बासमती विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच एक और लड़ाई
भारत और पाकिस्तान कई मोर्चों पर एक-दूसरे के आमने-सामने होते आए हैं। बॉर्डर पर कई बार युद्ध हो चुका है और क्रिकेट में भी माहौल युद्ध जैसा ही हो जाता है। हाल ही में चैंपियंस ट्रॉफी में भी भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जीत दर्ज की। भारत ने शर्त रखी थी कि मैच न्यूट्रल वेन्यू पर खेला जाएगा, और यह शर्त मान ली गई।
इसी तरह का एक और विवाद हाल ही में चावल को लेकर हुआ है, विशेषकर बासमती चावल के बारे में। भारत का कहना है कि बासमती चावल उसकी विरासत है, जबकि पाकिस्तान भी इसे अपना मानता है। सवाल उठता है कि जिसके खेत में पैदा हुआ चावल उसी का होगा, लेकिन जब बात पहचान की हो तो मामला पेचीदा हो जाता है। जैसे कि कानपुर के ठग्गू के लड्डू, या फिर उड़ीसा के रसगुल्ले। बासमती चावल का मसला भी ऐसा ही है। यह विवाद अब यूरोपियन कोर्ट तक पहुंच गया है। यूरोपियन यूनियन ने भारत को पाकिस्तान द्वारा प्रस्तुत प्रमाण दिखाने से मना कर दिया है। पाकिस्तान ने यूरोपियन यूनियन को बताया था कि बासमती चावल उनका है, लेकिन भारत को वह प्रमाण नहीं दिखाया गया। इसलिए भारत ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
मुद्दा यह है कि बासमती चावल किसकी पहचान है—भारत की या पाकिस्तान की? अगर वैश्विक स्तर पर यह मान लिया जाए कि बासमती चावल पाकिस्तान का है, तो इसका व्यापारिक प्रभाव भी पड़ेगा। ऐसे में बासमती चावल की ब्रांडिंग एक महत्वपूर्ण पहलू बन जाती है। भारत ने अपने बासमती चावल को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग दे रखा है, जिसका अर्थ है कि यह विशेष रूप से भारत की पहचान है। लेकिन इसे वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने के लिए डब्ल्यूटीओ के साथ एग्रीमेंट भी किया गया है। वहीं, पाकिस्तान ने भी अपने बासमती चावल को जीआई टैग दे रखा है।

भारत का 70% बासमती चावल गल्फ कंट्रीज को एक्सपोर्ट होता है, जहां इसकी अधिक मांग है। दूसरी ओर, पाकिस्तान का बासमती चावल यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में अधिक बिकता है। यूरोपियन यूनियन की फूड सिक्योरिटी नीतियों के तहत चावल की टेस्टिंग होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसमें केमिकल नहीं हैं। भारत को पहले यूरोप और अमेरिका में निर्यात में कमी का सामना करना पड़ा था क्योंकि चावल में केमिकल के हानिकारक तत्व पाए गए थे। इसके बाद भारत ने केमिकल फ्री चावल उगाने की दिशा में सुधार किया, जिससे निर्यात फिर से बढ़ गया। इस दौरान पाकिस्तान ने अपनी गुणवत्ता बनाए रखी और यूरोप में अपनी पकड़ मजबूत कर ली। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत का फैसला किसके पक्ष में आता है।