बलूचिस्तान को पाकिस्तान में शामिल करने में Jinnah का पैंतरा
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 11 मार्च को 500 से अधिक यात्रियों से भरी ट्रेन को हथियारबंद चरमपंथियों ने हाईजैक कर लिया। इस हमले की जिम्मेदारी अलगाववादी समूह बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने ली। यह हमला कोएटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस पर हुआ। 12 मार्च को रेस्क्यू ऑपरेशन का दूसरा दिन था, और ट्रेन अब भी चरमपंथियों के कब्जे में थी। पाकिस्तान के अखबार ‘डॉन’ के अनुसार, पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने अब तक 155 यात्रियों को बचा लिया, जिनमें से 37 घायल हुए। ऑपरेशन में 27 चरमपंथी मारे गए।
घटना को अंजाम देने वाला संगठन बीएलए बलूचिस्तान को स्वतंत्र राज्य बनाने की मांग करता है। उनका दावा है कि पाकिस्तान सरकार ने बलूचिस्तान को राजनीतिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर रखा है। हमारे शो ‘तारीख’ के पिछले एपिसोड में हमने बलूचिस्तान के इतिहास और इसके पाकिस्तान में विलय की परिस्थितियों पर विस्तार से चर्चा की थी। आज हम फिर उसी विषय पर बात करेंगे।
बलूचिस्तान और कलात का इतिहास
पाकिस्तान के बीचोबीच स्थित एक क्षेत्र, जिसे ‘कलात’ कहा जाता था, कभी स्वतंत्र राज्य था। दिलचस्प बात यह है कि स्वयं मोहम्मद अली जिन्ना ने इसकी स्वतंत्रता का समर्थन किया था।
27 मार्च 1948 को कलात के खान मीर अहमद खान अपने महल में थे, जब ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित समाचार ने उन्हें स्तब्ध कर दिया। रेडियो पर घोषणा हुई कि भारत ने कलात के विलय के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। खान के लिए समस्या यह थी कि पाकिस्तान को भी इस खबर की जानकारी हो गई थी। अगले ही दिन पाकिस्तानी सेना ने कलात पर हमला कर दिया, और आजाद रहने का उसका सपना ध्वस्त हो गया।
बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय
विभाजन के समय बलूचिस्तान चार रियासतों—कलात, खारान, लसबेला और मकरान—में बंटा था। ब्रिटिश शासन ने कलात को सिक्किम और भूटान जैसी स्वतंत्र श्रेणी में रखा था। अन्य तीन रियासतों ने पाकिस्तान में विलय कर लिया, लेकिन कलात इसके लिए तैयार नहीं था। मीर अहमद खान ने 1946 से अपनी स्वतंत्रता की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए थे। उन्होंने कैबिनेट मिशन से संपर्क किया और जिन्ना ने भी उनके समर्थन में पैरवी की। 11 अगस्त 1947 को मुस्लिम लीग और कलात के बीच एक साझा घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें कलात की स्वतंत्रता को स्वीकार किया गया। 15 अगस्त 1947 को भारत के स्वतंत्र होते ही अगले दिन कलात ने भी खुद को आजाद घोषित कर दिया।
मीर अहमद ने तुरंत कलात में संसद का गठन किया। लेकिन 21 अगस्त 1947 को खारान के शासक ने जिन्ना को पत्र लिखकर घोषणा की कि उनकी सल्तनत कभी कलात के अधीन नहीं रहेगी और वह पाकिस्तान के साथ जाने के इच्छुक हैं। इसके बाद धीरे-धीरे लसबेला और मकरान ने भी पाकिस्तान में विलय की इच्छा जताई।
भारत की भूमिका और रेडियो प्रसारण का प्रभाव
मार्च 1948 तक जिन्ना ने कलात के मुद्दे को टालने की कोशिश की, लेकिन अंततः 17 मार्च को खारान, लसबेला और मकरान को पाकिस्तान में मिला लिया गया। अब केवल कलात शेष था। इसी बीच 27 मार्च 1948 को ऑल इंडिया रेडियो के प्रसारण में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का जिक्र किया गया, जिसमें कहा गया कि कलात के खान पाकिस्तान की बजाय भारत में विलय चाहते हैं। इस बयान का पाकिस्तान में बड़ा हंगामा हुआ और अगले ही दिन जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना को कलात पर कब्जा करने का आदेश दे दिया। 28 मार्च को पाकिस्तानी सेना ने कलात पर हमला कर दिया, खान को कराची ले जाया गया, और उन्हें जबरन विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया। इस तरह केवल 225 दिनों की स्वतंत्रता के बाद कलात पाकिस्तान का हिस्सा बन गया।
आज का बलूचिस्तान
बलूचिस्तान क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो पाकिस्तान के 44% भूभाग को कवर करता है, लेकिन यहां की आबादी पाकिस्तान की कुल जनसंख्या का केवल 5% है। यह क्षेत्र खनिज संपदा से समृद्ध है, लेकिन यहां की जनता गरीबी और सरकारी उपेक्षा से जूझ रही है। ग्वादर बंदरगाह को पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया, जिससे होने वाली कमाई का 91% हिस्सा चीन को चला जाता है, जबकि बलूच लोगों को बेहद कम लाभ मिलता है।
बलूच राष्ट्रवादी गुट इस अन्याय के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहे हैं। हिंसा और विद्रोह के चलते पाकिस्तान इस समस्या के लिए बार-बार भारत को दोषी ठहराता है। मौजूदा हालातों को देखते हुए कई लोग बलूचिस्तान को अगला ‘बांग्लादेश’ मानने लगे हैं।