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जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान फिर हो सकता है निराश? भारत सरकार ने अपने वादों को पूरा किया

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जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान फिर हो सकता है निराश? भारत सरकार ने अपने वादों को पूरा किया

कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान हमेशा भारत का विरोध करता रहा है। जब भारत ने 2019 में धारा 370 हटाई, तो इमरान खान ने यूएन और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसका विरोध किया। उनका दावा था कि भारत ने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति खत्म कर दी और लोगों के अभिव्यक्ति के अधिकार छीन लिए। हालांकि, भारत ने जम्मू-कश्मीर में न केवल लोकसभा चुनाव कराए बल्कि विधानसभा चुनावों की भी घोषणा की है। अब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होंगे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत सरकार ने अपने वादों को पूरा किया है।

भारत सरकार ने घोषणा की है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव तीन चरणों में होंगे। पहला चरण 18 सितंबर को, दूसरा 25 सितंबर को और तीसरा 1 अक्टूबर को होगा। वोटों की गिनती 4 अक्टूबर को होगी और परिणाम 6 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। 2019 में धारा 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया था—लद्दाख और जम्मू-कश्मीर। फिलहाल चर्चा जम्मू-कश्मीर की विधानसभा चुनावों पर है।

चुनाव आयोग ने यह भी जानकारी दी है कि जम्मू-कश्मीर में कुल 87 लाख मतदाता हैं। विधानसभा चुनावों के लिए 90 सीटें होंगी, जिनमें 43 सीटें जम्मू क्षेत्र के लिए और 47 सीटें कश्मीर क्षेत्र के लिए हैं। परिसीमन आयोग के अनुसार, एसटी और एससी के लिए भी सीटें आरक्षित की गई हैं।

परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ाकर 90 कर दी है। परिसीमन आयोग का गठन भारत के संविधान के आर्टिकल 82 के तहत किया गया है। पिछले परिसीमन आयोग के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती। अब जम्मू-कश्मीर में सीटों का वितरण और आरक्षण स्पष्ट कर दिया गया है।

चुनाव के इस बार के विशेष पहलुओं में एसटी और एससी के लिए सीटों का आरक्षण शामिल है। जम्मू क्षेत्र में छह और कश्मीर क्षेत्र में एक नई सीट जोड़ी गई है। कुल 90 सीटों में से 24 सीटें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लिए छोड़ी गई हैं।

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लोकसभा चुनावों में रिकॉर्ड मतदान ने विधानसभा चुनावों के लिए भी उम्मीदें बढ़ा दी हैं। श्रीनगर में 36.5% मतदान दर्ज किया गया, जो 1996 के बाद सबसे अधिक है। यह दर्शाता है कि लोगों ने बदलते समय को स्वीकार किया है और लोकतंत्र में अपनी भागीदारी को बढ़ाया है।

विधानसभा चुनावों में, पहली बार अनुसूचित जनजातियों के लिए नौ और अनुसूचित जातियों के लिए सात सीटें आरक्षित की गई हैं। परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर यह कदम उठाया गया है।

2014 के चुनावों में बीजेपी और पीडीपी ने गठबंधन सरकार बनाई थी, लेकिन 2018 में गठबंधन टूट गया और राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। अब 2024 में, जम्मू-कश्मीर में नई विधानसभा का गठन होने जा रहा है।

चुनावी तैयारियों के तहत कांग्रेस, बीजेपी, और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां सक्रिय हो गई हैं। राहुल गांधी और खड़गे ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया और पार्टी की तैयारियों की समीक्षा की। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने भी अपने-अपने चुनावी घोषणापत्र जारी किए हैं।

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने घोषणापत्र में 370 और 35A को बहाल करने की बात की है, जबकि पीडीपी भी चुनावी तैयारी में जुटी है। इस बार, आतंकवादी हमलों के जोखिम को देखते हुए सुरक्षा को लेकर चिंता है। सुरक्षा बल चुनाव के दौरान चाक-चौबंद सुरक्षा की व्यवस्था कर रहे हैं।

इस प्रकार, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की घोषणा ने एक नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत की है, जिसमें विभिन्न दल और स्थानीय नेताओं की सक्रियता के साथ-साथ सुरक्षा और लोकतंत्र में विश्वास को मजबूत करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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