केंद्र सरकार की नई यूनिफाइड पेंशन योजना या पुरानी स्कीम का U-TURN? UPS से क्या बदल जाएगा?
भारत सरकार ने 2024 में यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) लॉन्च की है, जो अप्रैल 2025 से लागू होगी। इस स्कीम से केंद्रीय कर्मचारियों को लाभ मिलेगा और अगर राज्य सरकारें भी इसे अपनाती हैं, तो इससे देश भर के 90 लाख कर्मचारी प्रभावित होंगे। इसका मतलब है कि लगभग 35 करोड़ लोग इस बदलाव से प्रभावित होंगे। यह बदलाव सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले युवाओं को भी प्रेरित कर सकता है कि सरकारी नौकरी में पेंशन की सुरक्षा होती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस स्कीम को मंजूरी दी है और इसके बारे में जानकारी पीआईबी की प्रेस ब्रीफिंग में दी गई थी। यूपीएस 1 अप्रैल 2025 से लागू होगा और एनपीएस के तहत काम कर रहे कर्मचारी भी यूपीएस में स्विच कर सकते हैं।
यूपीएस और एनपीएस के बीच अंतर को समझना महत्वपूर्ण है। यूपीएस की पेंशन योजना में कर्मचारियों को उनकी अंतिम सैलरी का 50% पेंशन के रूप में मिलेगा, जबकि एनपीएस में पेंशन मार्केट पर निर्भर होती थी। यूपीएस में पेंशन की राशि निश्चित होगी, जिससे कर्मचारियों को अधिक सुरक्षा मिलेगी। एनपीएस में मार्केट रिस्क के चलते पेंशन की राशि में उतार-चढ़ाव होता था, जबकि यूपीएस में यह फिक्स्ड रहेगी।
साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने ओपीएस को न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) से बदल दिया था। एनपीएस में पेंशन मार्केट पर निर्भर होती थी, जिससे कर्मचारियों को कम सुरक्षा मिलती थी। यूपीएस के तहत, पेंशन निश्चित होगी और रिटायरमेंट के बाद कर्मचारियों को स्थिर लाभ मिलेगा। पुराने एनपीएस कर्मचारी भी यूपीएस के आने के बाद सामंजस्य की राशि प्राप्त कर सकते हैं।

केंद्र सरकार का कहना है कि यूपीएस से खर्च बढ़ेगा, लेकिन यह कर्मचारियों के लिए एक बेहतर सुविधा होगी। यह बदलाव एनपीएस से यूपीएस की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है और इससे सरकारी कर्मचारियों को अधिक सुरक्षित और स्थिर पेंशन मिलेगी।
- योजना का परिचय:
- UPS 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी।
- यह योजना न्यू पेंशन स्कीम (NPS) की जगह लेगी।
- UPS केंद्र सरकार के 23 लाख कर्मचारियों और संभावित रूप से राज्य कर्मचारियों को लाभान्वित करेगी।
- UPS की विशेषताएँ:
- UPS के अंतर्गत, रिटायरमेंट के बाद कर्मचारियों को उनकी अंतिम महीने की बेसिक सैलरी का 50% पेंशन के रूप में मिलेगा, अगर उन्होंने कम से कम 25 साल की सेवा की हो।
- 10 साल की सेवा पूरी करने वालों को न्यूनतम पेंशन मिलेगी।
- अगर किसी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार को उसकी पेंशन का 60% मिलेगा।
- महंगाई भत्ता भी पेंशन में जोड़ा जाएगा।
- NPS vs UPS:
- NPS में पेंशन की गारंटी नहीं होती थी और इसमें पैसा शेयर बाजार में निवेश होता था।
- UPS में एक निश्चित पेंशन की गारंटी होगी और फंड में सरकार द्वारा एक निर्धारित ब्याज दर जोड़ी जाएगी।
- UPS के आने के बाद, जिनके पास NPS है, वे UPS में शामिल हो सकते हैं या NPS में बने रह सकते हैं।
- आर्थिक प्रभाव:
- UPS के लागू होने से सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। अगले वित्तीय वर्ष में 50 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च आएगा।
- पुराने NPS वाले कर्मचारियों को भी UPS के लाभ मिलेंगे, और उन्हें पिछले नुकसान की भरपाई की जाएगी।
- राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य:
- UPS की शुरुआत चुनावों से पहले की गई है, जिससे यह राजनीतिक लाभ के नजरिये से भी देखी जा रही है।
- कई राज्य सरकारें भी ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग कर रही थीं, जिसके जवाब में UPS लाई गई है।
इस योजना से सरकारी नौकरियों के प्रति रुझान बढ़ने की उम्मीद है, और यह योजना कर्मचारियों को एक स्थिर और सुनिश्चित पेंशन की गारंटी देती है।
मुख्य बिंदु:
- नई UPS योजना:
- UPS का उद्देश्य पुराने पेंशन स्कीम (OPS) की तरह निश्चित पेंशन प्रदान करना है।
- रिटायरमेंट के बाद पेंशन की गारंटी होगी, जिसमें बेसिक सैलरी का 50% मिलेगा।
- पेंशन के लिए कम से कम 25 साल की सर्विस की आवश्यकता होगी। अगर 25 साल की सेवा पूरी नहीं होती, तो पेंशन कम मिलेगी लेकिन 10 साल की सेवा पर भी न्यूनतम पेंशन मिलेगी।
- एनपीएस (नई पेंशन स्कीम):
- एनपीएस में पेंशन की कोई निश्चित गारंटी नहीं थी। कर्मचारियों की बेसिक सैलरी का 10% सरकार द्वारा शेयर मार्केट में निवेश किया जाता था।
- UPS में, यह व्यवस्था बदल जाएगी और सरकार का योगदान बढ़ाकर 18.5% कर दिया जाएगा।
- एनपीएस के तहत कर्मचारियों को पेंशन की गारंटी नहीं थी, लेकिन UPS के तहत पेंशन की एक निश्चित राशि मिलेगी।
- योजना का प्रभाव:
- UPS की वजह से केंद्र सरकार को अधिक वित्तीय बोझ उठाना पड़ेगा, लेकिन इससे कर्मचारियों को अधिक लाभ मिलेगा।
- एनपीएस के तहत जिन कर्मचारियों को पेंशन मिल रही थी, वे UPS में शामिल हो सकते हैं और अपनी पुरानी स्कीम के लाभ उठा सकते हैं।
- राजनीतिक संदर्भ:
- UPS लाने के पीछे वोट बैंक की राजनीति भी एक कारण हो सकता है। राज्य सरकारें, जैसे राजस्थान में, पुरानी पेंशन स्कीम की मांग कर रही थीं, जिससे केंद्र पर दबाव बना।