Headlines

किसान आंदोलन 2.0 एमएसपी की कानूनी मांग और 2024 के प्रोटेस्ट की कहानी

सीरिया में सत्ता परिवर्तन बशर अल असद का रूस में शरण और भविष्य की चुनौतियाँ

किसान आंदोलन 2.0 एमएसपी की कानूनी मांग और 2024 के प्रोटेस्ट की कहानी

हाल ही के समय में किसान आंदोलन चर्चाओं में रहे हैं और किसान आंदोलन सबसे ज्यादा चर्चाओं में आए जब भारत सरकार के द्वारा फार्मर बिल लाए गए थे और उन फार्म बिलों को 2020 के अंदर किसानों के प्रोटेस्ट के चलते वापस भी ले लिया गया था। संभवतः आपको याद हो कि केंद्र सरकार के द्वारा तीन फार्म बिल लाए गए थे जिनमें पहला जो बिल था वो फार्मर प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स से रिलेटेड था, दूसरा एंपावरमेंट प्रोटेक्शन से था और तीसरा एसेंशियल कमोडिटी एक्ट में संशोधन से संबंधित था। इन तीन कानूनों के चलते भारत में किसानों का विरोध हुआ और किसानों के द्वारा इस विरोध के चलते भारत सरकार को अपने यह बिल वापस लेने पड़े थे। प्रधानमंत्री के द्वारा लाइव आकर कहा गया कि भैया हम इन बिलों को वापस ले रहे हैं और प्रधानमंत्री के द्वारा इसके बारे में कह दिया गया कि हम इसको वापस ले रहे हैं।

जब प्रोटेस्ट चल रहा था तब किसानों का अपना-अपना जो विरोध था वह हमने कईयों साल से डिस्कस करके समझा है लेकिन हाल ही के समय में और उस समय में एक जो बहुत बड़ी चीज निकल कर आई थी वो यह थी कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस जो किसानों को दिया जाता है न्यूनतम समर्थन मूल्य कहीं ना कहीं सरकार उससे बचने के लिए यह सारी चीजें कर रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है? किसान जो आय मतलब किसान जो फसल पैदा करता है, सामान्यतः किसान की फसल पैदा होते ही अचानक आपूर्ति बढ़ने लगती है और आपूर्ति जब मंडी में बढ़ने लगती है तो भाव मनोवांछित नहीं मिलते और उसके चलते कम भावों पर किसान को फसल बेचनी पड़ती है। इससे किसान की जो लागत आई है, जो कि उसकी ओवरऑल खर्चा है, उसने जो कैश एंड काइंड के अंदर किया है फसल को पैदा करने में, उसे वो भी रिटर्न में वापस नहीं मिलती और जब वो नहीं मिलती तो किसान को बहुत नुकसान होता है। इसलिए भारत सरकार ने सीएसीपी के द्वारा यानी कि कमीशन ऑफ एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइस के माध्यम से डिसाइड करके एमएसपी निर्धारित की हुई है।

कुल 23 फसलें हैं जिनके ऊपर एमएसपी दी जाती है और उन एमएसपी को रवि और खरीफ की फसलों पर दिया जाता है। कौन-कौन सी फसलें हैं? तो बाजरा, मक्का, रागी, चना, अरहर, तूहर, मंग, यानी कि सरकार ने यह कह रखा है कि एटलीस्ट इन फसलों पर तो हम आपको इतना धन देंगे ही देंगे। कितना धन देंगे? तो सरकार के द्वारा ए2 मतलब किसान का कुल खर्चा प्लस किसान के द्वारा लगाया गया जो उसमें वेजेस है, जो उसके फैमिली मेंबर्स जो उसके अंदर पैसा लगाए थे, और तीसरा जो उसने जमीन पर रेंट लिया हुआ है, खर्चा लिया हुआ है, वो एटलीस्ट इतना पैसा तो हम देकर आपको चलेंगे ही चलेंगे। मतलब आपने जो इन्वेस्ट किया है आपकी जो मेहनत है इसको हम वेस्ट वेस्ट नहीं जाने देंगे। ऐसा करके 23 फसलों पर भारत सरकार के द्वारा किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया हुआ है।

