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टाटा समूह में नई पीढ़ी की एंट्री विवाद और रणनीति

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टाटा समूह में नई पीढ़ी की एंट्री विवाद और रणनीति

जब आप टाटा समूह की वेबसाइट खोलते हैं, तो आपको साल 2006 में स्वर्गीय रतन टाटा का एक उद्धरण मिलेगा। इसमें वे अपने कारोबारी अनुभव के बारे में कहते हैं:

“जैसा कि मैंने देखा है, बिज़नेस आपसे बड़ी अपेक्षाएं रखता है। इसके लिए आपको नैतिकता, मूल्यों, और निष्पक्षता का पालन करने की हर समय ज़रूरत होती है।”

जैसा कि हम सब जानते हैं, रतन टाटा ने टाटा ग्रुप को ब्रांड बनाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने लगातार 21 साल तक टाटा समूह की कमान संभाली और हर सेक्टर में इसे फैलाया।

आज, टाटा समूह के पास देश-विदेश में 100 से ज़्यादा कंपनियां हैं। यह रतन टाटा की मेहनत का नतीजा है कि टाटा का सामान दुनिया के हर कोने में बिकता है। भारतीय टाटा का नमक, दालें, मसाले खाते हैं; टाटा की बसों और एयरलाइंस का उपयोग करते हैं; और टाटा के होटलों में रुकते हैं। लेकिन पिछले साल, 9 अक्टूबर को रतन टाटा के निधन के बाद नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट का नया चेयरमैन नियुक्त किया गया।

नोएल टाटा, रतन टाटा के सौतेले भाई हैं। हाल ही में, उनकी बेटियों लीह और माया टाटा को सर रतन टाटा इंडस्ट्रियल इंस्टिट्यूट के ट्रस्टी बोर्ड में शामिल किया गया है।

हालांकि, खबरें हैं कि इस नियुक्ति के बाद से टाटा ग्रुप में अंदरूनी मतभेद उभरने लगे हैं।

लीह और माया टाटा:

नोएल टाटा के तीन बच्चे हैं:

  • लीह टाटा (39 वर्ष): वह इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड में वाइस प्रेसिडेंट हैं और गेटवे होटल्स ब्रांड संभालती हैं।
  • माया टाटा: उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टाटा अपॉर्चुनिटी फंड से की।

दोनों बहनें टाटा मेडिकल सेंटर ट्रस्ट की ट्रस्टी हैं।

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हालांकि, इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इनकी नियुक्ति से टाटा ग्रुप में अंदरूनी असंतोष पैदा हो गया है। निवर्तमान ट्रस्टी अरनाथ कोटवाल और फ्रेडी तलाठी ने इस प्रक्रिया पर नाराजगी जताई। इसके बावजूद, लीह और माया की नियुक्ति को टाटा परिवार की नई पीढ़ी को तैयार करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

टाटा ट्रस्ट और उनकी भूमिका:

टाटा ट्रस्ट, टाटा ग्रुप के बिज़नेस का सबसे बड़ा नियंत्रक है। इसमें दो प्रमुख ट्रस्ट शामिल हैं:

  1. सर रतन टाटा ट्रस्ट
  2. सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट

इन ट्रस्टों की टाटा सन्स में 66% हिस्सेदारी है, जिससे टाटा समूह की कंपनियों पर इनका सीधा नियंत्रण होता है।

विवाद की जड़:

  1. निवर्तमान ट्रस्टियों की नाराजगी:
    पूर्व ट्रस्टियों, अरनाथ कोटवाल और फ्रेडी तलाठी, ने इस प्रक्रिया पर नाराजगी जाहिर की। कोटवाल ने आरोप लगाया कि उन्हें बगैर संवाद के इस्तीफा देने के लिए कहा गया।
  2. नई पीढ़ी की तैयारी:
    लीह और माया की नियुक्ति को टाटा परिवार की अगली पीढ़ी को तैयार करने की रणनीति बताया जा रहा है।

टाटा ट्रस्ट का महत्व:

सर रतन टाटा ट्रस्ट और सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट, टाटा ग्रुप के बिज़नेस पर 66% हिस्सेदारी के जरिए नियंत्रण रखते हैं। यह ट्रस्ट टाटा समूह के भविष्य की योजनाओं और संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

निष्कर्ष:

लीह और माया टाटा की नियुक्ति के साथ, टाटा समूह एक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। हालांकि इस बदलाव को लेकर असंतोष है, इसे नई पीढ़ी के नेतृत्व को तैयार करने की दिशा में एक कदम माना जा सकता है।

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