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कुंभ मेला 2025: सनातन की अद्भुत शक्ति का भव्य आयोजन

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कुंभ मेला 2025: सनातन की अद्भुत शक्ति का भव्य आयोजन

पुराणों में समुद्र मंथन की कथा अत्यंत प्रसिद्ध है। यह कथा बताती है कि जब देवता और असुर समुद्र मंथन कर रहे थे, तब धन्वंतरि अपने हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ, और देवताओं ने असुरों से बचाने के लिए 12 दिनों तक अमृत कलश को चार स्थानों पर रखा। यही चार स्थान—हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज और उज्जैन—वह स्थल बने जहां कुंभ मेला आयोजित होता है।

इस बार का कुंभ मेला विशेष रूप से ऐतिहासिक है क्योंकि यह 144 वर्षों बाद आयोजित होने वाला महाकुंभ मेला है। अगला महाकुंभ 2169 में होगा, जिससे यह आयोजन और भी दुर्लभ और महत्वपूर्ण बन जाता है। इस वर्ष प्रयागराज में हो रहे महाकुंभ की भव्यता पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुकी है।

विश्व का सबसे बड़ा आयोजन

मकर संक्रांति के दिन, पहले स्नान में 35 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई, जो विश्व के किसी भी शहर में एक समय में एकत्रित होने वाली सबसे बड़ी जनसंख्या में से एक थी। इस आयोजन की भव्यता इतनी विशाल है कि इसे मानव इतिहास का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक समागम कहा जा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय ध्यान और भारत की क्षमता

महाकुंभ मेले की भव्यता ने अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, जापान और अरब देशों को चकित कर दिया है। प्रयागराज जैसा शहर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए एक व्यवस्थित ढांचे के रूप में तैयार किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत अब वैश्विक स्तर पर बड़े आयोजनों की मेजबानी में अद्वितीय स्थान रखता है।

सुरक्षा एवं बुनियादी सुविधाएँ

  • 50,000 पुलिसकर्मी सुरक्षा व्यवस्था में तैनात हैं।
  • 5 लाख टेंट, जिनमें टॉयलेट की सुविधाएँ भी शामिल हैं।
  • 45 लाख बिजली कनेक्शन, जिससे एक लाख अपार्टमेंट को एक महीने तक बिजली मिल सकती है।
  • 11 अस्पताल, मोबाइल टावर, 3000 रसोई एवं चौड़ी सड़कों का निर्माण किया गया है।
  • 30 अस्थायी लोहे के पुल गंगा नदी पर बनाए गए हैं।

रात्रि में इस आयोजन की रोशनी से नहाई हुई छवि इतनी अद्भुत प्रतीत होती है कि मानो देवलोक धरती पर उतर आया हो।

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नागा साधुओं का रहस्य

महाकुंभ में सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र नागा साधु होते हैं। इन्हें रहस्य और कठोर तपस्या का प्रतीक माना जाता है। नागा साधु अपनी कठोर साधना और सनातन धर्म की रक्षा के लिए प्रसिद्ध हैं। वे आमतौर पर हिमालय और अन्य वीरान क्षेत्रों में तपस्या करते हैं और केवल कुंभ के दौरान समाज तक संदेश पहुँचाने के लिए प्रकट होते हैं।

  • नागा शब्द का अर्थ पहाड़ जैसा अडिग होता है।
  • नागा साधु योद्धा भी होते हैं, जिन्होंने इतिहास में कई लड़ाइयों में भाग लिया।
  • भारत में चार लाख से अधिक नागा साधु हैं, जो देश की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
  • नागा साधु बनने के लिए कठोर छह महीने की तपस्या आवश्यक होती है।
  • ये सिर्फ गेरुआ वस्त्र धारण करते हैं और शरीर पर भस्म लगाते हैं।
  • एक दिन में सिर्फ सात जगहों से भिक्षा माँग सकते हैं।
  • कई नागा साधु वर्षों से हठ योग द्वारा एक हाथ उठाकर तपस्या कर रहे हैं।

महाकुंभ का आर्थिक प्रभाव

कई लोग महाकुंभ पर हो रहे खर्च पर सवाल उठाते हैं, लेकिन इसका आर्थिक लाभ अभूतपूर्व है।

  • सरकार द्वारा 7500 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन सिर्फ 40 दिनों में 25,000 करोड़ से अधिक का राजस्व उत्पन्न होगा।
  • 6 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा।
  • होटल और गेस्ट हाउस से 40,000 करोड़ का व्यापार होगा।
  • खाने-पीने के सामान की बिक्री से 20,000 करोड़ का कारोबार होगा।
  • धार्मिक वस्तुओं और प्रसाद से 20,000 करोड़ का राजस्व प्राप्त होगा।
  • परिवहन और स्थानीय बाजारों से भी 10,000-15,000 करोड़ की आमदनी होगी।

विदेशी श्रद्धालुओं की आस्था

महाकुंभ में न केवल भारतीय बल्कि विदेशी श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

  • स्टीव जॉब्स की पत्नी ने निरंजनी अखाड़े में कल्पवास किया और उन्हें कमला नाम दिया गया।
  • जापान की प्रसिद्ध योगमाया केईको भी कुंभ स्नान करने आईं, जो पहले भी समाधि ले चुकी हैं।
  • अनुमान है कि 15 लाख से अधिक विदेशी श्रद्धालु इस बार महाकुंभ में हिस्सा लेंगे।

सनातन की शक्ति और विश्व आकर्षण

भारत में अक्सर धार्मिक आयोजनों के खर्च पर सवाल उठते हैं, लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि महाकुंभ केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से भी एक अद्भुत आयोजन है।

निष्कर्ष

यह महाकुंभ 144 सालों में एक बार आने वाला अवसर है। अगर संभव हो, तो इस महाकुंभ में जरूर जाएँ और इस दिव्य क्षण का हिस्सा बनें। यह आयोजन न केवल सनातन की शक्ति को दर्शाता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को भी संजोए रखता है। हर हर महादेव! जय गंगे मैया!

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