किसानों को जब वह बिल आए तो यह डर सताया कि सरकार कहीं हमें इस एमएसपी से तो वंचित नहीं करना चाहती। ऐसे में किसानों के द्वारा प्रोटेस्ट हुआ। सरकार ने अपनी तरफ से स्पष्ट किया कि भैया आप लोग इस चीज की चिंता ना करें हम आपका एमएसपी नहीं चाहते, हम चाहते हैं कि एमएसपी तो मिलता रहे साथ ही साथ जो और अधिक मूल्य आपको मिल सकता है प्रतिस्पर्धी तरीके से किसानों को जो लाभ हो सकता है वह होने दिया जाए। खैर भारत सरकार की तरफ से सरकार ने इसे वापस लेते हुए कहा कि भैया हम इस बिल को वापस ले रहे हैं क्योंकि अल्टीमेटली किसान इससे खुश नहीं हैं। उनके मन में एक डर है।

किसान प्रोटेस्ट के चलते भारत में जब ये चीजें वापस हुई तो दिसंबर 2021 में जाकर के भारत के सभी किसान जो प्रोटेस्ट पर थे उन्होंने अपने प्रोटेस्ट वापस ले लिए। 2021 के दिसंबर में यह प्रोटेस्ट एंड हुए। तय हुआ सरकार की और किसानों के बीच की कुछ बातें निकल कर आई और तय हुआ कि भैया हम इन इन विषयों के ऊपर इस इस तरीके से आगे बढ़ने वाले हैं। ठीक है। किसान उस समय भी जिस चीज की मांग कर रहे थे वो था कि आप एटलीस्ट एमएसपी को लेकर कोई कानून लेकर आइए। मिनिमम सपोर्ट प्राइस कानूनी रूप से हमें दीजिए। लेकिन सरकार की बाध्यता है कि वह डब्ल्यूटीओ की शर्तों के चलते उसे कानून में नहीं बदल पाती है। ऐसे में सरकार ने कहा कि हम कानूनी रूप से तो नहीं लेकिन हां एमएसपी रोकेंगे नहीं यह आश्वासन के साथ आपको भेज रहे हैं।

तब तो किसान आंदोलन समाप्त हो गया लेकिन तब 2021 के दिसंबर में समाप्त हुआ किसान आंदोलन वर्ष 2024 के फरवरी में फिर से उठ खड़ा हुआ। फिर से उठ खड़ा हुआ तो 22 से लेकर 24 के बीच में क्या हुआ? 22 से 24 के बीच में किसानों ने जिन किसानों को सरकार की नीतियों के खिलाफ जाना था वो इलेक्शन में पार्टिसिपेट किए, इलेक्शन में पार्टिसिपेट किए, लोकसभा में पार्टिसिपेट किए। लेकिन इससे पहले ही कुछ किसान लोग राजनीति से इतर कि हमें चुनाव नहीं लड़ना है हमें सरकार के खिलाफ नहीं जाना है हम अल्टीमेटली केवल अपनी मांगे सरकार से मांगना चाहते हैं हमें इलेक्शन से कोई लेना देना नहीं है। एक किसानों का समूह फरवरी 2024 में फिर से पंजाब हरियाणा से निकलकर शुरू हुआ और उस पंजाब हरियाणा से निकले हुए किसान समूह ने अपनी तरफ से पिछले 11 महीने से प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं। बड़ी संख्या में किसान उनके साथ कनेक्टेड हैं।

उनका कोई राजनीतिक मोटिव नहीं है। इस बार के किसान प्रोटेस्ट में कोई भी लग्जरी गाड़ी नहीं है ना ही बड़े-बड़े स्पीकर्स पर गाने बजाए जा रहे हैं। बड़े ही शांत तरीके से किसानों के द्वारा प्रोटेस्ट पिछले 11 महीने से जारी है जिसमें किसान के जो नेता हैं इस बार के जो किसान आंदोलन है उनमें से एक नेता लगातार 37 दिन से आमरण अंस पर हैं यानी कि ना पानी और ना भोजन ले रहे हैं और उनकी हालत लगातार बिगड़ती जा रही है जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट पंजाब सरकार को लगातार इंस्ट्रक्ट डिक्शन दे रही है कि भाई इनके लिए आप कुछ करिए। ऐसे में अगर इनको कुछ हो गया तो हालात बिगड़ जाएंगे। ऐसे में फिलहाल जो नेता हैं किसान नेता जिनका नाम है दल्ले वाला, वो इनके गांव का नाम है और उन्होंने उन्होंने जगजीत सिंह डल्ले वाल, इन्होंने हाल ही में अपने जो भोजन को छोड़े हुए 37 दिन पूरे किए हैं।

