दलित दूल्हे की बारात और पुलिस सुरक्षा: समाज के लिए एक सवाल
आपके सामने एक तस्वीर है, जिसमें एक दूल्हा नजर आ रहा है और उसके चारों ओर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी खड़े हैं। यह दृश्य ऐसा प्रतीत होता है मानो पूरी बारात ही पुलिस कर्मियों की हो। आम लोग कम और वर्दीधारी अधिक दिख रहे हैं। देखने से लगता है कि शायद दूल्हा स्वयं कोई पुलिसकर्मी होगा, इसलिए इतने पुलिस वाले उसकी शादी में शामिल हुए हैं। लेकिन हकीकत कुछ और है। दरअसल, ये पुलिसकर्मी दूल्हे के दोस्त नहीं, बल्कि उसकी सुरक्षा के लिए तैनात किए गए थे।
यह बारात एक साधारण दलित युवक की है, जिसकी तस्वीरें राजस्थान के अजमेर जिले से आई हैं। अजमेर के नसीराबाद क्षेत्र के गांव लवेरा में एक दलित परिवार की बेटी की शादी थी। इस शादी में बारात अजमेर के ही श्रीनगर गांव से आनी थी। लेकिन शादी से पहले लड़की के पिता नारायण खोरवाल ने प्रशासन को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी बेटी अरुणा की शादी को लेकर सुरक्षा की मांग की। उनका कहना था कि घोड़ी पर बारात लाने से विवाद हो सकता है। इस आशंका को उन्होंने एसडीएम देवीलाल यादव को भी पत्र के माध्यम से व्यक्त किया।
इस मामले को अंबेडकर सेवा संस्थान, श्रीनगर ने भी गंभीरता से लिया और अजमेर जिला प्रशासन से सुरक्षा की मांग की। इसके बाद प्रशासन ने गांव के लोगों से बातचीत की। गांव वालों ने पुलिस को आश्वासन दिया कि उन्हें घोड़ी पर बारात आने से कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन प्रशासन ने एहतियात के तौर पर सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने का निर्णय लिया, ताकि कोई अप्रिय स्थिति उत्पन्न न हो। इसका एक कारण यह भी था कि इस गांव में पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी थीं।
इंडिया टुडे के पत्रकार चंद्रशेखर की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 20 साल पहले इसी परिवार को ऐसी ही एक घटना का सामना करना पड़ा था। उस समय नारायण खोरवाल की बहन की शादी थी, और जब दूल्हा घोड़ी पर चढ़कर बारात लाने लगा तो गांव के कुछ लोगों ने इसका विरोध किया और उसे घोड़ी से उतरने को मजबूर कर दिया। इस बार भी ऐसी स्थिति पैदा न हो, इसलिए उन्होंने प्रशासन की सहायता ली।
21 जनवरी को जब विजय अपनी बारात लेकर लवेरा पहुंचे, तो पूरा गांव यह दृश्य देख रहा था। लोग नाच-गाने में मस्त थे और विजय भी घोड़ी पर बैठकर अपनी शादी का आनंद ले रहे थे। इस बार किसी तरह की कोई बाधा न आए, इसलिए प्रशासन ने पूरी तैयारी की थी। रिपोर्ट के अनुसार, करीब 75 पुलिसकर्मी वहां तैनात थे, जिनका नेतृत्व अजमेर ग्रामीण के एएसपी डॉ. दीपक कुमार कर रहे थे। उन्होंने बताया कि गांव वालों से पहले ही बातचीत कर ली गई थी और सभी ने आश्वासन दिया था कि बारात निकालने में कोई दिक्कत नहीं होगी। फिर भी, किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए पुलिस सुरक्षा का इंतजाम किया गया था।

स्थानीय एसडीएम देवीलाल यादव ने भी बताया कि शादी में गांव वालों ने पूरा सहयोग किया। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने सुरक्षा दी, लेकिन समुदाय ने खुद भी आगे बढ़कर इस शादी को शांतिपूर्वक संपन्न कराने में मदद की।
इस घटना के दो पहलू हैं। पहला, प्रशासन की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने इतनी तत्परता दिखाई और यह सुनिश्चित किया कि कोई भी अपने अधिकारों से वंचित न हो। लेकिन दूसरा पहलू यह भी है कि आज भी ऐसी स्थिति उत्पन्न क्यों होती है कि प्रशासन को इस स्तर की सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़े? क्यों एक पिता को यह चिंता सताती है कि कहीं उसकी बेटी की शादी में कोई बाधा न आ जाए? यह सवाल समाज के सामने है।
हमने इससे पहले भी ऐसी घटनाओं की खबरें देखी हैं, जहां घोड़ी पर बारात निकालने को लेकर दलित दूल्हों को प्रताड़ित किया गया। ऐसे में यह सोचना आवश्यक हो जाता है कि आखिर कब तक यह भेदभाव जारी रहेगा। इस विषय पर आपकी क्या राय है? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।