमए किया, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की और कोलंबिया यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट ऑफ लॉ की उपाधि हासिल की। अंबेडकर जी नौ भाषाएं बोलते थे, और उनका ज्ञान इतने व्यापक विषयों में था कि वह अर्थशास्त्र, कानून, राजनीति, और समाजशास्त्र जैसे विभिन्न क्षेत्रों में माहिर थे। उनकी पर्सनल लाइब्रेरी में 35,000 किताबें थीं। इस तरह, पिछले 150 सालों में शायद ही कोई भारतीय इतना पढ़ा-लिखा हो।
अंबेडकर जी शिक्षा को शेरनी के दूध के समान मानते थे, जिससे जो जितना अधिक पढ़ता है, वह उतनी तेजी से आगे बढ़ता है। इसके बावजूद, हैरानी की बात यह है कि आज की पॉलिटिकल पार्टियों ने अंबेडकर जी को केवल दलित राजनीति तक सीमित कर दिया है। बहुत से लोग यह मानते हैं कि अंबेडकर जी सिर्फ दलितों के नेता थे, जबकि उनका दृष्टिकोण और उनका योगदान भारत के हर नागरिक के लिए था।
अंबेडकर जी ने खुलकर कहा था कि वह गांधी जी को महात्मा नहीं मानते। 1953 में, उन्होंने बीबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू में गांधी जी की आलोचना की थी। उनका कहना था कि गांधी जी एक रूढ़िवादी हिंदू थे, जो वर्ण व्यवस्था और छुआछूत में विश्वास रखते थे। गांधी जी के विचारों में विरोधाभास था। उन्होंने एक ओर अंग्रेजी अखबार में खुद को जातिवाद और छुआछूत का विरोधी बताया, लेकिन गुजराती अखबार में उनका संदेश काफी रूढ़िवादी था। अंबेडकर जी ने यह भी कहा था कि गांधी जी ने लोगों को धोखा दिया।
अंबेडकर जी ने गांधी जी की राजनीति पर तीखी टिप्पणी की थी, क्योंकि गांधी जी केवल अनुसूचित जातियों के लिए मंदिरों में प्रवेश और छुआछूत खत्म करने की बात करते थे, जबकि अंबेडकर का मानना था कि इससे वास्तविक समानता नहीं आएगी। वह चाहते थे कि अनुसूचित जातियों को हर क्षेत्र में बराबरी का अवसर मिले। गांधी जी का यह मानना था कि जाति के आधार पर पेशे का चुनाव किया जाना चाहिए, जो अंबेडकर जी को बिल्कुल अस्वीकार्य था।
आज की जो पॉलिटिकल पार्टियां गांधी जी और अंबेडकर जी के नाम पर राजनीति करती हैं, वे इस सच्चाई को जनता से क्यों नहीं बतातीं कि अंबेडकर जी ने गांधी जी के बारे में क्या विचार व्यक्त किए थे? कांग्रेस पार्टी के बारे में यह भी कम लोग जानते हैं कि जवाहरलाल नेहरू ने अंबेडकर जी के खिलाफ चुनाव प्रचार किया था। जब संविधान बनाने का समय आया, तो पहले नेहरू जी ने अंबेडकर जी को संविधान सभा में शामिल नहीं होने दिया था। इसके बाद, जब अंबेडकर जी ने चुनाव लड़ने की योजना बनाई, तो कांग्रेस ने उनकी हार के लिए कई हथकंडे अपनाए।

अंबेडकर जी की मृत्यु 1956 में हुई थी, लेकिन उनकी तस्वीर संसद के सेंट्रल हॉल में 1990 तक नहीं लगी थी। यह हकीकत है कि अंबेडकर जी के साथ राजनीति ने अन्याय किया था। हालांकि, उनके विचारों और योगदान को आज हर पार्टी गर्व से स्वीकार करती है। अंबेडकर जी का जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वह भारत में दलितों के अधिकारों के लिए लड़े और अपनी पूरी जिंदगी समाज में समानता की लड़ाई के लिए समर्पित कर दी।
अगर कोई पॉलिटिकल पार्टी अंबेडकर जी के नाम पर राजनीति करती है, तो उन्हें उनके अन्य विचारों पर भी चर्चा करनी चाहिए। उन्होंने जिस तरह से समाज के हर हिस्से को अपने विचारों से प्रभावित किया, वह सिर्फ दलितों तक सीमित नहीं था। अंबेडकर जी का योगदान इस देश के हर नागरिक के लिए था। अंबेडकर जी की सोच और उनके कार्यों को समझना और फैलाना हमारी जिम्मेदारी है। उनका काम इतना बड़ा है कि हमें उनके विचारों को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
अब, अंबेडकर जी की सच्चाई को हर कोई स्वीकार करता है, क्योंकि वह एक सच्चे राष्ट्रपिता थे, जिन्होंने भारत के लिए इतना महान काम किया। उनका योगदान अमेरिका के महान नेताओं से कहीं अधिक है।