उनके चलते सुप्रीम कोर्ट में लगातार पांच से अधिक बार सुनवाई हो चुकी है। केंद्र सरकार, पंजाब सरकार पूरी तरह चिंता में है कि अगर इस तरह के रिकॉग्नाइज फेस को, जिसकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं, जो लोकसभा चुनाव के अंदर किसी भी प्रकार से किसी भी पार्टी को सपोर्ट करने के लिए नहीं निकले, वह केवल किसानों की मांग के लिए हैं तो किसान इनके साथ जुट रहे हैं, इनको कुछ नहीं होना चाहिए। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट लगातार पंजाब सरकार को अपनी तरफ से इंस्ट्रक्शंस दिए जा रही हैं। फार्मर लीडर हंगर स्ट्राइक के अंदर इनकी 1 जनवरी को 37 वें दिन एंट्री हो गई। फिलहाल ये इस तरह से बिल्कुल बीमार हालत में पहुंच चुके हैं, कमजोर हालत में पहुंच चुके हैं और कमजोर हालत में 70 वर्षीय डलने वाला जो हैं वो इस समय हर अखबार की सुर्खी बने हुए हैं।

पंजाब के अंदर किसानों ने अपनी मांगों को लेकर के हरियाणा, पंजाब से किसान इकट्ठे होकर दिल्ली चलने का तय किए। दिल्ली चलना तय किए। तो दिल्ली के अंदर रास्तों में दिल्ली तक ना पहुंचने देने के लिए सरकार ने किसानों को पंजाब और हरियाणा बॉर्डर पर ही रुकवा दिया। तो हरियाणा पंजाब के बॉर्डर खनौरी बॉर्डर के पास में किसानों को रोक दिया गया और तब से लेकर के उस खनौरी बॉर्डर पर ही प्रदर्शन चल रहे हैं। किसान खड़े होकर प्रदर्शन मतलब वो कर रहे हैं प्रोटेस्ट कर रहे हैं। डल्ले वाला 26 नवंबर पर खनौरी बॉर्डर पर आमरण अंस में बैठे हुए हैं। ठीक है।

सरकार के द्वारा कहा गया है कि हम तो हर मंगलवार ही किसानों से बात कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट हमें जैसे इंस्ट्रक्शन देगी हम उस पर आगे बढ़ जाएंगे। तो देखो 13 फरवरी के दिन प्रोटेस्ट शुरू होता है। प्रोटेस्ट का नाम फार्मर प्रोटेस्ट 2.0 नाम दिया जाता है। इस बार का प्रोटेस्ट बिल्कुल अलग था और इस बार किसानों की मांगे बड़ी स्पष्ट थीं। इस बार के प्रोटेस्ट को दो किसान नेता बड़ी अगुवाई कर रहे थे। एक नेता जिनका नाम मैं आपको बता रहा हूं जगजीत सिंह डल्ले वाला और दूसरे हरियाणा के जो प्रमुख किसान नेता जिनका नाम है गुरनाम सिंह चढ़ुनी। तो इन दो लोगों ने मिलकर के किसानों को एकत्रित करना शुरू किया और 13 फरवरी 2024 से खनौरी बॉर्डर पर किसानों का प्रोटेस्ट चल रहा है।

इस बार सरकार से किसानों ने स्पष्ट मांग की है और इस बार की मांग यह थी कि हमको एक कानूनी रूप से एमएसपी का संरक्षण चाहिए। भाई जब आप कानून बनाते हो तो हमको उसमें एमएसपी का संरक्षण दीजिए। हमें एमएसपी का जो प्रोटेक्शन है वो चाहिए और साथ में जिन किसानों पर हमने अपनी जो फसले हैं उनका बकाया है उनको भी दीजिए। तो जो 2021 से 24 के बीच में किसानों का जो बकाया है उसके लिए किसानों के अंदर एक असंतोष था। ठीक है। चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं। अब क्या है कि एक बार देखो जब यह बिल आए थे उस समय हमने आपको बहुत अच्छे से बताया था कि यह किस तरीके से लागू किए जा रहे थे क्या-क्या हुआ। ठीक है। अब इस समय पर प्रोटेस्ट चल रहा है। प्रोटेस्ट को 37 दिन पूरे हो चुके हैं। किसान लगातार वहां पर बैठे हुए हैं। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के द्वारा कहा गया है कि देखिए हम किसानों की पूरी समस्या को समझने का प्रयास करेंगे। ठीक है।

नरेंद्र सिंह तोमर किसानों से बातचीत कर रहे हैं। पंजाब सरकार भी बातचीत कर रही है। ऐसे में सरकार चाहती है कि हम शांतिपूर्ण तरीके से समस्या को समाप्त करें। लेकिन अभी किसानों का प्रोटेस्ट पिछले 11 महीने से लगातार जारी है और वो किसी भी स्थिति में सरकार से अपनी बात मनवाने के लिए तैयार हैं।

88888888888888888888888888888888888888

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *