जैसलमेर में खुदाई से निकले पानी को लेकर दावे और सच्चाई
जितने लोग, उतनी बातें और कयास, लेकिन जैसलमेर में बोरवेल की खुदाई के दौरान निकले बेहिसाब पानी की असली सच्चाई क्या है, इसका निष्कर्ष अब तक नहीं निकला है।
850 फीट गहरे बोरवेल की खुदाई के दौरान अचानक तेज़ी से पानी निकलने लगा, जिसने कई फीट ऊंची धार बनाकर घंटों तक बहना जारी रखा। इस घटना में बोरवेल मशीन और ट्रक तक जमीन में धंस गए।
क्या यह पानी सरस्वती नदी का है?
हालांकि सरस्वती नदी विलुप्त मानी जाती है, फिर भी यह दावा किया जा रहा है कि यह पानी उसी का हो सकता है।
राजस्थान में सरस्वती नदी बहने की कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पानी 360 मीटर की गहराई से आया है, जबकि सरस्वती नदी की धारा केवल 60 मीटर गहराई पर मानी जाती है।
विशेषज्ञों की राय और अनुसंधान की आवश्यकता
अभी यह तय करना जल्दबाजी होगी कि यह पानी सरस्वती नदी का है या नहीं।
पानी और मिट्टी की जांच के बाद ही सटीक निष्कर्ष निकाला जा सकेगा। जैसलमेर में सरस्वती नदी से जुड़े अनुसंधान की संभावनाएं पहले भी जताई गई हैं, लेकिन अब और गहन अध्ययन की ज़रूरत है।
क्या यह पानी समुद्र का है?
पानी का खारा स्वाद और उसका इतिहास इसे टेथिस सागर से जोड़ता है।
कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसलमेर का वह इलाका 25 करोड़ साल पहले टेथिस सागर का तट हुआ करता था। खारे पानी और सफेद चिकनी मिट्टी के कारण इसे समुद्र के पानी का अवशेष भी माना जा रहा है।

पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
सरस्वती नदी का उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत, और अन्य पुराणों में मिलता है, जहां इसे नदियों की मां और पवित्र नदी कहा गया है।
राजस्थान में इसके अवशेषों की खोज के लिए पहले भी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और केंद्रीय भूजल बोर्ड जैसे संस्थानों ने काम किया है।
कार्बन डेटिंग से होगा सत्यापन
पानी की कार्बन डेटिंग से पता चलेगा कि यह सरस्वती नदी का है या टेथिस सागर का।
अगर पानी 1000 साल पुराना निकला, तो यह सरस्वती नदी से हो सकता है। अगर यह और ज्यादा पुराना हुआ, तो यह समुद्र का पानी होगा।
लोगों और वैज्ञानिकों में उत्सुकता
इस घटना को देखने के लिए लोग बड़ी संख्या में जुट रहे हैं। वैज्ञानिक भी इस पानी के स्रोत को लेकर शोध कर रहे हैं।
इसकी सच्चाई जांच और अध्ययन के बाद ही स्पष्ट होगी।
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