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भारत के विदेश मंत्री की सुरक्षा में चूक संयोग या साजिश?

भारत के विदेश मंत्री की सुरक्षा में चूक संयोग या साजिश?

भारत के विदेश मंत्री की सुरक्षा में चूक संयोग या साजिश?

नमस्कार साथियों, मैं अंकित अवस्थी आपका स्वागत करता हूं। हाल ही में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की ब्रिटेन यात्रा के दौरान एक अप्रत्याशित घटना सामने आई। लंदन में जब वे एक कार्यक्रम में शामिल थे, तब खालिस्तानी समर्थकों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किया। विदेश मंत्री की कार के ठीक सामने एक प्रदर्शनकारी आया और भारत के तिरंगे को नुकसान पहुंचाया। इस घटना से भारत में काफी रोष है और भारत-ब्रिटेन संबंधों पर इसके प्रभाव को लेकर गंभीर चर्चा हो रही है।

सुरक्षा में गंभीर चूक

प्रदर्शनकारी इतनी नज़दीक तक कैसे पहुंचे? क्या यह केवल एक सुरक्षा चूक थी, या फिर जानबूझकर हुई लापरवाही? ब्रिटेन जैसे देश में, जहां सुरक्षा बेहद सख्त होती है, ऐसी घटना कई सवाल खड़े करती है। अगर यह कोई आत्मघाती हमलावर होता तो? इस मामले में ब्रिटेन की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह जवाबदेही तय करे।

प्रदर्शन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दोगलापन

पश्चिमी देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसे विरोध प्रदर्शनों को अनुमति दी जाती है। लेकिन यह कैसी स्वतंत्रता है, जिसमें एक संप्रभु राष्ट्र के विदेश मंत्री का अपमान होता है? यह वही नीति है, जिसे ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से अपनाते आए हैं—”फूट डालो और राज करो।”

सिख समुदाय की भूमिका

यहां यह ज़रूरी है कि संपूर्ण सिख समुदाय को इन गिने-चुने खालिस्तानी समर्थकों से अलग किया जाए। भारत में सिख समुदाय की देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं उठ सकता, लेकिन कुछ मुट्ठी भर लोग पूरी सिख कम्युनिटी की छवि को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। सिख संगठनों को आगे आकर इस घटना की निंदा करनी चाहिए।

ब्रिटेन की राजनीतिक रणनीति

ब्रिटेन को यह समझना होगा कि भारत आज एक मजबूत राष्ट्र है। अगर ब्रिटेन भारत के साथ बेहतर व्यापारिक संबंध चाहता है, तो उसे भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने या भारत-विरोधी ताकतों को बढ़ावा देने से बचना होगा।

भारत की प्रतिक्रिया

भारत सरकार ने ब्रिटेन के उच्चायोग के अधिकारियों को तलब कर इस घटना पर सख्त आपत्ति जताई है। पहले भी भारत ने जब ब्रिटेन में खालिस्तानी हरकतों पर विरोध दर्ज कराया था, तब ब्रिटेन ने सुरक्षा बढ़ाने का आश्वासन दिया था। लेकिन यह घटना दिखाती है कि आश्वासनों को लागू करने में गंभीरता नहीं दिखाई गई।

निष्कर्ष

इस तरह की घटनाएं वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र और आंतरिक शांति के लिए खतरा हैं। अगर आतंकवादी सोच और चरमपंथी विचारधारा को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के लिए खतरा बन सकता है।

आप इस विषय पर क्या सोचते हैं? अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर दें!

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