कैसे अमेरिका ने लगाई अदानी की लंका क्या अदानी बचा पाएगा अपनी इज्जत?
बुधवार, 20 नवंबर 2024, अहमदाबाद में अदानी ग्रीन एनर्जी के सबसे बड़े ऑफिस में लोग रोजमर्रा की तरह काम में लगे हुए थे। गौतम अदानी तो आसमान में झूम रहे थे क्योंकि उनके लगभग 5000 करोड़ बांड को अमेरिका में तीन गुना ज्यादा निवेशकों ने खरीदा था। हालांकि पिछले महीने अदानी नाकाम जरूर हुए थे, पर अब यह दिग्गज कंपनी अपने मौजूदा लोन को खत्म करने के लिए पैसे जुटा चुकी थी। लेकिन उन्हें कहां पता था कि 8000 मील दूर न्यूयॉर्क की एक अदालत में कुछ और ही कागजात पक रहे थे। एक आरोप ने उनकी बुधवार की सुबह को 2000 करोड़ की रिश्वतखोरी के तूफान में बदल दिया और उन्हें हिला कर रख दिया। आइए जानें विस्तार में हिंडनबर्ग के आरोपों के एक साल बाद अदानी को उनके डर कैसे फिर से सताने आ गए।
जनवरी 2015 में गौतम अदानी ने पीएम मोदी के बड़े सपने को साकार करने का जिम्मा लिया था – 2022 तक 100 गीगावाट सौर बिजली पैदा करना। इसके लिए अदानी ग्रीन चालू हुआ। उन्होंने तमिलनाडु में 2500 एकड़ में फैली कामथ सौर ऊर्जा जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स को चलाकर खुद को भारत की टॉप रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी साबित किया और अमेरिका के बड़े निवेशकों का ध्यान खींचा। 2020 में अदानी ने सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सेकी) के 2/3 प्रोजेक्ट्स 2.92 प्रति यूनिट के दाम पर जीत लिए। सेकी निजी कंपनी को बोली के जरिए कांट्रैक्ट देती है और बदले में राज्यों की कंपनियों को बिजली बेचती है। लेकिन बिजली कंपनियों ने सेकी को ठुकरा दिया क्योंकि वे बाजार के भाव से 1.99 प्रति यूनिट के दाम पर बेचने लगी थी। अमेरिकी चार्जशीट के आरोपों के मुताबिक, अदानी ने तीन अलग-अलग राज्यों के अधिकारियों को 2000 करोड़ की रिश्वत दी ताकि वे ज्यादा दाम पर मान जाएं। नवीन पटनायक के ओडिशा में यह आरोप लगा कि अफसरों को करोड़ों की रिश्वत दी गई, जिसके बाद में उड़ीसा का बिजली विभाग 2.61 प्रति यूनिट दाम पर 500 मेगावाट बिजली खरीदने पर राजी हो गया। फिर अगस्त में, जगनमोहन रेड्डी के आंध्र प्रदेश में 1750 करोड़ जितनी बड़ी रकम की रिश्वत देने के आरोप हैं ताकि वे 7 गीगावाट बिजली खरीद सकें और महंगी दरों में बेच पाएं। माना जाता है कि इससे अदानी अगले 10 सालों में कम से कम 33000 करोड़ कमाने का सपना देख रहे थे। पर यह सपना बिजली कंपनियों और ग्राहकों के नुकसान पर होता। आंध्र प्रदेश के पीएसी प्रमुख और सीपीआई राज्य सचिव ने इतने महंगे दामों पर बिजली खरीदने से मना कर दिया और आंध्र हाई कोर्ट में याचिका भी दायर कर दी।
अमेरिका ने यह आरोप लगाया कि जुलाई 2021 और फरवरी 2022 के बीच जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु के अधिकारियों को भी पावर सप्लाई एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने के लिए रिश्वत दी गई। उसी बीच अदानी ग्रीन अमेरिका में 6500 करोड़ के ग्रीन बॉन्ड जारी करने की कोशिश कर रहे थे। अदानी कथित तौर पर सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि कनाडा की एक भारतीय सहायक कंपनी एजर पावर की ओर से भी रिश्वत दे रहे थे। एजोर ने 2.3 गीगावाट एग्रीमेंट अदानी को दे दिया, यह बहाना मारते हुए कि वह प्रोजेक्ट उनके बस का नहीं। अमेरिकी अधिकारियों को एजोर के ही एक सीनियर अधिकारी से टिप मिली और उन्होंने एजोर को मार्च 2022 में नोटिस भेजा। इस नोटिस से डरकर एजोर के एक और बड़े अधिकारी अमेरिका के दूसरे गवाह बन गए। एजोर वालों ने अपनी साथी कंपनी कनाडाई पेंशन फंड के साथ मिलकर साजिश रची ताकि अपने राज को सरकारी जांच से छुपा सकें। दिखावे के लिए उन्होंने अमेरिका की एक बड़ी एजेंसी से अपनी ही कंपनी की जांच करवाई, आधी अधूरी जानकारी देकर।

मार्च 2023 में, अपनी कंपनी पर चल रही जांच से अनजान सागर अदानी अमेरिका पहुंचे, जहां एफबीआई एजेंट उनका इंतजार कर रहे थे। उन्हें तुरंत कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया गया और निवेश घोटाला, फ्रॉड और रिश्वतखोरी के आरोपों में घेर लिया गया। अमेरिकी अधिकारियों के पास सबूतों का खजाना था, जिसमें एजोर का अदानी ग्रीन को 638 करोड़ बकाया होने का एक दस्तावेज भी था। अदानी ने जांच से अनजान होने का दावा किया और निवेशकों को ईमेल भेजकर खबर को बेबुनियाद बताया। अदानी परिवार के खिलाफ दो मामले हैं: पहला चार धोखाधड़ी के आरोपों वाला अपराधिक मामला और दूसरा अमेरिकी निवेशकों को गुमराह करने के लिए सिविल मामला। अदानी ने इन आरोपों को भी नकार दिया लेकिन सहयोग करने के लिए हामी जताई। अदानी को अमेरिका वाला 5000 करोड़ का बॉन्ड भी रद्द करना पड़ा। हालांकि उन्होंने दावा किया कि उनके पास 1000 करोड़ नगद हैं, जो अगले 28 महीनों तक उनके कर्ज चुकाने के लिए काफी हैं।
कांग्रेस जो अदानी को फिर से आरोपों में घेरने वाली थी, उन्हें जल्दी समझ आ गया कि आरोप उनकी राज्य सरकारों और सहयोगियों पर भी लगे हैं। भाजपा सरकार अदानी के पीछे मजबूती से खड़ी नजर आ रही है, कहते हुए कि ये सारे आरोप भारत की तरक्की को रोकने की साजिश हैं।